Friday, April 12, 2024

'तकदीर '- (1943) ......बतौर अभिनेत्री नर्गिस की पहली फिल्म जिसमे वो नायक मोती लाल से 19 साल छोटी थी

'तकदीर '- (1943) में मोती लाल के साथ नर्गिस 

'तक़दीर' सन 1943 रिलीज़ हुई रोमांटिक ड्रामा फ़िल्म है इसका निर्देशन महबूब खान ने अपने महबूब प्रोडक्शंस बैनर के तहत किया था फिल्म में मोतीलाल, चंद्र मोहन, नूर मोहम्मद चार्ली, जिल्लोबाई और कायम अली के साथ अपनी पहली मुख्य भूमिका में युवा अभिनेत्री 'नर्गिस ' भी शामिल थीं वही नर्गिस जो आगे चलकर हिंदी सिनेमा की एक मशहूर अभिनेत्री बनी 

बतौर नायिका 'नर्गिस 'की यह पहली फिल्म थी इससे पहले वो अपनी मां (जद्दन बाई) की फिल्मों में 'बेबी रानी' के नाम से बाल कलाकार के रूप में काम किया था जद्दन बाई ने 5 साल की उम्र में उन्हें संगीत फिल्म्स की 'तलाश-ए-हक'  में उन्हें बेबी रानी के रूप में फिल्मों में पेश किया जब वह अपनी माँ जद्दन बाई की इज़ाज़त से फिल्म 'तक़दीर' में काम करने के लिए राजी हुईं तो इस फिल्म में उनके हीरो मोतीलाल और नर्गिस की उम्र में लगभग 19 वर्षो का फर्क था अभिनेता मोतीलाल की उम्र उस वक्त 33 थी जबकि 'नर्गिस सिर्फ 14 साल थी नरगिस का असली नाम 'फातिमा' था और वो इसी नाम से अपना फ़िल्मी कॅरियर शुरू करना चाहती थी लेकिन महबूब खान को यह नाम फिल्म के अनुकूल नहीं लगा और इसलिए अपनी फिल्म के लिए उन्होंने उनका बदलकर 'नर्गिस' रख लिया फिल्म की कहानी हिंदी फिल्मो में उस समय सबसे ज्यादा इस्तेमाल किये जाने वाले लोस्ट एन्ड फाउंड ( मिलना- बिछुड़ना ) फार्मूले पर आधारित थी सेठ बद्रीप्रसाद ( नूर मोहम्मद चार्ली ) एक विधुर, थिएटर व्यवसायी है एक बार कुंभ मेले में एक नाटक मंचन के दौरान बद्रीप्रसाद का छोटा बेटा पप्पू खो जाता वे उसकी बहुत तलाश करते हैं लेकिन उसे ढूंढ नहीं पाते बद्रीप्रसाद की थिएटर कंपनी के मैनेजर घनश्याम को उसी मेले में एक छोटी लड़की श्यामा मिलती है जो मेले में अपने परिजनों से बिछड़ गई है निःसंतान होने के कारण मैनेजर और उसकी पत्नी उसे अपनी बेटी के रूप में पालने का निर्णय लेते हैं


14 साल की कमसिन खूबसूरत नर्गिस को परदे पर देखना रोमांचित करता है 

इधर जज जमना प्रसाद (चंद्र मोहन) जो मेले में अपनी बेटी श्यामा को ढूंढने में असमर्थ हैं वो पुलिस की मदद से उसे खोजने की कोशिश करते हैं जज की पत्नी (जिल्लोबाई ) जब अपनी लापता बेटी के बारे में सुनती है तो अपना मानसिक संतुलन खो देती है डॉक्टर का कहना है कि अगर श्यामा को जल्द नहीं ढूंढा गया तो उसकी भी जान जाने का खतरा है इसी जज के नौकर को बद्रीप्रसाद का खोया लड़का पप्पू मेले में मिल जाता है जज जमना प्रसाद अपनी पत्नी की जान बचाने के लिए लड़के को अपनी बेटी श्यामा के कपड़े पहनाकर अपनी पत्नी के समक्ष पेश कर देता है जो उसे लड़के के वेश में देखने के बावजूद यह मानती रहती है कि पप्पू ही श्यामा है  

अपने बेटे को खोने के बाद बद्रीप्रसाद की थिएटर में रुचि खत्म हो जाती है उनके मैनेजर घनश्याम उन्हें थिएटर को पुनर्जीवित करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं एक दिन बद्रीप्रसाद घनश्याम की बेटी श्यामा को नाचते हुए देखता है और अपने मैनेजर से उसके बारे में पूछता है अब तक घनश्याम की पत्नी की मृत्यु हो चुकी है और वह  मेले में मिली छोटी लड़की श्यामा को हमेशा के लिए बद्रीप्रसाद को गोद दे देता है ताकि उसका पालन पोषण सही ढंग से हो सके श्यामा (नर्गिस) बद्रीप्रसाद की बेटी के रूप में थिएटर के रास रंग के परिवेश में पलती है और बड़ी होने पर उसी थिएटर में मुख्य कलाकार भी बनती है

पप्पू, जिसे अब बाबू (मोतीलाल) कहा जाता है एक दिन अपने माता-पिता के साथ थिएटर जाता है वह श्यामा को नृत्य करते देख उस पर मोहित हो जाता है और जल्द ही दोनों में प्यार हो जाता है लेकिन जज जमना प्रसाद शादी की अनुमति देने से इनकार कर दिया क्योंकि वह थिएटर के लोगों को वो अपनी सामाजिक प्रतिष्ठा से नीचे मानता है बाबू को पता चलता है कि वह जज का असली बेटा नहीं है और घर छोड़ देता है बाबू के घर छोड़ने के सदमे के बाद जज की पत्नी की याददाश्त वापस आ जाती और फिर कई नाटकीय घटनाओं के बाद सभी बिछड़े मिल जाते है और फिल्म का सुखद अंत होता है 


फिल्म तक़दीर को रिलीज़ के बाद अच्छी समीक्षाएं मिलीं और फिल्म इंडिया ने हिंदी स्क्रीन पर नर्गिस की बतौर अभिनेत्री  शानदार शुरुआत बताया था यह 1943 की नौवीं सबसे अधिक कमाई करने वाली  फिल्म थी 

गुलाम मोहम्मद द्वारा लिखित, पटकथा और संवाद आगा जानी कश्मीरी द्वारा थे संगीत रफीक गजनवी द्वारा तैयार किया गया था हालांकि फिल्म का श्रेय एक गीतकार मेहरुल कादरी को दिया गया है,लेकिन दो अन्य गीतकार भी थे,अंजुम पिलीभीति और आगा महशर शिराज़ी फिल्म में पूरे 10 गाने है 'नर्गिस 'के लिए गाने शमशाद बेगम ने गाए थे 'बदले जो ज़माने की तक़दीर 'गाने में चार्ली ने भी अपना स्वर दिया है मोतीलाल ने अपने गाने खुद गाए थे चूँकि उस वक्त आज़ादी का आंदोलन शीर्ष पर था तो इसलिए देशभक्ति से ओतप्रोत कुछ गाने भी रखे गए थे जो आज़ादी से पहले के उस युग को दर्शाते हैं जब देश गुलाम था और यह फिल्म बनी थी। पहला गाना था "बदले जो जमाने की तकदीर हमारी है" और दूसरा था "मेरी माता मेरी माता, भारत माता" 'जालिम जवानी काफिर अदाएं ' मोती लाल की सोलो आवाज़ में है 

आज महबूब खान की फिल्म 'तक़दीर' देखने पर एक हास्यापद ड्रामा लग सकती है क्योंकि कुम्भ के मेले में बिछुड़ने-मिलने का फार्मूला अब सिर्फ मिम्स के रूप में सोशल मिडिया पर ही देखने को मिलता है ,जज जमना दास की पत्नी का अपनी बेटी में अपने लड़के को देखना  और बाबू को लड़की मानकर उसका पालन-पोषण करना भी समझ से परे है ,बद्रीप्रसाद के गुम लड़के का जज के नौकर को मिलना , और जज जमना दास की लड़की श्यामा का उसी कुम्भ के मेले में बद्रीप्रसाद के मैनेजर घनश्याम को मिलना तर्क संगत नहीं लगता आज दर्शक इसे सिरे से नकार देंगे लेकिन फिर भी जेंटलमेन अभिनेता कहलाने वाले मोती लाल और बिल्लोरी आँखों वाले सशक्त अभिनेता चंद्र मोहन का अभिनय सहज और नेचुरल लगता है नूर मोहम्मद चार्ली जो अपने हास्य किरदारों के लिए आज भी याद किये जाये उन्हें महबूब खान ने सेठ बद्रीप्रसाद का रोल देकर पता नहीं क्यों जाया कर दिया ? जबकि वो कॉमिक रोल के लिए मशहूर थे 

फिल्म का सबसे बड़ा प्लस पॉइंट 14 साल की कमसिन खूबसूरत नर्गिस को परदे पर देखना है फरदून ईरानी की फोटोग्राफी में नर्गिस का सौंदर्य सिल्वर स्क्रीन पर फूल की तरह खिल कर आया है श्यामा के रोल में वो बड़ी मासूम लगी है तब शायद नर्गिस को पता भी नहीं होगा कि वो एक दिन हिंदी फिल्मो की मशहूर अभिनेत्री बनेगी लेकिन यहाँ यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा कि 33 वर्ष के मोती लाल उनकी जोड़ी जमी नहीं 'मेरी माता भारत माता' गाने में नर्गिस के हाथ में दरांती और कपड़े का गट्ठर है यह गाना लहराते खेतों में किसानो पर फिल्माया गया है सम्भवता यह दृश्य दर्शको को बाद में आने वाली महबूब खान की सबसे मशहूर फिल्म मदर इंडिया (1957) की झलक जरूर दिखाता है लगभग 14 वर्ष बाद नर्गिस को इसी रूप में परदे पर दिखाने का मोह महबूब खान नहीं छोड़ पाए 

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