‘मधुमती’ (1958 ) |
कमाल अमरोही की महल के हॉरर दृश्यों में आज की तरह धांय-धांय का शोर
करने के बजाए एक ठंडी ध्वनि, हॉल में बैठे दर्शक की नसों में झिरझिरी पैदा
कर जाती है जिसे आप आज भी महसूस कर सकते है यही इस फिल्म की खासियत भी
है महल (1949 ) रहस्य रोमांच की कहानी पर बनने वाली पहली
ब्लॉकबस्टर सुपरहिट हिन्दी फ़िल्म थी जिसने आने वाली रोमांटिक और सामाजिक
फिल्मो के परम्परागत मायने बदल दिए और हिंदी सिनेमा में रहस्य और रोमांच से
भरपूर फिल्मे बनने दौर शुरू हुआ मशहूर फिल्म निर्देशक बिमल रॉय '
महल ' में मुख्य एडिटर थे "महल "की एडिटिंग करते करते वो इतने प्रभावित
हुए की उन्होंने ठान लिया की आगे जा कर इसी रहस्य रोमांच फॉर्मूले पर फिल्म
बनायेगे और और ऐसा हुआ भी .......आगे जा कर अपनी फिल्म मधुमती (1958) में
रहस्य ,रोमांच फॉर्मूले को बखूबी आजमाया बिमल राय की मधुमती में
अच्छे और बुरे का संघर्ष तो है ही लेकिन शहरी और आदिवासियों के बीच वर्चस्व
की लड़ाई भी है ऋतविक घटक की लिखी कहानी दशको को बांधे रखती और अपनी पकड़ नहीं छोड़ती
मधुमती’ विमल राय द्वारा निर्मित पुर्नजन्म की
दिलचस्प कहानी पर आधारित थी पुनर्जन्म के सिलसिले को पूरी शिद्दत से दिखाने
के के लिए दिलीप कुमार और वैजयंतीमाला के किरदार एक से अधिक बार रचे गए
हैं फिल्म की कहानी शुरू होती है एक भयानक तूफानी रात से घनघोर
बरसात में नायक देवेंद्र (दिलीप कुमार) अपने डॉक्टर मित्र (तरुण बोस) के
साथ कार से अपनी पत्नी को लेने रेलवे स्टेशन जा रहा है रास्ते में पेड़
गिरने के कारण रास्ता बंद है समय गुजारने के लिए एक पुरानी हवेली में
शरण लेते हैं हवेली का दरवाजा डॉक्टर के खटखटाने से नहीं
बल्कि देवेंद्र के डोरी खींचने से खुलता है बस यहीं से बनता है रहस्यमय
वातावरण .....अंदर खाली दीवार देखकर देवेन्द्र को याद आता है कि वहां एक
तस्वीर होनी चाहिए हवेली का चौकीदार बताता है कि वहां तस्वीर थी जरूर
लेकिन गिर जाने से हटा दी गई है हवेली में तरह-तरह की आवाजें देवेन्द्र को
परेशान करती हैं उसे लगता है कि वह वहां पहले भी आ चुका है .....यादों के
पर्दे खुलते जाते हैं उसे धीरे-धीरे पुराने जन्म की बातें याद आने लगती
हैं वह अपने डॉक्टर दोस्त और हवेली के चौकीदार को कहानी सुनाना शुरु
करता है और फिर शुरू होती है पिछले जन्म के आनंद और आदिवासी बाला
मधुमती की असफल प्रेमकथा....
आनन्द ( दिलीप कुमार ) श्यामनगर टिम्बर
ऍस्टेट में, जहाँ पेड़ों की कटाई का कारोबार होता है, नया मैनेजर बनकर आता
है आनन्द एक पेंटर भी है वहाँ उसकी मुलाक़ात वहीं के जंगलों में रहने वाली
लड़की मधुमती ( वैजयन्ती माला ) से होती है और दोनों में प्यार हो जाता है इस कारोबार का मालिक़ राजा उग्रनारायण (प्राण) बड़ा
ज़ालिम आदमी है वह मधुमती को अपनी हवस का शिकार बनाने के लिये आनन्द को
बेवजह बाहर किसी काम से भेज देता है और धोखे से मधुमती को अपनी हवेली में
आने का बुलावा देता है मधुमती उग्रसेन से अपनी इज़्ज़त बचाने के लिए हवेली से
कूद जाती है आनन्द जब लौट कर वापिस आता है तो मधुमती को न पाकर
बदहवास सा हो जाता है आनन्द का नौकर चरनदास (जॉनी वॉकर) उसे सारी सच्चाई
बताता है आनन्द उग्रनारायण से बदला लेने के लिये उसकी हवेली जाता है लेकिन
वहाँ उग्रनारायण के गुर्गे उसे मार-मार कर अधमरा कर देते हैं और मरा हुआ
समझकर खाई में फेंकने जा रहे होते है तो उसका रास्ता मधुमती का पिता पवन
राजा ( जयन्त ) रोक लेता है लड़ाई में पवन राजा मारे जाते हैं लेकिन मौका
देखकर चरनदास आनन्द को बचा ले जाता है
आनन्द रामपुर डाक बंगले
में रहने लगता है और पागल सा होकर मधुमती का चित्र लेकर जंगलों में इधर-उधर
भटकने लगता है वहीं उसकी मुलाक़ात शहर से आयी एक लड़की माधवी
(वैजयंतीमाला का दूसरा रूप) से होती है जिसको वह अपनी मधुमती समझ बैठता है
माधवी आनंद को समझती है उसकी मधुमती नहीं है लेकिन आनन्द द्वारा बनाया हुआ
मधुमती का चित्र देख कर वह समझ जाती है कि आनन्द सच कह रहा है यही
से शुरू होता है मधुमती का रहस्य जो राजा उग्रनारायण के अंत और मधुमती के
रहस्यमय इंतकाम के साथ ही ख़त्म होता है ......नायक, नायिका, खलनायक और
हास्य अभिनेता के खूबसूरत ताने-बाने से गुंथी कहानी दर्शकों को सम्मोहित कर
देती है हाल में बैठा दर्शक खुद ये महसूस करने लगता है की वो मरकर
पिछले जन्म में यह फिल्म देख रहा है या आगे वो आगे जाकर मधुमती की तरह
हवेली की दीवार से कूद कर मर जायेगा बीच बीच में क़ुदरती नजारों के
बीच गूंजती पुकार ‘आ जा रे परदेशी’ रोमांच पैदा करती है अंत
में देवेंद्र (दिलीप कुमार) जब अपनी पत्नी राधा (वैजयंतीमाला का तीसरा रूप)
को रेल दुर्घटना में सुरक्षित पाकर राहत की सांस लेता है तो मंत्रमुग्ध
दर्शक भरपूर मनोरंजन में नहा उठता इस पुनर्जन्म की अवधारणा में आनंद और मधु
की प्रेमकहानी का दिलचस्प अंत देवेन्द्र और राधा के रूप में होता
है 'मधुमती पुनर्जन्म को केंद्र में रखकर आगे बनने वाली कई फिल्मों के
लिए पथ प्रदशक साबित हुई और थ्रिलर औ रसस्पेंस फिल्मों को हिंदी फिल्म जगत
में एक नयी दिशा मिली
राजा उग्रनारायण की भूमिका में प्राण ने क्रूर और एय्याश सामंत की भूमिका की है उनका सिगरेट से धुएं के छल्ले उड़ाने का खास अंदाज़ इसी फिल्म में था |
मधुमती की अधिकतम शूटिंग उत्तराखंड के नैनीताल, अल्मोड़ा, रति
घाट आदि जगहों पर हुयी थी |
पुनर्जन्म के सिलसिले को पूरी शिद्दत से दिखाने
के के लिए दिलीप कुमार और वैजयंतीमाला के किरदार एक से अधिक बार रचे गए
हैं |
मधुमती में दिलीप गुप्ता का छायांकन काबिले तारीफ है इस फिल्म में उन्होंने कोहरे का बड़ी खूबसूरती से चित्रण किया है गाती हुई नायिका का चेहरा बहुत देर तक कोहरे में ढंका रहता है जिससे दर्शकों में उसे देखने की जिज्ञासा बढ़ जाती है पहाड़, झरने, पेड़, पत्ते, पक्षी सभी फिल्म के कलाकार ही मालूम होते हैं छाया प्रकाश के खेल से फिल्म में रहस्यमय वातावरण बनाने में वो सफल भी रहे मधुमती के पहले किसी ने प्रकृति को इतनी सुंदरता से कैमरे में कैद नहीं किया था। फिल्म ब्लैक एंड व्हाइट होने के बावजूद रंगीन लगती है जब कैमरा घाटी में नीचे की ओर देखता है तो गाने की आवाज धीमी आती है और जब मिड शॉट होता है तो आवाज सामान्य हो जाती है पक्षियों की चहचहाहट दृश्य को जीवित करती है हवेली का सेट वास्तविक मालूम होते हैं खलनायक प्राण के आने की सूचना पक्षियों के चीखने से मिलती है जब मधुमती हवेली की छत से गिरती है तो कुत्ते के रोने की आवाज बहुत कुछ कह जाती है.यह निर्देशक का ही कमाल है कि उन्होंने पक्षियों और कीड़ों-मकोड़ों से भी अभिनय करवाया है। फिल्म का सबसे बड़ा आकर्षण लोक धुनों पर आधारित इसके गीत थे सब के सब गीत सुपर हिट थे प्रसिद्ध संगीतकार सलिल चौधरी का संगीत फिल्म को एक रहस्यमयी आवरण में ढालने में कामयाब रहा शैलेन्द्र के लिखे मधुमती के सारे गीत हिट गये थे "आज रे परदेसी "और 'सुहाना सफर' आज भी लोगों के दिलों में राज करता है ....''सुहाना सफर और ये मौसम हसीं '' इस फिल्म का सदाबहार गीत है खुशगवार मौसम, ठंडी हवा की बयार, हरियाली और सुहावने दृश्य हो तो ये गीत आज भी बरबस याद आ जाता है इस गीत के पीछे भी एक किस्सा है फिल्म 'मधुमती' के संगीतकार 'सलिल चौधरी' निर्माता निर्देशक' बिमल रॉय 'को तो पसन्द थे किंतु फ़िल्म वितरकों को नहीं .....स्वयं फ़िल्म 'मधुमती' के मुख्य नायक दिलीप कुमार संगीतकार नौशाद को इस फ़िल्म में संगीत निर्देशक के रूप में देखना चाहते थे फ़िल्म वितरकों और अभिनेता दिलीप कुमार के दबाव के बावजूद बिमल रॉय ने सलिल चौधरी को रखने का निर्णय लिया और उन्हें विश्वास दिलवाया की ''हम गीतों की रिकॉर्डिंग कर लेते हैं यदि न गाने पसंन्द ना आये तो संगीतकार बदल देंगे''
एक दिन सलिल चौधरी व गीतकार शैलेन्द्र मुंबई के निकट खंडाला ड्राइव कर के घूमने गए ....दोनों खंडाला की पहाड़ियों की ऊपरी चोटी पर बातों में व्यस्त थे तभी एक गड़रिया तेज आवाज़ में उर्रर्रर करता हुआ भेड़ों के झुंड को ले उनके सामने से निकला जिसे सुन संगीतकार सलिल चौधरी ने वहीं मन ही मन ये धुन तैयार कर ली और वापिस आने पर गाने में डाल दिया गीत ''सुहाना सफर '' की शुरुआत इसी उर्रर्रर-उर्रर्रर की ध्वनि से होती है पहले इस इस गीत के लिए गायक तलत महमूद को तय किया गया किन्तु उन दिनों गायक मुकेश की आर्थिक स्थिति को ध्यान रख तलत महमूद ने स्वयं के स्थान पर मुकेश के लिए सिफारिश की ये उस समय के गायकों में आपसी प्रेम को बखूबी दर्शाता है
जुल्मी संग आँख लड़ी ,चढ़ गयो पापी बिछुआ, दिल तड़प तड़प के,जंगल
में मोर नाचा, घड़ी घड़ी मोरा दिल धड़के टूटे हुये ख़्वाबों और मुबारक बेगम
की आवाज़ में हम हाल-ऐ-दिल सुनाएंगे सुपर हिट रहे गीतों को स्वर लता
मंगेशकर,मुकेश,मोहम्मद रफ़ी और मन्ना डे जैसे दिग्गजों ने दिया पहले बिमल दा ने 'आजा रे परदेसी ' गीत को खारिज कर दिया, बाद में उन्होंने सहमति व्यक्त की और यह गाना इस फिल्म के लिए एक मील का पत्थर बन गया। 'आजा रे परदेसी ' गाना जब जब भी फिल्म में गूंजता है एक रहस्मयी खामोशी परदे पर छा जाती है
मधुमती में दलीप कुमार,वैजयंती, प्राण ,जयंत ,तिवारी, जॉनी वॉकर,तरुण बोस ,जगदीश राज मुख्य भूमिका में है चरणदास की भूमिका को जॉनी वॉकर ने बखूबी निभाया मधुमती के पिता की भूमिका पवन राजा में जयंत और प्राण के खूंखार नौकर के रूप में तिवारी भी अपनी भूमिका में जंचे खलनायक प्राण का नाम ही आतंक मचाने के लिए काफी था राजा उग्रनारायण की भूमिका में उन्होंने क्रूर और एय्याश सामंत की भूमिका साकार की है अंत में उनकी सारी अकड़ निकल जाने का अभिनय भी लाजवाब है उनका सिगरेट से धुएं के छल्ले उड़ाने का खास अंदाज़ इसी फिल्म में था मधुमती वैजयंती माला के करियर की एक उल्लेखनीय फिल्म साबित हुई उम्दा अभिनय के लिए उन्हें ‘फिल्मफेयर’ अवार्ड मिलने से बात साफ हो जाती है इस फिल्म में वैजयंती माला ने तिहरी भूमिका निभाकर दर्शकों को रोमाेंचित कर दिया मधु,माधवी और राधा के किरदारों से वैयजंतीमाला प्रमुखता से उभर कर आई हैं अपने मनमोहक नृत्य से वैजयंतीमाला ने लाखों लोगों के दिलो को जीता था मधुमती ने 1959 में नौ फिल्मफेयर अपने नाम किए यह रिकॉर्ड 37 सालों तक कायम रहा वैजयंतीमाला बेस्ट फिल्म फेयर एक्ट्रेस अवार्ड 1959 में ( मधुमती ) के लिए नॉमिनेट भी हुई थी लेकिन ये अवार्ड उन्हें फिल्म साधना (1958 ) के लिए मिल गया
मधुमती अपने समय की एक जबरदस्त हिट
फिल्म रही है मधुमती की अधिकतम शूटिंग उत्तराखंड के नैनीताल, अल्मोड़ा, रति
घाट आदि जगहों पर हुयी थी जहाँ फिल्म देखने के बाद भारी संख्या में लोग
मधुमती के प्राकृतिक दृश्य देखने के लिए घूमने आने लगे बाद में ये स्थान
पिकनिक स्पॉट के रूप में राज्य सरकारो द्वारा विकसित किये
गए हल्द्वानी के टनकपुर रोड में कैलाश व्यू होटल ही पुराने समय का ऐसा होटल था जहाँ लोग सुविधाओं के साथ टिक सकते थे यहाँ देश-विदेश के नामी लोगों का डेरा लगा करता था इस होटल में फिल्म मधुमती की शूटिंग हुई थी जिसमें वैजयंती माला, दिलीप कुमार, जॉनी वॉकर सहित पूरी यूनिट के लोग रुके और यहीं रहकर शूटिंग का संचालन किया था मधुमती फिल्म की आउटडोर शूटिंग का एक किस्सा दलीप कुमार अक्सर सुनाते रहते है वह कहते है की.......... " उस वक्त वहां पर मैं, प्राण, जॉनी वॉकर, डायरेक्टर बिमल रॉय और उनके असिस्टेंट ऋषिकेश मुखर्जी मौजूद थे किसी भी दिन पैकअप के बाद असल मजा शुरू होता था मैं और प्राण पंजाबी में बात करते तो बिमल और ऋषि दा बंगाली में बतियाने लगते बीच में किस्सों और शायरी का भी दौर चलता उधर खानसामा हमारे लिए उम्दा पकवान बनाने में मशगूल रहता मैं दाद देना चाहूंगा प्राण साहब की शूटिंग के बाद की ये दोस्ती ,यारी काम के दौरान उनके चेहरे से नदारद थी फिल्म में वह राजा उग्र नारायण का किरदार निभा रहे थे,जो ग्रे शेड लिए था लेकिन दिक्कत तब होती थी खाने के समय में वो तो आनंद से दलीप कुमार बन जाता था पर प्राण साहेब राजा उग्र नारायण ही बने रहते थे वो किरदार से बाहर नहीं आना चाहते थे "
दलीप कुमार नैनीताल में मधुमती की शूटिंग के दौरान वहाँ के स्थानीय निवासियों और सह कलाकारों के साथ |
मधुमती से प्रेरित होकर
कुदरत,(1982) जैसी कई और फिल्मे भी बनी वो बेहद सफल भी हुई लेकिन बिमल राय की इस ब्लैक एन्ड वाइट मधुमती की बात ही कुछ हटकर है म.....धुमती फ़िल्म का वह दृश्य जिसमें
मधुमती की रुह राजा उग्रनारायण को पकड़वाने में आनन्द की मदद करती है,
हू-ब-हू फ़िल्म ओम शांति ओम (2007) में नक़ल किया गया है और इसी वजह से
बिमल रॉय की पुत्री रिंकी भट्टाचार्य ने फ़िल्म के निर्माता फरहा खान और
शाहरुख़ खान को नक़ल करने के लिये अदालत में ले जाने की धमकी दी थी लेकिन
फिल्म ''ओम शांति शांति '' के रंगीन होने के बावजूद भी ये दृश्य उतना
ज्यादा प्रभाव पैदा नहीं करता जितना ब्लैक एन्ड वाइट 'मधुमती में करता
है फिल्म का आखिरी सीन बहुत रोमांचकारी है इस शानदार क्लाइमैक्स का अंदाज़ा दर्शक भी नहीं लगा पाते और भौचक्के रह जाते है आपकी जिज्ञासा कम न हो जाये
इसलिए कलाइमेक्स नहीं लिखा फिल्म के अंत के कुछ क्षण आप डराने के साथ साथ अंदर तक को हिला देंगे .......आशा करता हूँ की समीक्षा पढ़ कर आप के मन में भी बिमल राय की मधुमती देखने की इच्छा जरूर जाग उठी होगी देखिये आनंद लीजिए फिर मिलते है किसी और पुरानी फिल्म की यादो के साथ..........
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