Thursday, November 30, 2017

शहीद (1965 ) .....जिस फिल्म ने मनोज कुमार का भगत सिंह बनने का ख़्वाब पूरा किया

शहीद (1965 )
हर साल स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस पर देशभक्ति गीत हर गली नुक्कड़, स्कूल या सरकारी कार्यक्रमों से सुने जा सकते हैं फ़िल्म शहीद का गाना .. ' ऐ ..वतन ऐ.. वतन ' .. उन गानों की फेहरिश्त में शामिल हैं जिन्हें हर राष्ट्रीय पर्व पर सुना जा सकता है राष्ट्र प्रेम वाली इन फ़िल्मों से एक नाम जुड़ा हुआ है वो है मनोज कुमार का........ मनोज कुमार ने देशभक्ति वाली इतनी फ़िल्में कीं और वो इतनी हिट रहीं कि उनका नाम ही 'भारत कुमार' पड़ गया मनोज कुमार जी को बचपन में गली मोहल्ले में ही शहीद भगत सिंह पर एक नाटक करना था उनकी कद काठी ठीक थी तो उन्हें भगत सिंह का रोल दे दिया गया लेकिन जब ये नाटक हुआ तो मोहल्ले के सभी लोगों के बीच में स्टेज पर जाने से मनोज कुमार हिचकने लगे शर्म के कारण स्टेज पर ना जाने पर वो भगत सिंह का रोल नहीं कर सके और उनके मन में ख़लिश रह गई तब मनोज कुमार जी के पिताजी ने उनसे कहा कि ...."छोड़ यार तू नकली भगत सिंह भी न बन सका "  उसके बाद भगत सिंह मनोज कुमार के अंदर पनपने लगा



बड़े होने के बाद मनोज कुमार जी ने भगत सिंह के बारे में पढ़ना शुरू किया उनको जहां से भी कोई मैगज़ीन या कुछ भी मिलता उसे पढ़ लेते तीन चार साल तक वो इस खोज में लगे रहे इसके लिये लगभग चार साल तक उन्होंने सामग्री जुटाई। अपनी रिसर्च के दौरान वे विभिन्न अख़बारों के दफ़्तर गये। पुरानी पत्रिकाओं और पुस्तकों से तथ्य एकत्रित किये। उस समय भगत सिंह पर कोई ज्यादा किताबे नहीं छपी थी इसलिए इतना वक़्त लगा उन्होंने जद्दोजहद और मेहनत के बाद एक स्क्रिप्ट लिखी और अपने दोस्त केवल कश्यप को दिखाई और ज़िद की कि मुझे इसी पर एक फ़िल्म बनानी है इस प्रकार शहीद (1965 ) फ़िल्म बनी और मनोज जी का भगत सिंह बनने का सपना भी पूरा हुआ उनकी मेहनत रंग लाई इस फ़िल्म को नेशनल अवार्ड मिला लेकिन मनोज जी ने इस का सारा क्रेडिट अपने दोस्त केवल कश्यप को दिया इस फ़िल्म ‘शहीद’ ने मनोज कुमार की छवि रोमांटिक हीरो से बदल कर ‘भारत कुमार’ कर दी।


फ़िल्म की कहानी सन् 1916 के गुलाम हिन्दुस्तान से शुरू होती है जहाँ किसान से लेकर मजदूर सब अंग्रेजी जुल्मो सितम से आहत है सरदार किशन सिंह ( सप्रू ) अपनी पत्नी ( कामिनी कौशल ) और अपने परिवार के साथ आज़ादी की लड़ाई लड़ रहा है ब्रिटिश राज के खिलाफ़ बगावत के कारण उनको अपने भाई छोटे भाई सरदार अजित सिंह ( कृष्ण धवन ) के साथ पुलिस गिरफ़्तार कर ले जाती है। सरदार किशन सिंह का बेटा भगत  सिंह जो अभी आठ नौ साल का बच्चा है अपनी आँखों से यह सब देखता रह जाता है भगत सिंह ( मनोज कुमार ) युवा होते ही अपने चाचा के नक्शे-कदम पर चलकर साइमन कमीशन के विरोध में चल रहे आन्दोलन में शामिल हो जाता है। पुलिस लाठीचार्ज में लाला लाजपत राय की मौत हो जाती है भगत सिंह का खून ख़ौल उठता है वो लाला जी की मौत का बदला लेने की ठानता है इस लड़ाई में उसको सुखदेव ( प्रेम चोपड़ा ),राजगुरु,( अनन्त पुरुषोत्तम मराठे ) चन्द्रशेखर आज़ाद ( मनमोहन ) का साथ मिलता है सब मिलकर लालाजी की मौत का बदला लेने की योजना को अंजाम देते हैं और लाला जी की मौत के जिम्मेदार अँगरेज़ अधिकारी सांडर्स को मार डालते है भगत सिंह को सिख होने के कारण पगड़ी की वजह से एक प्रमुख संदिग्ध के रूप में पहचान लिया जाता है पुलिस की गिरफ़्तारी से बचने के लिये भगत सिंह अपने केश कटा देता है और सिर पर पगड़ी की जगह यूरोपियन हैट लगाकर मौका-ए-वारदात से दुर्गा भाभी ( निरूपा राय ) के साथ फरार हो जाते है 


बुलंद आवाज़ से अंग्रेजी हकूमत को जगाने के लिए भगत सिंह दिल्ली असेम्बली में बम विस्फोट करके सुखदेव और राजगुरु के साथ गिरफ़्तार हो जाते है जहाँ जेल में अँगरेज़ जेलर ( मदन पुरी ) भगत सिंह को अमानवीय यातनाये देता है और सरकारी ग़वाह बनने को कहता है लेकिन भगत सिंह जेल में ही अपने साथियो के साथ आमरण अनशन शुरू कर देता है इस दौरान ही उनकी मुलाकात जेल में आये एक डाकू केहर सिंह ( प्राण ) से होती है भगत सिंह से मिलकर केहर सिंह का ह्रदय परिवर्तन हो जाता है जेल में अंग्रेजी हकूमत जबरन उनका अनशन तुड़वाने का प्रयास करती है भगत सिंह पर झूठा मुकद्दमा चलता है एक क्रांतिकारी जयगोपाल ( राज किशोर ) भगत सिंह के खिलाफ झूठी गवाही दे देता है भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव सभी मौत की सजा सुनाई जाती है इधर क्रांतिकारी चंद्रशेखर जेल तोड़ कर भगत सिंह को छुड़ाने की योजना बनाता है लेकिन मुखबिरी के कारण अल्फ्रेड पार्क इलाहबाद में एक मुठभेड़ में चंद्रशेखर को भी शहीद कर दिया जाता है


पूरे हिंदुस्तान में भगत सिंह की लोकप्रियता बढ़ने लगती है और उनकी फांसी पर रोक की मांग उठने लगती है जनता के विरोध के डर से ब्रिटिश सरकार समय से पहले ही भगत सिंह के घरवालो को बिना बताये फांसी देने का फैसला करती है जिसका जेल का सेवादार छतर सिंह ( अनवर हुसैन ) विरोध करता है अंत में फ़िल्म की कहानी सुखदेव-राजगुरु-भगतसिंह की फाँसी के साथ बड़े ही मार्मिक क्लाइमेक्स पर जाकर खत्म होती है। और देश भक्ति का सन्देश छोड़ जाती है फिल्म मुकदमें व जेल में यातनाओं के दृश्यों के साथ देशभक्ति के गानों से भरपूर है जिसमें सभी कलाकार अपने-अपने अभिनय की छाप छोड़ते नज़र आते हैं। तीनों शहीदों की प्रमुख भूमिका मनोज कुमार, प्रेम चोपड़ा और अनन्त पुरुषोत्तम मराठे ने निभायी थी पूरी फ़िल्म में तीनों ने मेकअप नहीं किया था। केवल अंतिम दृश्य में जब उन्हें फाँसी के तख्ते पर ले जाया जा रहा था, मेकअप किया ताकि मौत के सामने भी उनके चेहरों पर चमक दिखलाई पड़े। इन शहीदों को फाँसी लाहौर जेल में हुई थी। उससे मिलते जुलते लुधियाना जेल में उस दृश्य की शूटिंग हुई। हिन्दी फ़िल्मों में पहली बार फ़्रीज़्ड शाट्स का प्रयोग इस फाँसी के दृश्य में किया गया था। इस फ़िल्म में मनोज कुमार का ही प्रमुख रोल था क्योंकि सारी कहानी शहीद भगत सिंह के इर्द-गिर्द घूमती है परन्तु भगत सिंह के परिजनों सहित उनके साथियों, जेलर एवं लोक-अभियोजकों ( पब्लिक प्रॉसीक्यूटर्स ) की भूमिका में प्राय: सभी कलाकारों जैसे कामिनी कौशल ,असित सेन ,प्राण ,कमल कपूर, इफ़्तेखार ,इन्द्राणी मुखर्जी ,अनवर हुसैन का अभिनय भी प्रभावशाली रहा मनोज कुमार कई क्रान्तिकारियों, शहीद भगत सिंह की माँ एवं उनके वक़ील से मिले। मनोज कुमार के पिता चण्डीगढ़ जाकर भगत सिंह की माँ विद्यावती जी को पुरस्कार समारोह के लिये दिल्ली ले कर आये। विद्यावती जी के मंच पर आने पर दर्शकों ने खड़े हो कर पन्द्रह मिनट तक तालियाँ बजाईं। इन्दिरा गांधी जी ने विद्यावती जी के चरण स्पर्श कर आशीर्वाद लिया। केवल पी कश्यप और मनोज कुमार ने पुरस्कार के पैसे विद्यावती जी को भेंट कर दिए फ़िल्म को सर्वश्रेष्ठ हिन्दी फ़ीचर फ़िल्म तथा राष्ट्रीय एकता पर बनी सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म के राष्ट्रीय पुरस्कार मिले।

मनोज कुमार ,मनमोहन शहीद के सेट पर 

फ़िल्म का निर्माण एस. राम शर्मा के निर्देशन में केवल कश्यप ने किया था इसकी पटकथा बी. के. दत्त की मूल कहानी को आधार बनाकर दीन दयाल शर्मा ने लिखी थी शर्मा ने ही इसके संवाद भी लिखे थे प्रेम धवन ने पूरी फ़िल्म का न केवल संगीत दिया था अपितु कुछ गीत भी लिखे थे। सिनेमैटोग्राफी रंजोत ठाकुर ने की थी जबकि इसका सम्पादन बी.एस.ग्लाड एवं विष्णु कुमार सिंह ने किया था। मोहम्मद रफ़ी, मुकेश, मन्ना डे, महेन्द्र कपूर और लता मंगेशकर ने गीतों को अपनी आवाज़ देकर अमर बनाया।.... ऐ वतन ऐ वतन हमको तेरी कसम","सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है, "जोगी हम तो लुट गये तेरे प्यार में ", ओ मेरा रंग दे बसन्ती चोला" "पगड़ी सम्हाल जट्टा पगड़ी सम्हाल रे" "वतन पे मरने वाले जिन्दा रहेगा तेरा नाम" गाने हिट रहे मेरा रंग दे बसन्ती चोला" तो आजतक राजनीतिक प्रभात फेरियों में गाया जाता है.....
भगत सिंह की पूजनीय माँ विद्यावती के साथ मनोज कुमार 
भगत सिंह के साथी बटुकेश्वर दत्त, जिन्होंने दिल्ली असेम्बली में बम विस्फोट किया था उन्हीं की कहानी पर आधारित इस फिल्म की पटकथा पण्डित दीनदयाल शर्मा ने लिखी थी। यह भी महज़ एक संयोग कहा जायेगा कि जिस साल सन् 1965 में यह फ़िल्म रिलीज़ हुई थी उसी साल बटुकेश्वर दत्त का निधन हो गया। इस कारण कहानी और पटकथा लेखन के लिये बाद में दीनदयाल शर्मा को अकेले ही पुरस्कृत किया गया था। 13वें राष्ट्रीय फ़िल्म अवार्ड की सूची में शहीद फ़िल्म ने हिन्दी की सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म का पुरस्कार जीता। इसके अलावा इस फ़िल्म ने राष्ट्रीय एकता पर बनी सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म के लिये नर्गिस दत्त पुरस्कार भी अपने नाम किया किया।.शायद बहुत कम लोग जानते है की "जोगी हम तो लुट गये तेरे प्यार में जाने तुझको खबर कब होगी" गाने में मनोज कुमार की पत्नी शशि गोस्वामी ने ढोलक पर थाप लगायी थी जब फ़िल्म शहीद के गानों की रिकॉर्डिंग शुरू हुई तब वितरकों ने फिल्म से अपने हाथ पीछे खींच लिए उनका कहना था की ये फिल्म शायद उन्हें नुकसान दे सकती है तब अभिनेता मनमोहन ने रिकॉर्डिंग रुकने नही दी और अपनी फिएट कार बेच कर पैसा लेकर आये और उन्होंने  केवल कश्यप को पैसा दिया है मनोज कुमार ने भी अपने दोस्त मनमोहन का क़र्ज़ उतार दिया फ़िल्म की सिल्वर जुबली पर निर्माता केवल कश्यप ने मनमोहन जी को मर्सेडीज कार गिफ्ट की फ़िल्म के एक गाने को छोड़ कर सारे प्रेम धवन जी ने लिखें, एक गाना 'तू न रोना भगत सिंह की माँ ' उन्होंने भगत सिंह की माँ विद्यावती से मुलाक़ात के बाद लिखा।
  
मनोज कुमारजी के तमाम नेताओं से अच्छे संबंध थे लाल बहादुर शास्त्री ,इंदिरा गांधी और अटल बिहारी वाजपेई भी उनकी फ़िल्में पसंद करते थे उस समय मनोज कुमार के आमंत्रण पर प्रधान मंत्री लाल बहादुर शास्त्री जी शहीद देखने आए हालांकि उनके पास वक़्त बहुत कम था लेकिन जब उन्होंने शहीद देखनी शुरू की तो अपनी सीट से उठ भी नहीं पाए फ़िल्म देखते हुए उनकी आंख में आंसू आ गए फ़िल्म ख़त्म होने के बाद लाल बहादुर शास्त्री ने अभिनेता मनोज कुमार से अपने नारे 'जय जवान जय किसान' को लेकर किसान और सैनिकों पर आधारित कोई फ़िल्म बनाने को कहा बाद में मनोज कुमार ने इस थीम पर फ़िल्म 'उपकार' (1967 ) बनाई


शहीद भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम पर आधारित अब तक की सर्वश्रेष्ठ प्रामाणिक फ़िल्म है इस फ़िल्म में अमर शहीद राम प्रसाद 'बिस्मिल' के गीत थे और कहानी भगत सिंह के साथी बटुकेश्वर दत्त की थी मनोज कुमार ने इस फिल्म में शहीद भगत सिंह का जीवन्त अभिनय किया था। हमारी फिल्म इंडस्ट्रीज़ में अब तक भगत सिंह की जीवनी पर लगभग आधा दर्ज़न से ज्यादा फिल्मे बन चुकी है लेकिन भगत सिंह के जीवन पर बनी फिल्मो में मनोज कुमार की "शहीद " सर्वश्रेष्ठ फिल्म है। फ़िल्म शहीद को शुरुआत में ज्यादा कामयाबी नहीं मिली जब लोगों ने फिल्म देखी तो उसकी तारीफ़ की तब जाकर धीरे-धीरे लोगों ने शहीद को देखना शुरू किया और फ़िल्म चली हिट भी हुई...... "मेरा रंग दे बसंती चोला " सुनकर श्रोताओं के मन में आज भी राष्ट्र प्रेम की हिलोरें उठने लगती हैं.....शहीद मनोज कुमार जी की भगत सिंह को सच्ची श्रद्धांजलि है 


शहीद के प्रीमियम पर श्री लाला बहादुर शास्त्री के साथ मनोज कुमार ,कामिनी कौशल 

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