Monday, November 20, 2017

कत्‍थक क्‍वीन..'' सितारा देवी '' ...

सितारा देवी
8 नवम्बर,1920  -  25 नवम्बर 2014

8 नवम्बर 1920 को कलकत्ता में एक दीपावली की पूर्व संध्या पर जन्मी ‘धन्‍नो’ से ‘कत्‍थक क्‍वीन’ का खिताब हासिल करने वालीं विख्‍यात नृत्‍यांगना सितारा देवी भारतीय जनमानस के आज भी कोई भूला बिसरा नाम नहीं है उनका नाम लेते ही माथे पर बड़ी बिंदी लगाए एक रोबदार महिला का चेहरा जेहन में उभरता है चाहे भले ही आज की पीढ़ी ने उनकी फिल्मे न देखी हो पर पर भरत नाट्यम में प्रवीण सितारा देवी को वो पहचानते जरूर है

कत्‍थक क्‍वीन सितारा देवी जी ने नृत्य की दुनिया में बहुत ऊंचा मुकाम हासिल किया उनमें बिजली जैसी तेजी थी एक बार गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर ने उनकी एक नृत्य प्रस्तुति देखी तो गदगद हो उठे और नाम दिया "नृत्य साम्राज्ञी " आगे चल कर सितारा देवी ने देश-विदेश में ढेरो सम्मान पाए सितारा को बचपन में प्यार से ''धन्नो '' कहा जाता था लेकिन उनका असली नाम धन लक्ष्मी था  1933 में बंबई से काशी आए फिल्म निर्माता निरंजन शर्मा को एक ऐसी अदाकारा की तलाश थी जिसमें नृत्य के साथ ही सुरीले गायन की भी प्रतिभा हो कबीर चौरा में उनकी नजर उन दिनों कथक नर्तक पं. सुखदेव महाराज की सबसे छोटी पुत्री धन्नो के हुनर पर पड़ी बेटी का भविष्य संवारने के लिए चिंतित पिता सुखदेव ने धन्नो को फिल्म में काम करने के लिए बंबई भेजने के आग्रह को स्वीकार करने में तनिक भी देरी नहीं लगाई जब महज 13 साल की उम्र में धन्नो का परिवार फिल्म की शूटिंग के लिए बंबई आ गया और फिल्मो से नाता जोड़ लिया शायद बहुत कम लोग ये बात जानते है की इंटरवल में दर्शकों के मनोरंजन के लिए सितारा देवी उस समय सिनेमा हाल की स्टेज पर डांस करती थीं ये परफॉर्मन्स सिर्फ 15 मिनट की होती थी लेकिन उन्हें दर्शको भरपूर वाह वाही मिलती थी


भारत की नामचीन नृत्य साम्राज्ञी सितारा देवी जी की ज़िन्दगी भी बेहद उतार चढ़ावो से भरी थी इनको बचपन में मां-बाप के लाड-दुलार से वंचित होना पड़ा था मुंह टेढ़ा होने के कारण भयभीत मां-बाप ने उसे एक दाई को सौंप दिया जिसने आठ साल की उम्र तक उसका पालन-पोषण किया। इसके बाद ही सितारा देवी अपने मां बाप को देख पाईं उस समय की परम्परा के अनुसार सितारा देवी का विवाह आठ वर्ष की उम्र में हो गया उनके ससुराल वाले चाहते थे कि वह घरबार संभालें लेकिन वह स्कूल में पढना चाहती थीं स्कूल जाने के लिए जिद पकड लेने पर उनका विवाह टूट गया .........चालीस के दशक में उन्होंने के.आसिफ से शादी की तब ये कोई नहीं जनता था की आगे चल कर आसिफ सिनेमा के 'मुग़ल' यानी 'मुगल-ए-आज़म' (1960) के डायरेक्टर बनेगे घर गृहस्थी की गाडी ठीक ठाक चल रही थी एक दिन उनके घर एक नौजवान आया वो 'दिलीप कुमार साहेब 'थे

सितारा देवी उनके आकर्षक व्यक्तित्व को देखकर अवाक रह गयीं जब उन्होने के.आसिफ से दलीप साहेब के गीत-संगीत और नृत्य की बारीकियों के ज्ञान के बारे में जाना तो अचंभित रह गई दिलीप कुमार उन्हें 'भाभी साहिबा ' कह कर पुकार रहे थे सितारा देवी ने उसने अनुमति मांगी - '' क्या मैं आपको भाईजान कह सकती हूं'' दिलीप कुमार साहब ने सहर्ष 'हां' कर दी तब फ़िल्मी दुनिया परिवार की तरह रहती थी और धन-दौलत से ज्यादा तरजीह रिश्तों को दी जाती थी सितारा देवी के रिश्ते दिलीप कुमार के परिवार से भी बहुत गहरे हो गए और ये भाई बहन का रिश्ता कुछ ऐसा गहरा बना की जब तक सितारा देवी जीवित रही तमाम धर्म के बंधन तोड़कर दलीप साहेब को राखी बांधती रही दिलीप कुमार साहेब उनसे अपने दिल की बातें भी शेयर किया करते थे पहले कामिनी कौशल और फिर मधुबाला को लेकर दिलीप कुमार की उदासी को भी सितारा देवी खूब समझती थीं और दलीप साहेब को एक बहन की तरह रास्ता भी दिखाती थी

लेकिन एक बहुत बड़ा तूफ़ान सितारा देवी की जिंदगी में आने वाला था इस तूफान को अपनी जिंदगी में लाने वाली भी खुद सितारा देवी ही थी आसिफ ने सितारा को खुश करने के लिए उनकी पक्की सहेली निगार सुल्ताना को 'मुगल-ए-आज़म' में एक अहम् रोल दिया जिसकी सिफारिश भी सितारा देवी ने खुद की थी लेकिन सितारा ने सपने में भी नहीं सोचा था कि एक दिन यह सहेली सौतन बन कर उसके ही घर आ जाएगी के.आसिफ ने निगार सुल्ताना से निकाह कर लिया मुग़ले आज़म की इस 'बहार 'ने सितारा देवी की दुनिया उजाड़ दी सितारा देवी खून के घूँट पीकर कर रही गई लेकिन फिर भी उन्होंने इसे भाग्य का लिखा माना और किसी तरह अपने उजड़े घर को संभाला ...कुछ सालो तक तो किसी तरह चलता रहा फिर एक दिन के.आसिफ ने अपनी हद तोड़ दी आसिफ ने अपने बहुत अच्छे दोस्त के घर पर ही डाका मार दिया। उन्होंने दिलीप कुमार की बहन अख्तर से शादी कर ली अख्तर दिलीप साहेब की छोटी, प्यारी बहन थी उन्होंने उसे पढ़ने के लिए अमेरिका भी भेजा था इस विश्वासघात से दिलीप कुमार साहेब को बहुत सदमा पहुंचा उन्होंने आसिफ और अपनी बहन से सारे रिश्ते तोड़ दिए यह तो शुक्र था कि 'मुगल-ए-आज़म पूरी हो चुकी थी नाराज़गी इतनी गहरी थी कि दिलीप कुमार न तो फिल्म के प्रीव्यू में गए और न ही प्रीमियर अटेंड किया

सितारा देवी भी आसिफ से बहुत ख़फ़ा हुईं उनका धैर्य जवाब दे गया उन्होंने आसिफ को बहुत कोसा बात यहां तक बढ़ी कि उन्होंने आसिफ घर छोड़ दिया और जाते जाते श्राप दिया - '' बेमौत मरोगे तुम आसिफ मैं तुम्हारा मरा मुंह भी न देखूँगी '' फिल्म मुगले आजम के निर्देशक आसिफ से उनका रिश्ता टूट गया और उन्होंने तलाक ले लिया

सितारा देवी ने निरंजन की पहली फिल्म ‘वसंत सेना’ में नृत्यांगना के तौर पर अभिनय की शुरुआत की। इसके बाद फिल्मों में कोरियोग्राफी के जरिये भी उन्होंने अपनी छाप छोड़ी, वहीं कथक नृत्य को दुनिया में विशिष्ट पहचान भी दिलाई सितारा देवी एक बड़ी स्टार थीं लेकिन नृत्य में पूरी तरह से रमने के लिए उन्होंने फ़िल्में छोड़ दीं। 'मदर इंडिया' (1957 ) उनकी अंतिम फिल्म थीं पुरुष वेश में जिसमे उन्होंने उन्होंने एक शानदार डांस परफॉर्म किया थाशहर का जादू (1934), जजमेंट ऑफ़ अल्लाह (1935) ,रोटी (1942),नगीना, बागबान, वतन (1938), हलचल (1950) आदि उनकी मशहूर फ़िल्में थीं .

आसिफ से रिश्ता तोड़ने के करीब करीब बारह साल के बाद सितारा देवी को 09 मार्च 1971 की रात उनके नर्तक भांजे गोपी कृष्ण का फ़ोन आया कि ..."आसिफ नहीं रहे"... अपनी कसम के मुताबिक सितारा देवी जी ने जाने से मना कर दिया आखिर दलीप कुमार साहेब और अपने बच्चो के समझने पर सितारा देवी को अपनी कसम तोड़नी पड़ी वो आखिरी बार आसिफ का चेहरा देखने उनके घर गयीं गई

बनारस घराने से कथक की महारत हासिल कर उन्होंने इस नृत्य को विश्व पटल तक पहुंचाया ही,अपनी कला को शिष्यों में बोकर उन्होंने उसे पुष्पित-पल्लवित भी किया।उनको जानने वाले कहते हैं कि उन्होंने सिद्धांतों से कभी समझौता नहीं किया जब भी मान को ठेस लगी उसका बेबाक जवाब भी दिया देर से पद्म अलंकरण देने से खफा होकर वर्ष 2003 उन्होंने पद्मविभूषण को ठुकरा दिया था।और कहा ...' मेरी उपलब्धियां इतनी महान हैं कि मुझे भारत रत्न से कम कुछ भी मंजूर नहीं "....भारत में वैसे तो नृत्य की कितनी ही विधाएं प्रचलित हैं, लेकिन कथक की बात ही जुदा है इसे क्लासिकल नृत्य की विधा में सबसे ऊपर माना जाता है. सितारा देवी इसी विधा की मल्लिका के रूप में मशहूर थीं सितारा देवी के कथक में बनारस और लखनऊ के घरानों के तत्वों का सम्मिश्रण दिखाई देता है वह उस समय की कलाकार हैं, जब पूरी-पूरी रात कथक की महफिल जमी रहती थी


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