"महिपाल भंडारी " 24 दिसम्बर 1919 - 15 मई 2005 |
हिंदी सिनेमा में अगर किसी को पौराणिक फिल्मो का असली नायक माना जायेगा तो निसंदेह "महिपाल भंडारी " का नाम पहले आएगा राजस्थान के जोधपुर से सम्बन्ध रखने वाले महिपाल पौराणिक और धार्मिक फिल्मों के लोकप्रिय नायक बनकर उभरे और फैन्टेसी फिल्मों के जांबाज हीरो के रूप में अपनी पहचान बनाई....... नवरंग (1959) ,संपूर्ण रामायण (1961), बजरंग बाली (1956) और पारसमणि (1963) ,लक्ष्मीनारायण’ (1951) और ‘अलादीन और जादुई चिराग़’ (1952) जैसी अनेक फिल्मे उनके खाते में हैं ज्यादतर उन्होंने धार्मिक और फैन्टेसी किरदार निभाये ....महिपालजी को "महर्षि नारद " की भूमिका के लिए भी याद किया जाता है
महिपाल का जन्म 24 दिसम्बर 1919 को राजस्थान के जोधपुर कस्बे में हुआ किशोरावस्था से ही वे थियेटर से जुड़ गए वे कविताएं भी बहुत बढिय़ा लिखते थे उनकी भाषा पर अच्छी पकड़ थी तब महिपाल जोधपुर के जसवंत कॉलेज छात्र थे महिपाल जी ने फिल्म जगत में गीतकार के रूप में ही प्रवेश किया था आगे चल कर जब वो अभिनय में आकंठ डूब गए तो काव्य रचनाओं के लिए समय निकलना मुश्किल हो गया....... महिपाल ने माली, आपकी सेवा में, अदालत (पुरानी), मेरे लाल इत्यादि फिल्मों के गीत भी लिखे थे फिल्म आपकी सेवा में (1947 ) लता मंगेशकर ने अपने पार्श्व गायन की शुरुआत की थी इस फिल्म की एक ठुमरी ‘पा लागूं करजोरी रे’ को लता मंगेशकर का रेकॉर्ड किया पहला हिंदी पार्श्वगीत माना जाता है वे कविताएं भी बहुत बढिय़ा लिखते थे महिपाल चन्द भण्डारी ने अपने रिटायरमेंट के बाद कविताएं भी लिखी थी उनका एक कविता संग्रह प्रकाशित हुआ था महिपाल जी ने जिस युग में अपनी कविताये लिखी वो हिंदी में "छायावादी युग " के नाम से मशहूर है
महिपाल की चालीस के दशक के प्रारंभ में फिल्म-यात्रा उस समय शुरू हुई जब निर्देशक जी.पी.कपूर स्टार कास्ट के लिए जोधपुर आये और पुणे में एक साथ राजस्थानी और हिंदी में बनने वाली फिल्म में उन्हें नायक का रोल मिल गया राजस्थानी में यह फिल्म "नजराणो' के नाम से बनी, वहीं हिंदी में "नजराना'(1942) बनी... ये फिल्में नहीं चल पाईं, लेकिन महिपाल को पहली राजस्थानी फिल्म का नायक बनने का श्रेय मिल गया....... बाद में वे चार राजस्थानी फिल्मों में नायक बनने वाले भी अकेले अभिनेता बने .......पहली फिल्म नहीं चली तो महिपाल पुणे से मुंबई गए जहां वी.शांताराम की कंपनी राजकमल पिक्चर्स में उन्हें गीतकार के रूप में 100 रुपये महीने नौकरी मिली यहां उन्होंने चार फिल्मों में गीत लिखे, नौकरी के दौरान महिपाल राजकमल के कलाकारों कलाकारों को हिंदी का शुद्ध उच्चारण भी सिखाते थे....राजकमल में नौकरी छोड़ने के बाद वो सोहराब मोदी के मिनर्वा मूवीटोन से जुड़े .....सोहराब मोदी की "दौलत '(1949 ) ऐसी फिल्म थी जिसने महिपाल के साथ हीरोइन बनी मधुबाला को स्थापित कर दिया, लेकिन उन्हें इसका लाभ नहीं मिला महिपाल की किस्मत का सितारा होमी वाडिया की फिल्म गणेश महिमा (1950 ) से चमका उनकी नायिका थी मीना कुमारी ...... गणेश महिमा से वो एक पौराणिक स्टार का दर्जा प्राप्त करने में सफल रहे.....उसके बाद ,हनुमान पाताल विजय ,लक्ष्मीनारायण, (1951) और उनकी फैंटेसी फिल्म अलादीन जादुई चिराग़’ (1952) भी सफल रही और महिपाल पूरी तरह से फिल्मो में रम गए
महिपाल जी को वी. शांताराम कि फिल्म "नवरंग' के लिए हमेशा याद किया जाएगा "नवरंग' (1959) में महिपाल का अभिनय चरम पर था और इस फिल्म ने गोल्डन जुबली मनाई इसमें सी. रामचंद्र के संगीत से सजे, अपने जमाने के दो मशहूर गाने महिपाल पर फिल्माए गए हैं। ये हैं-"आधा है चंद्रमा रात आधी' और "तू छुपी है कहां, मैं तड़पता यहां।' .....महिपाल वैसे ही कवि थे इस फिल्म में भी उन्होंने राजकवि की भूमिका निभाई है.कहते है की नवरंग फिल्म उन्होंने सिर्फ सवा रूपये और एक नारियल के मेहनताने पर साइन की थी 'महिपाल को जिन फिल्मों के लिए याद किया जाएगा, उनमें बॉक्स आॅफिस हिट "पारसमणि'(1963) भी है संगीतकार जोड़ी लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल की यह पहली फिल्म थी और इसके सभी गाने हिट हुए इनमें मोहम्मद रफी-लता मंगेशकर का गाया सदाबहार रोमांटिक गीत "वो जब याद आए, बहुत याद आए' महिपाल पर ही फिल्माया गया है संगीतकार जोड़ी लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल की फिल्म पारसमणि का संगीत इतना हिट हुआ की उन्होंने अपने बंगले का नाम ही "पारसमणि "रख दिया..... इसके अलावा महिपाल को फिल्म "ज़बक'(1961) के एक मशहूर गीत के लिए याद किया जा सकता है चित्रगुप्त के संगीत से सजा उन पर फिल्माया गया यह गीत था-"तेरी दुनिया से दूर, चले हो के मजबूर, हमें याद रखना' इस गाने ने उनके साथ श्यामा थी
महिपाल ने अपने चालीस साल के फिल्मी कैरियर में लगभग 140 फिल्में कीं जिनमें 108 फिल्मों में वे नायक थे हिन्दी के अलावा उन्होंने 4 राजस्थानी, 3 मराठी, 3 गुजराती और एक असमिया फिल्म में अभिनय किया ... एक बार उन्होंने एक साक्षात्कार में कहा था-..."मैंने तो फिल्मो में काम किया ही नहीं फिल्म में काम तो वो करे, जिसे अभिनय करना हो मैंने तो अपने किरदारों को स्वयं जिया है"...महिपाल जी के कैरियर में ढलान का वक्त1970 में आया जब धार्मिक और फैंटेसी सिनेमा धीरे धीरे अपना आकर्षण खोने लगा और परदे पर हिंसा और अश्लीलता हावी होने लगी छोटी-मोटी भूमिकाएं करने की अपेक्षा महीपाल ने अभिनय से सन्यास लेना मुनासिब समझा गंगासागर (1978) और बद्रीनाथधाम (1980) उनकी आख़िरी फ़िल्मों थीं
महिपाल जो को आध्यात्म में भी रूचि थी महिपाल जी को आचार्य रजनीश (ओशो ) से मिलने और उनके साथ यात्रा करने का भी सौभाग्य मिला बंबई,अहमदाबाद ,माउंट आबू के ध्यान शिविरों में और कई शहरों में होने वाले ओशो प्रवचनों में महिपाल जी भी उपस्थित रहते थे और बहुत सक्रिय रूप से कार्य में भाग लेते थे .....वो कभी भी फ़िल्मी पार्टियों में नहीं जाते थे यहाँ तक की महिपाल जी चाय भी सेवन नहीं करते थे और फिल्म के सेट पर भी घर का खाना ही मंगवा कर खाते थे उनके बारे में कभी कोई गॉसिप या अफेयर की बात किसी फ़िल्मी पत्रिका में नहीं छपी .....हाँ एक बार "अलादीन और जादुई चिराग' (1952 ) में मीना कुमारी के साथ काम करने के दौरान जोधपुर में ये चर्चा फैल गई थी कि महिपाल, मीना कुमारी से विवाह करने वाले हैं लेकिन ये सिर्फ अफवाह निकली
आखिरी दिनों में महिपाल का जोधपुर आना कम हो गया था लेकिन राजस्थान को वे कभी भूले नहीं निधन से कुछ दिन पहले ही उन्होंने अपने एक आलेख में काव्यमय भाषा के साथ इस तरह राजस्थान को याद किया था-....."मैं मरुधर की रज का एक अकिंचन कण हूं, जो जाने भाग्य के किस अनजाने अंधड़ में उड़कर उस तप्त धरती की अतृप्त प्यास लिए, प्यास बुझाने के भरोसे मुंबई की मायानगरी के सागर तट पर बसा ...किसी ओर से मुझे छू लें, परख लें, जांच लें, मैं हर कण से राजस्थानी हूं, राजस्थानी ही रहूंगा".........
महिपाल भंडारी" ने लंबा अरसा पौराणिक और तिलस्मी फिल्मो को जिया ......राजकपूर ,दिलीप और देवानंद जैसे दिग्गजों के रहते अपनी अलग पहचान बनाई पौराणिक और फ़ैंटेसी फ़िल्मों के सुपरस्टार का दर्जा हासिल कर दिखाया फिल्म संपूर्ण रामायण (1961) के बाद तो उनके और अनीता गृहा के राम और सीता के पोस्टरों की घर घर में पूजा होने लगी भारत के आलावा महिपाल की फिल्मे उस समय कम्बोडिया, श्रीलंका ,जावा-सुमात्रा जैसे पूर्वी एशियाई देशों तथा खाड़ी के मुस्लिम देशों में भी देखी जाती थी बच्चे भी उनकी तिलस्मी फिल्मो के दीवाने थे .........जीवन के अंतिम दिनों में उन्होंने खुद को सिने जगत से बिल्कुल अलग कर लिया था 15 मई 2005 को 86 साल की उम्र में अचानक ही महीपाल का निधन हुआ और सिनेमा के पर्दे का यह हीरो जीवन के रंगमंच से हमेशा के लिए हमसे विदा हो गया..
पवन मेहरा
(सुहानी यादे ,बीते सुनहरे दौर की )
(सुहानी यादे ,बीते सुनहरे दौर की )
मैं महिपाल की बहुत बड़ी फैन थी। आपने उनके बारे लिखा है। धन्यवाद। आगे यूही पुराने कलाकारों के बारे में जानकारी देते रहेंगे। धन्यवाद।
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