Thursday, November 23, 2017

गुरुदत्त ......."वक़्त ने किया क्या हंसी सितम" ...

                                                               
    गुरुदत्त
9 ,जुलाई 1925 - 10, अक्टूबर 1964
गुरुदत्त साहेब का पूरा नाम वसंत कुमार 'शिवशंकर पादुकोण 'था गुरु दत्त को लोग बंगाली जरूर समझते थे पर वो बंगाली नहीं थे। गुरु दत्त यूं तो बंगलुरु में जन्मे थे गुरुदत्त ने निर्देशक के तौर पर अपने कॅरियर की शुरुआत फ़िल्म बाज़ी (1951) से की यह क्राइम थ्रिलर थी जिसे दर्शकों ने काफी पसंद किया गुरुदत्त ने अपने फ़िल्मी कैरियर में कई नए तकनीकी प्रयोग भी किए जैसे फ़िल्म बाज़ी में दो नए प्रयोग किए किसी भी फ़िल्म में पहली बार गानों का उपयोग कहानी को आगे बढ़ाने के लिए किया गया बाजी की कामयाबी के बाद गुरुदत्त एक सफल निर्देशक के रूप में पहचाने जाने लगे 'बाजी' फिल्म ने ही उनके दिल में किसी के लिए मोहब्बत पैदा की 'बाजी' के ही सेट पर उनकी मुलाकात गायिका गीता रॉय से हुई और उन्हें उनसे प्यार हो गया और बाद में दोनों शादी कर ली

गुरुदत्त को हिंदी फ़िल्मों में नए प्रयोगों के लिए जाना जाता था इसी को ध्यान में रखते हुए उन्हें अगली फ़िल्म ‘सीआईडी’ के लिए एक नए चेहरे की तलाश थी जो खूबसूरत तो हो ही साथ ही उर्दू भी बोलने में सक्षम हो उनकी तलाश तब पूरी हुई जब उनकी मुलाकात भावुकता और व्यवहारिता का अदभुत सौंदर्य का मेल लिए 'वहीदा रहमान 'से हुई फ़िल्म सीआईडी (1956 ) में वहीदा रहमान का ज्यादा रोल नहीं था लेकिन उनके शानदार डांस के अभिनय ने सबके दिलों को छू लिया जिसकी बदौलत उन्हें गुरुदत्त की अगली फ़िल्मों लीड भूमिका में काम करने का मौका मिला सीआईडी की सफलता के बाद फ़िल्म प्यासा में वहीदा रहमान को लीड हिरोइन का रोल मिला यह वह फ़िल्म थी जिसके बाद वहीदा रहमान और गुरुदत्त साहब का प्रेम प्रसंग का आरम्भ हुआ था दोनों कलाकारों ने फ़िल्म ‘चौदहवीं का चांद’ (1960) और ‘साहिब बीबी और ग़ुलाम' (1962) में साथ-साथ काम किया, जो बहुत ही सफल हुई दरसअल इस समय तक गुरुदत्त के जीवन में दो स्त्रियों ने प्रवेश कर लिया था एक उनकी पत्नी गीता दत्त और दूसरी वहीदा रहमान.... गुरुदत्त दोनों से बेहद प्रेम करते थे और दोनों को अपनी ज़िन्दगी का हिस्सा बनाना चाहते थे लेकिन ऐसा हो नहीं सका काम में अत्यधिक व्यस्त रहने के कारण गुरुदत्त दांपत्य जीवन के लिए बहुत अधिक वक्त नहीं दे पाते थे,विवाहित होने के बावजूद भी गुरुदत्त वहीदा रहमान के साथ रहते थे जिसके कारण उनके वैवाहिक जीवन में तूफ़ान खड़ा हो गया गुरुदत्त साहब की ख़ुद की ज़िंदगी इतनी फ़िल्मी थी कि उन पर ही कई फ़िल्में बन जाएं और जब वह किसी फ़िल्म को बनाते थे तो लगता था मानों फ़िल्म का हरेक किरदार असल जिंदगी जी रहा हो............फ़िल्म ‪प्यासा‬ की सफलता के बाद ‪गुरुदत्त‬ ने फ़िल्म ‪गौरी‬ (1957) का निर्माण शुरू किया था गुरुदत्त और ‪गीता दत्त‬ के वैवाहिक जीवन के तनाव और दोनों के बीच बढ़ती दूरियों के कारण ‘गौरी‘ पूरी ना बन सकी उसे अधूरा छोड़ दिया गया गुरुदत्त साहेब और गीता दत्त के तीन बच्चे हुए तरुण, अरुण और नीना बाद में गुरुदत्त और गीतादत्त के छोटे बेटे अरुण दत्त ने अपनी बेटी का नाम ‘गौरी’ रखा  गीतादत्त का गाया ‪काग़ज़ के फूल‬ का एक गीत उनकी निजि ज़िन्दगी को भी एकदम सही ढंग से बयान कर जाता है " वक़्त ने किया क्या हसीं सितम, तुम रहे ना तुम, हम रहे ना हम "..। गुरुदत्त की जिंदगी अगर कहानी है तो उनकी मौत भी एक अफसाना........10 अक्तूबर, 1964 में मुंबई में अपने बिस्तर में रहस्यमय स्थिति में मृत पाए गए गुरुदत्त बहुत ही ज्यादा शराब पीते थे जिसकी वजह से उनका लिवर खराब हो गया गुरुदत्त साहब की मौत को कोई आत्महत्या बताता है तो कोई हत्या तो कोई सामान्य मौत पर उस सच को कोई नहीं जानता जो उनकी आखिरी रात का था ?....

गुरु दत्त साहेब ने वो कामयाबी हासिल की जो इतनी कम उम्र में बहुत कम लोग ही हासिल कर पाते हैं लेकिन इन तमाम कामयाबी के बावजूद गुरु दत्त हमेशा एक ऐसे इंसान लगे जो भीड़ में भी अकेला है जो सब कुछ पा कर भी ऐसा महसूस कर रहा है कि कही कुछ कमी है जिस रात के काले अंधेरों के आगोश में गुरुदत्त मौत की नींद सो गए थे उस रात उन्होंने जमकर शराब पी थी, इतनी उन्होंने पहले कभी नहीं पी थी गीता (उनकी पत्नी, जिनके साथ वह उनके अलगाव का दौर था) के साथ उनकी नोंकझोंक हो गई थी गीता ने उनकी बिटिया को उनके साथ कुछ वक़्त बिताने के लिए भेजने से इंकार कर दिया था गुरुदत्त अपनी पत्नी को बार–बार फोन कर रहे थे कि वह उन्हें अपनी बेटी से मिलने दे लेकिन गीता फोन नहीं उठा रही थीं। हर फोन के साथ गुरुदत्त का गुस्सा बढ़ता ही जा रहा था अंत में उन्होंने यह संकेत देते हुए कहा,... “बच्ची को भेज दो या फिर तुम मेरा मरा मुंह देखो” ......फिर गुरु दत्त देर रात तक अबरार अल्वी से फिल्म ''बहारें फिर भी आएंगी ''- (1966) पर '' चर्चा करते रहे गुरु दत्त अचानक से उठे और बोले,... ‘ देखो न, मुझे निर्देशक बनना था, बन गया अभिनेता बनना था, बन गया .. पिक्चर अच्छी बनानी थी, बनाई... पैसा है सब कुछ है, .....पर कुछ भी नहीं रहा .....यार अबरार मैं अब 'रिटायर 'होना चाहता हूँ ’ ....इतना कहकर गुरु दत्त अपने कमरे में चले गए इसके बाद उन्होंने क़रीब एक बजे खाना खाया और ऐसे सोए कि दुबारा नहीं उठे उनकी मौत उनके कमरे में हुई.... ........ सिर्फ 39 बरस की उम्र में खुदकुशी कर लेने वाले गुरु दत्त की वैसी मौत अब सिर्फ एक दर्दनाक ब्यौरा बनकर रह गई है कुछ लोग कहते है की उन्होंने शराब में नींद की गोलियां घोल कर पी ली मौत के समय न तो उनके साथ उनकी पत्नी गीता थी और न ही वहीदा........गुरु दत्त कई बार कहा करते थे,..... 'नींद की गोलियों को उस तरह लेना चाहिए जैसे मां अपने बच्चे को गोलियां खिलाती हैं...पीस कर और फिर उसे पानी में घोल कर पी जाना चाहिए।'.... खुदकुशी करके गुरु दत्त ने अपनी जिंदगी से मुक्ति तो पा ली लेकिन हिंदी सिनेमा का एक चमकता सितारा कहीं दूर चला गया और एक प्रतिभाशाली जीवन का असमय अंत हो गया ..

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