Thursday, November 23, 2017

यादे उस दूरदर्शन वाली ''रामायण'' की ...

' रामायण 'सीरियल - (1987) 
वो सर्दियों की गुनगुनी सुबह थी। जब दूरदर्शन पर 25 जनवरी,1987 को रविवार के दिन सुबह 9.30 बजे निर्माता 'रामानन्द सागर 'की रामायण का पहला भाग प्रसारित हुआ तब जयादातर घरो में ब्लैक एन्ड वाइट लकड़ी के शटर वाले टीवी हुआ करते थे रंगीन टीवी आज की अपेक्षा कम घरो में होते थे प्रारम्भ में कुछ कम लोकप्रियता के साथ बाद में इस धारावाहिक की लोकप्रियता उस स्तर तक पहुँच गई जहाँ पर सम्पूर्ण भारत में लोगो की जिंदगी थम जाती थी मुख्यतः वाल्मीकि रामायण और तुलसीदासजी की रामचरितमानस पर आधारित रामानन्द सागर की ''रामायण '' जब प्रसारित होती थी तब एक तरह से 'अघोषित कर्फ्यू ' की स्थिति होती थी प्रत्येक व्यक्ति जिसकी टीवी तक पहुँच थी अपना सब कामकाज छो़ड़कर इस धारावाहिक को देखने के लिए रुक जाता था रेलगाडियाँ, बसें और ट्रक इत्यादि इस धारावाहिक के प्रसारण के दौरान रुक जाते थे ग्रामों में बड़ी संख्या में लोग एक टीवी के सामने इसे देखने के लिए बड़ी श्रद्धा से एकत्रित होते थे उस समय मशहूर समाचार पत्रिका इण्डिया टुडे ने "रामायण फ़ीवर" का नाम दिया था रामायण के प्रसारण के दौरान सरकारी अफ़सर से लेकर नेता तक किसी से मिलना तो क्या किसी का फोन भी उठाना पसंद नहीं करते थे रामानंद सागर के बेटे और रामायण के सहनिर्माता प्रेम सागर ने बताया कि उस दौरान 'रामायण' की लोकप्रियता के कई दिलचस्प क़िस्से सुनने में आए. उन्होंने बताया कि एक बार तो एक व्यक्ति की शवयात्रा में तब देरी हुई जब लोग सुबह रामायण देखते रह गए और धारावाहिक ख़त्म होने के बाद ही क्रिया कर्म पर पहुँचे रामायण के संवाद सुनकर उस समय अधिकांश युवा पीढ़ी के बच्चे अपने माता,पिता को '' पिताश्री '' और '' माताश्री '' कहने लगे थे


रामायण के निर्माता रामानंद सागर एक किस्सा बताते थे की 1944 में एक ज्योतिष ने उनका हाथ देखकर ये भविष्यवाणी की थी कि वो अपने जीवन के अंतिम दिनों में श्री राम के जीवन को फिर से नए सिरे से रचेंगे इसलिए लगातार छह सिल्वर जुबली सुपरहिट फिल्में बनाने के बाद रामानंद सागर ने जब टीवी पर रामायण बनाने का फैसला किया तो उनके सभी साथी अचंभित थे टीवी पर इससे पहले रामानंद सागर 'विक्रम और बेताल' नाम का एक धाराविहक बना चुके थे इसमें विक्रमादित्य की भूमिका निभाने वाले अरुण गोविल को उन्होंने 'रामायण' में राम के केंद्रीय पात्र के रूप में चुना जहां अरुण गोविल ने राम का किरदार निभाया वहीं दीपिका चिखलिया बनीं सीता नटराज स्टूडियो में एक फ़िल्म के ऑडिशन के दौरान रामानंद सागर के बेटे प्रेम सागर ने दीपिका को देखते ही रामायण की सीता के लिए चुन लिया था निर्देशक रामानंद सागर, रामायण बनाने का प्रस्ताव लेकर जिस भी निर्माता के पास गए उसने उन्हें वापसी का रास्ता दिखा दिया टीवी के लिए 'रामायण' बनाने का सौदा किसी को फ़ायदा का नहीं लगा आखिर में रामानन्द सागर ने खुद महान हिंदू पौराणिक कथा रामायण को टीवी धारावाहिक के रूप में बनाने का निर्णय किया


मुम्बई से दूर गुजरात के ' उमरगाँव ' नामक गाँव के एक वीरान स्टूडियो में रामायण को शूट करने का निर्णय किया गया गया ये स्टूडियो 15 साल से बंद था जिसे रामायण के लिए किराए पर लिया गया रामायण की शूटिंग लगातार 550 से ज्यादा दिनों तक चली रामायण के निर्माण में 100 से अधिक तकनीशियों की ज़रूरत थी  मेकअप आर्टिस्ट से लेकर सेट डिज़ाइनर तक ये सभी तकनीशियन चौबीसों घंटे टीवी सीरियल के सेट पर रहते थे उमरगाँव में चली रामायण कि शूटिंग देर रात तीन बजे तक होती थी सभी कलाकारो का ख़ासा ध्यान रखा जाता था और कमाल की बात है कि कोई भी कलाकार शूटिंग के दौरान बीमार नहीं पड़ा रामायण में काम करने वाले जूनियर आर्टिस्ट क गिनती कभी नहीं की गई रामायण में लड़ाई के सीन में अगर लोग कम पड़ते थे तो आस पास के गाँव वाले जूनियर आर्टिस्ट बन जाते थे और गाँव-गाँव जाकर ढोल नगाड़ो के साथ घोषणा की जाती थी और जूनियर कलाकार भर्ती किए जाते थे


अभिनेता' दारा सिंह 'इससे पहले कई फिल्मो में हनुमान का रोल कर चुके थे उन्होंने रामानंद सागर को टालने के उद्देश्य से कहा ....'' अब आप किसी जवान एक्टर को ये हनुमान जी का रोल दे दो मुझे तो कई बार दर्शक इस रोल में देख चुके है '' लेकिन रामानंद सागर ने उनसे कहा ...''मेरी इस रामायण में भी ये रोल आप ही करोगे '' दारा सिंह खुद भी एक हनुमान भक्त थे इसलिए उन्हें रामानंद सागर की बात माननी पड़ी रामायण में हनुमान के किरदार के लिए दारा सिंह के मेकअप पर लगभग 3 से 4 घंटे का समय लगता था इस रामायण का रावण भी गुजरात से ही मिला रावण के रोल में गुजराती अभिनेता अरविन्द त्रिवेदी को कास्ट किया गया जो गुज़रती फिल्मो और रंगमंच के मंझे हुए कलाकार थे अरविंद त्रिवेदी ने पहाड़ से शरीर और गरजती आवाज वाले उस रावण की छाप अरविंद त्रिवेदी पर ऐसी पड़ी की लोग आज भी रावण लोग उन्हें 'रावण 'के नाम से ही जानते हैं। अरविंद त्रिवेदी ने रामायण के अलावा गुजरात और हिंदी की करीब 300 फिल्में भी कि हैं। रामानंद सागर ने रावण के किरदार के लिए करीब 300 कलाकारों का ऑडिशन लिया था। अरविंद जैसे ही रावण की वेशभूषा में आया तो रामानंद सागर ने तभी यह ऐलान कर डाला कि ....''अरविंद तुम ही मेरे रावण बनोगे''  90 के दशक में ही अरविंद ने टीवी सीरिल्स से दूरी बनाकर राजनीति में हिस्सा ले लिया था। इतना ही नहीं उन्होंने लोकसभा के चुनाव भी जीते। कहते है की 'रामायण' में रावण की मृत्यु हुई थी तो रावण का किरदार निभाने वाले 'अरविंद त्रिवेदी 'के गांव में शोक मनाया गया था


रामायण ने भारतीय टेलीविजन इतिहास में नये मुकाम हासिल किये इसके हर दृश्य को जीवन्त बनाने में खासा मेहनत की गई थी 80 के दशक में जब रामायण धारावाहिक टीवी पर आया तो इसके साथ ही कई स्पेशल इफेक्ट्स भी देखने को मिले, जैसे हनुमान का संजीवनी बूटी लाना, पुष्पक विमान का उड़ना आदि इसको सीखने के लिए रामानन्द सागर के भाई प्रेम सागर ओरिजिनल किंग कॉन्ग के निर्माता से हॉलीवुड में मिलकर आए थे साथ ही कई किताबों को पढ़कर रामायण में ये इफेक्ट्स डाले गए रामायण के कुछ कुछ भाग कम्बन की ''कम्बरामायण ''और अन्य पुस्तकों से भी लिए गए थे राम सेतु के निर्माण का दृश्य चेन्नई में शूट किया गया था प्रेम सागर बताते हैं कि चेन्नई के नीले समुद्र जैसा दृश्य गुजरात में नहीं मिल पाया जिस कारण उन्हें उसे चेन्नई में शूट करना पड़ा 


रामायण टीवी पर आने वाला ऐसा इकलौता धारावाहिक बना जिसे 45 मिनट का टीवी स्लॉट मिला जबकि उन दिनों दूरदर्शन पर सिर्फ आधे घंटे और एक घंटे के स्लॉट ही कार्यक्रमों को मिला करते थे रामायण के 78 एपिसोड पूरे होने के बाद दर्शको ने 'लव कुश ' की कहानी की मांग की इस कहानी के लिए रामानंद सागर तैयार नहीं थे और उन्होंने कहा कि अगर वो लव कुश की कहानी बनाएंगे तो वो एक काल्पनिक कहानी होगी आखिर दर्शको की भारी मांग और अपेक्षा के चलते रामानंद सागर ने इसे  'उत्तर रामायण'  के नाम पर बनाने का जोखिम लिया लेकिन इस कहानी के टीवी पर आते ही कई विवाद सामने आए और रामानंद सागर पर दस साल तक कोर्ट केस चला



आज भी जब बात रामानंद सागर की रामायण की आती है तो एक-एक करके सारे किरदार जैसे हमारे सामने आ जाते हैं। बात कि जाए राम-सीता ,भरत,लक्ष्मण ,हनुमान या फिर रावण। जिन्होंने भी यह किरदार निभाए हैं वह आज तक भी हमारे दिमाग में बसे हुए हैं। उसके बाद भी कई बेहतर धार्मिक धारावाहिक आये पर ऐसा फिर कभी किसी अन्य धारावाहिक के किरदारों के मामले में नहीं हुआ दुनिया के पांच महाद्वीपों में दिखाई जाने वाली रामायण को विश्व भर में 65 करोड़ से ज्यादा लोगों ने टीवी पर देखा कहा जाता है कि उस दौर में हर हफ्ते रामायण के ताज़ा एपिसोड के कैसेट दूरदर्शन के दफ्तर भेजे जाते थे कई बार तो ये कैसेट प्रसारण के आधे घंटे पहले भी पहुंचे सके रामायण के छोटे परदे के जादू का ये आलम था की बड़े परदे के सिनेमा घरो के शो खाली जाते थे और ज्यादातर सिनेमा घर मॉर्निंग शो रद्द ही कर देते थे प्रसारण के दौरान, रामायण, भारत और विश्व टेलिविज़न इतिहास में सबसे अधिक देखा जाने वाला कार्यक्रम बन गया और बी आर चोपड़ा के महाभारत का प्रसारण होने तक यह खिताब रामायण के पास ही रहा लिम्का बुक ऑफ़ रिकॉर्ड्स में जून 2003 तक यह "विश्व के सर्वाधिक देखे जाने वाले मिथकीय/ पौराणिक धारावाहिक" के रूप में सूचीबद्ध था बाद में रामायण के पुनः प्रसारण और वीडियों प्रोडक्शन के कारण इसने फिर लोकप्रियता प्राप्त की 25 जनवरी,1987 से 31 जुलाई,1988 तक रविवार के दिन सुबह 9.50 बजे प्रसारित होने वाली इस रामानंद सागर की रामायण की लोकप्रियता आज भी कायम है कहते है की जिस तरह 1888 में देवकी नंदन खत्री के मशहूर उपन्यास'' चंद्रकांता '' को पढ़ने के लिए लोगो ने हिंदी सीखी थी उसी तरह 1988 में रामानंद सागर की 'रामायण' देखने के लिए भारत के मध्यम वर्ग ने अपने सामर्थ्य से बाहर जा कर किसी तरह अपने टेलीविजन सेट ख़रीदे  आज जबकि रामायण के अति आधुनिक डिजिटल रूप भी आ चुके है पर पता नहीं क्यों जब भी दशहरा आता है तो वो दूरदर्शन वाली रामायण की याद आ ही जाती है......जय श्री राम ...

3 comments:

  1. बहुत बहुत dhanywad मेहरा सर। रामायण और महाभारत दोनों ही धारावाहिक अपने दौर से कहीं आगे की प्रस्तुति रहे हैं, कहते हैं बिना ईश्वर की कृपा के कोई कार्य नहीं हो सकता यह बात रामानंद सागर जी भी स्वीकार करते हैं, और कहते हैं मुझसे ईश्वर सब करा रहा है, वह दौर भला कैसे भूला जा सकता है जब टी वी सेट पर माला फूल और अगरबत्ती दिखाई जाती थी, धन्य है रामायण और धन्य है उसके निर्माता, अगर रामानंद सागर जी को उन्नीसवीं शताब्दी का तुलसी कहा जाए तो शायद अतिशयोक्ति नहीं होगी। आपको बहुत बहुत dhanywad और अभिनन्दन। 🙏💐

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  2. धन्यवाद भाई साहेब ......रामानंद सागर ने 'रामायण' के लिए कितना शोध किया है इस बात का अंदाज़ा आप इस बात से लगा सकते है रावण के गुप्तचरों के नाम तक विस्तार से बताये गए है वाकई वो समय कोई नहीं भूल सकता जब रामायण देखने के के चक्कर में शादिया तक कुछ समय के लिए रुक जाती थी और पंडित जी भी 'रामायण 'देखने के बाद फेरे पढ़वाते थे पूरा हफ्ता रामायण के इंतज़ार में ऐसे ही बीत जाता था .....आज की पीढ़ी शायद उस इंतज़ार के आनंद को महसूस न करे ...

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