यहूदी (1958) |
हिंदी सिनेमा का इतिहास इस बात का गवाह रहा की हमारे बेहतरीन फिल्मकारों ने अपनी देश की सीमा से बाहर जा कर भी उम्दा फिल्मे बनाई और दुनिया की जवलंत समस्याओ को शिद्दत के साथ सिनेमा के परदे पर उतारा हालांकि अफ़सोस के साथ ये कहना पड़ रहा की वैसा हमारी हिंदी सिनेमा के साथ नहीं हुआ बिमल रॉय जी को मधुमती,परख, बंदिनी, मुसाफिर, देवदास, दो बीघा ज़मीन, परिणीता, सुजाता सहित भारतीय सिनेमा की सबसे खूबसूरत सामाजिक फिल्मों के कारण जाना जाता है लेकिन उन्होनो 1958 में यहूदी बना कर सब को चौका दिया क्योंकि यहूदी फिल्म की कहानी दो हज़ार साल पहले रोमन साम्राज्य में यहूदियों के उत्पीड़न को दिखाती है जिसका भारतीय सामाजिक ताने बाने से कोई सरोकार नहीं था हालांकि उस समय उनकी इस फिल्म को व्यावसायिक सफलता भी मिली लेकिन फिर भी यहूदी बिमल रॉय की कम ज्ञात फिल्मों में से एक मानी जाती है जो उनकी समकक्ष फिल्मो से अलग दिखती है सन 1958 में जहाँ फागुन ,काला पानी ,परवरिश जैसी रोमांटिक संगीतमय फिल्मे रिलीज़ हुई तो चलती का नाम गाड़ी और दिल्ली का ठग जैसी हास्य फिल्मो ने भी अपना रंग बिखेरा क्राइम थ्रिलर हावड़ा ब्रिज और रहस्य रोमांच से भरपूर मधुमती को भी दर्शको ने सराहा राजकपूर की फिर सुबह होगी को भी समीक्षकों ने सराहा बड़ी फिल्मो के बीच एक अंतराष्ट्रीय कहानी पर बनी यहूदी ने 1958 की तीसरी सबसे ज्यादा कमाई करने वाली फिल्म बन कर सबको चौका दिया.....
जैसा की आप जानते है की शुरुआती हिंदुस्तानी फ़िल्मों पर पारसी रंगमंच का गहरे असर रहा है हिंदुस्तानी ज़ुबान में पहली बोलती फ़िल्म आलमआरा (1931) पारसी निर्देशक आर्देशर ईरानी ने बनायी थी यहूदी फिल्म भी मूलत रोमन साम्राज्य में यहूदियों के उत्पीड़न के बारे में आगा हश्र कश्मीरी के क्लासिक पारसी नाटक 'यहूदी की लड़की ' पर आधारित थी आगा हश्र कश्मीरी ने अंग्रेजी नाटककार शेक्सपियर के कई नाटकों को उर्दू रूपांतरण किया था यहूदी की लड़की' भी शेक्सपियर के ट्रैजिडी नाटकों की परंपरा का नाटक है ये नाटक अट्ठाहरवी संदी के अंग्रेज नाटककार विलियम थॉमस मॉनक्रीफ़ के नाटक 'द जूएस' (यहूदी लड़की) का रूपांतरण था इस नाटक की कहानी फ्रांसीसी संगीतकार फ्रॉमेंटल हैलेवी के ओपरा ला जुइवे से भी काफी मिलती है आगा हश्र कश्मीरी के 1915 में लिखे इस नाटक 'यहूदी की लड़की' को क्लासिक रंगमंच में शुमार किया जाता है 'यहूदी की लड़की' पारसी रंगमंच का शायद सबसे जाना-माना नाटक है रंगमंच पर मिली जबरदस्त सफलता के बाद इस नाटक ने बोलती फिल्मों के दौर में भी अपना जलवा बरक़रार रखा इसके महज दो साल के अंदर 1933 में कलकत्ता के मशहूर न्यू थिएटर्स के बैनर तले 'यहूदी की लड़की' नाटक पर इसी नाम से फ़िल्म बनी फ़िल्म में मुख्य भूमिका अपने ज़माने के स्टार गायक और अभिनेता के.एल सहगल और रतन बाई ने निभायी इसके बाद 1957 में एक बार फिर एस.डी नारंग ने 'यहूदी की लड़की' फ़िल्म बनायी नारंग ने यहूदी की लड़की की भूमिका में मधुबाला को लिया और उसके ग्रीक राजकुमार प्रेमी की भूमिका में प्रदीप कुमार को इस फ़िल्म का संगीत मशहूर संगीतकार हेमंत कुमार ने दिया था आशा भोसले की आवाज़ में फ़िल्म का 'ये चांद बता तूने कभी प्यार किया है, दिल अपना किसी चाहने वाले को दिया हैै' गीत काफ़ी पॉपुलर हुआ था.इस प्रकार आप बिमल राय की यहूदी को एक रीमेक फिल्म भी कह सकते है
बॉम्बे फिल्म प्रोडक्शन के बेनर तले बिमल राय ने इस फिल्म को निर्देशित किया एक ट्रैजिक कहानी के लिए इससे ड्रीम कास्ट क्या हो सकती है इस पर विचार किया गया अंत में ट्रैजडी क्वीन मीना कुमारी और ट्रैजडी किंग दिलीप कुमार को ये मुख्य भूमिकाये मिली दिलीप कुमार और मीना कुमारी यहूदी से पहले फ़ुटपाथ (1953) और आज़ाद (1955) में काम कर चुके थे लेकिन दलीप साहेब फिल्म की कामयाबी को लेकर कुछ आशंकित थे हालाँकि वो बिमल राय के साथ इससे पहले देवदास (1955 ) कर चुके थे और उनकी मधुमती (1958) भी रिलीज को लगभग तैयार थी दलीप साहेब पीरियड फिल्मे करने से ज़रा बचते थे सबसे ज्यादा और दमदार रोल फिल्म में सोहराब मोदी के हिस्से आया उन्होंने फिल्म में वजाहत मिर्जा संवादों को अपनी बुलंद आवाज़ से ऐसे मुकाम पर पंहुचा दिया की यहूदी अमर हो गई
फिल्म की कहानी दो हज़ार साल पहले रोमन साम्राज्य में यहूदियों के उत्पीड़न को दिखाती है एजरा (सोहराब मोदी) एक जौहरी है जो अपने बेटे एलिय्याह के साथ इस जुल्मो सितम सहते हुए रोम सम्राट जूलियस (मुराद ) के देश में रहता है बेटा एलिय्याह एजरा की आँखों का तारा है एक दिन रोम का राज्यपाल ब्रूटस (नजीर हुसैन) यहूदी क्षेत्र की सड़कों में जब गुजर रहा होता है तो छज्जे से एलिय्याह के हाथो से एक पत्थर निकल कर ब्रूटस के सिर पर पर लग जाता है ब्रूटस तुरंत एलिय्याह को गिरफ्तार कर लेता है और उसे भूखे शेरो के आगे डाल कर मार देने का हुक्म सुनाता है एजरा अपने बेटे के जान बक्श देने के लिए लिए ब्रूटस से दया की भीख मांगने जाता है लेकिन एलिय्याह को भूखे शेरो के आगे डाल कर मार दिया जाता है एजरा इस सदमे से अपनी सुध बुध खो देता है एजरा का वफादार गुलाम एम्मानुएल ( तिवारी ) अपने मालिक की ये दशा देख कर बदले में ब्रूटस की सोती हुई बेटी लिडा (बेबी नाज़ ) को अगवा कर लाता है और उसे एजरा के सामने मारने की कोशिश करता है लेकिन एजरा उस को बचा कर कहता है की ...'आज से यही मेरे जीने का सहारा है' ....ब्रूटस के सैनिक बच्ची को ढूंढते हुए एजरा के घर तक आ जाते है एम्मानुएल एजरा को बच्ची समेत घर से भगा देता है ब्रूटस के सैनिक गुलाम एम्मानुएल को मार डालते है ब्रूटस की बेटी को तलाश करते हुए सैनिक यहूदियो पर बेपनाह जुल्म ढाते है लेकिन उन्हें बच्ची नहीं मिलती ..
वर्षों से गुजरते है और अब शहर सिकन्दरिया में एजरा एक सफल जौहरी और एक रहमदिल यहूदी होने के लिए जाना जाता है और ब्रूटस की बेटी हन्ना (मीना कुमारी) की अपनी बेटी की तरह परवरिश करता है.नौकरानी रूथ (मीनू मुमताज) उसकी हमराज़ सहेली है .हन्ना की खूबसूरती के चर्चे पूरे रोम में है ब्रूटस अपनी 'भतीजी राजकुमारी ओक्टिविया (निगार सुल्ताना) की शादी रोम के सम्राट जूलियस के बेटे प्रिंस मार्कस (दिलीप कुमार) से करना चाहते है हालांकि राजकुमार मार्कस ये शादी नहीं करना चाहता सयोंगवश एक रोमन सैनिक से हन्ना को बचाते बचाते मार्कस हन्ना से प्यार करने लगता है लेकिन मार्कस ये अच्छी तरह जानता है की हन्ना एक यहूदी है और वो एक रोमन. ...इसलिए वो एक यहूदी बन कर हन्ना को अपना परिचय देता है हन्ना और एजरा भी उसे एक यहूदी समझ कर अपने घर में शरण दे देते है
लेकिन एक दिन यहूदी पर्व "रोटी खाने " पर ये राज़ खुल जाता है की मार्कस यहूदी नहीं है एक रोमन है एजरा और हन्ना को ये जानकर सदमा लगता है की मार्कस रोम का राजकुमार है वो इसे अपने साथ धोखा मानते है ..... एजरा मार्कस के सामने शर्त रखता है की अगर वो हन्ना से वाकई सच्चा प्यार करता है तो यहूदी धर्म अपना कर उससे शादी कर ले लेकिन मार्कस कहता है प्यार के आगे वो किसी भी धर्म को नहीं मानता राजकुमारी ओक्टिविया और राजकुमार मार्कस के वफादार दोस्त एंटोनियो (अनवर हुसैन ) को भी इस प्रेम कहानी का पता चल जाता है मार्कस और ओक्टिविया की शादी तय कर दी जाती है जब राजकुमार मार्कस और राजकुमारी ओक्टिविया की शादी का दिन आता है सभी आमंत्रित लोगो के सामने हन्ना रोम सम्राट जूलियस से अपने साथ हुए अन्याय के लिए इन्साफ करने को कहती है रोम सम्राट राज्यपाल ब्रूटस को इन्साफ करने को कहते है लेकिन जब उन्हें ये पता चलता है की मुज़रिम राजकुमार मार्कस ही है तो असमंजस में पड़ जाते है ब्रूटस हन्ना और एजरा गलत साबित करने की कोशिश करता है लेकिन रोम सम्राट जूलियस उन्हें बिना भेदभाव इन्साफ करने के लिए कहते है राजकुमार मार्कस को मौत की सजा सुना कर हिरासत में ले लिया जाता है ......ओक्टिविया हन्ना से राजकुमार मार्कस की जिंदगी की भीख मांगती है अगले दिन हन्ना ब्रूटस के सामने हाजिर हो अपने आरोप ये कह कर वापिस ले लेती है की उसे राजकुमार मार्कस को पहचाने में भूल हुई है ये वो नहीं जिसने उसे धोखा दिया है अब ब्रूटस हन्ना और उसेके बाप एजरा को राजकुमार मार्कस पर झूठा इलज़ाम लगाने के जुर्म में मौत की सजा सुना देता है इधर राजकुमार मार्कस को जब ये पता चलता है की उसके प्यार हन्ना को कल सुबह तैल के खोलते कड़ाह में डाल कर मौत दे दे जाएगी तो वो इस का कसूरवार अपने को मान कर अपनी दोनों आँखों में जहर डाल कर ख़ुद को सज़ा देते हुए अपनी आंखें फोड़ लेता है.और अँधा हो जाता है ......फ़िल्म के क्लाइमेक्स में ब्रुट्स को ये राज़ पता चलता है कि जिस हन्ना को ख़ुद उसने मौत की सज़ा दिलायी है वो उसकी ही बिछड़ी हुई बेटी है अपनी बेटी हन्ना को मौत की सजा से बचाने के लिए एजरा ब्रूटस को बताता है की हन्ना उसकी बेटी है जिसको बचपन में उसके गुलाम एम्मानुएल ने अगवा कर लिया था एजरा ब्रूटस को ये राज बता वही दम तोड़ देता है ब्रूटस हन्ना को कहता है वो उसकी बेटी है.... लेकिन हन्ना कहती है वो मरते दम तक निर्दयी ब्रूटस की बजाय यहूदी एजरा की बेटी ही रहेगी .........फ़िल्म के अंत में अंधे मारकस को लेकर हन्ना अपना सब कुछ छोड़कर अलग संसार बसाने के लिए किसी अज्ञात जगह चली जाती है जहाँ रोमन और यहूदी के बीच कोई दिवार ना हो नफरत न हो
फ़िल्म की मार्मिक कहानी, रंगमंच शैली के प्रभावशाली संवाद, सभी कलाकारों का मंझा हुआ अभिनय आपको आज भी प्रभावित करेगा. फ़िल्म का संपादन आने वाले वक़्त के मशहूर निर्देशक हृषिकेश मुखर्जी ने किया था....शंकर-जयकिशन की धुन और शैलेंद्र हसरत जयपुरी के बोल को स्वर दिया था मुकेश गीता दत्त ,लता मंगेशकर ,मोहम्मद रफ़ी ने .... 20,जून 1958 को रिलीज़ इस फिल्म में सोहराब मोदी ,दिलीप कुमार,मीना कुमारी ,नासिर हुसैन,निगार सुल्ताना ,मुराद,हेलन,तिवारी ,कुक्कू,अनवर हुसैन,मीनू मुमताज़ ,बेबी नाज़,कमला कुमारी मुख्य कलाकार है ......आते जाते ,दिल में प्यार का तूफान ,मेरी जान मेरी जान ,आंसू की आग के कर तेरी याद आयी ,गाने मधुर है ....ये दुनिया, ये दुनिया, हाय हमारी ये दुनिया गाने में मुहमद रफ़ी की आवाज में यहूदियो का दर्द छलक पड़ता है लेकिन एवरग्रीन गीत 'ये मेरा दीवानापन है या मुहब्बत का सुरूर' आज तक हिट है शंकर जयकिशन को शायद पहली बार यहूदी में विमल राय ने संगीत देने के लिए अनुबंधित किया था इसे पहले विमल राय की फ़िल्मो का संगीत बंगाली मूल के संगीतकार ही देते थे." ये मेरा दीवानापन है "गाने के लिए शंकर जयकिशन गायक मुकेश को लेना चाहते थे लेकिन दलीप कुमार की पसंद मोह्हमद रफ़ी या फिर तलत मेहमूद थे....... दरअसल उन दिनों मुकेश का सितारा गर्दिश में था और वो गायकी को दरकिनार के फिल्मो में बतौर नायक अपना भाग्य आज़माने में मशगूल थे शंकर जयकिशन ने जब दलीप कुमार साहेब को ये गाना मुकेश की आवाज़ में रिकॉर्ड कर सुनाया तो वो दंग रह गए और जब फिल्म रिलीज़ हुई तो "ये मेरा दीवानापन है "यहूदी का सबसे हिट गाना बना और मुकेश ने भी इस गाने में बतौर गायक कमबेक किया अभी हाल ही में सुशीला रमन की आवाज़ में इस गाने का रीमिक्स वायरल हुआ था....
एक कॉस्ट्यूम पीरियड ड्रामा फिल्म यहूदी के सेट शानदार है और रोमन काल को बखूबी दर्शाते है लेकिन हिंदी फिल्म में रोमन और यहूदी नाम कुछ अखरते है लेकिन ये कहानी की मांग है प्रिंस मार्कस के रोल में दलीप कुमार को रोमन सम्राट का लुक देने के लिए लिए सुनहरे बालो की विग खासतौर पर बनवाई गई लेकिन दलीप साहेब इस सुनहरी विग पहनने से अपने आप को असहज महसूस करते थे यहूदी के कुछ दृश्य आप को दलीप कुमार साहेब की आगे आने वाली फिल्म मुगले आज़म (1960 ) की याद भी दिलाते है जब राजकुमार मार्कस अपने प्यार को पाने के लिए अपने बाप सम्राट जूलियस के विरुद्ध हो जाता है बिलकुल वैसे ही जैसे सलीम मुगले आज़म में अनारकली को पाने के लिए अकबर के खिलाफ विद्रोह कर देता है जाहिर है दलीप साहेब को ये दृश्य करने की प्ररेणा यहूदी से ही मिली होगी ब्रूटस के रोल में नजीर हुसैन और जूलियस के रोल में मुराद ने अपना काम ईमानदारी और बारीकी से किया है अनवर हुसैन के हिस्से में करने को कुछ खास नहीं था कॉमेडी करते हुए वो सहज नहीं लगते मीनू मुमताज़ का रोल संक्षिप्त था हेलेन और कुक्कू का डांस शानदार है ..
फिल्म का सबसे मजबूत स्तम्भ सोहराब मोदी जी है वो जब जब भी परदे आते है अपने संवादों और आवाज़ से छा जाते है .....यहूदी (1958) का एक संवाद आज भी दर्शकों की जुबान पर है कि ...तुम्हारा गम है गम औरो का गम ख्वाबो कहानी है ....तुम्हारा खून-खून और हमारा खून पानी है..... जो आगे जा कर सोहराब मोदी जी का "सिग्नेचर डायलोग" बन गया मधुर संगीत ,सोहरब मोदी और दलीप कुमार जैसे अभिनेताओं की अदाकारी से सजी फिल्म यहूदी को बिमल राय ने अपनी बाकी सामाजिक फिल्मो से विपरीत जा कर जिस अंदाज़ से पेश किया है उसके लिए वो बधाई के पात्र है
पवन मेहरा
(सुहानी यादे ,बीते सुनहरे दौर की )
(सुहानी यादे ,बीते सुनहरे दौर की )
No comments:
Post a Comment