''गुलाब जान '' 1926---1966 |
गुलाब बाई को आज के मौजूदा दौर में विलुप्त होती भारतीय नौटंकी कला गीतों का ''कोहिनूर " 'कहा जाता है अपने चाहने वालो में उन्हें ''गुलाब जान '' के नाम से भी जाना जाता है मशहूर गुलाब थियेटर कंपनी,की नींव उन्होंने ने ही रखी थी गुलाब बाई का जन्म 1926 में बलपुरवा उत्तर प्रदेश राज्य के फर्रुखाबाद जिले में बदनाम बेड़िया जाति,में हुआ था जिनका मुख्य पेशा ही गाना बजाना था उन्होंने कानपुर घराने के उस्ताद त्रिमोहन लाल और हाथरस घराने के उस्ताद मोहम्मद खान के सरंक्षण में संगीत की विधिवत शिक्षा ग्रहण की और तेरह वर्ष की आयु में त्रिमोहन लाल की नौटंकी मंडली में शामिल कर सार्वजनिक रूप से अपनी कला का प्रदर्शन करना शुरू कर दिया ..........जल्द ही,उन्होंने गायन की अपनी एक व्यक्तिगत शैली विकसित की जो आज तक मशहूर है उन्होंने अपनी बनाई मशहूर गुलाब थियेटर कंपनी के माध्यम से देश और विदेशो में नाम कमाया गुलाब बाई बड़ी सहज स्वभाव की थी वो फिल्मे और उनके संगीत से दूर ही रहती थी 1963 में सुनील दत्त साहेब की फिल्म ''मुझे जीने दो ' के चर्चित गाने ' नदी नारे न जाओ श्याम पइया पडू' व 'मोहे पिहरवा में मत छेड़ रे बलम' जैसे मशहूर गाने फर्रूखाबाद में जन्मी और कानपुर में पली बढ़ी गुलाब बाई ने कभी अपनी नौटंकी में गाए थे फिर उसके बाद 1966 में आई गीतकार शैलेंद्र की फिल्म 'तीसरी कसम' का मशहूर गाना 'पान खाए सइयां हमार सांवरी सूरतिया होंठ लाल-लाल' भी गुलाब बाई का ओरिजनल नौटंकी सांग्स था जिसे उनसे बिना पूछे ही शैलेंद्र ने अपनी फिल्म में इस्तेमाल किया और उन्हें कोई क्रेडिट नहीं दिया गया लेकिन गुलाब बाई ने बुरा नहीं माना ये गाने हिट हुए ये संयोग ही कहा जायेगा की इसमें दो गाने सिर्फ अभिनेत्री वहीदा रेहमान पर ही फिल्माए गए थे और एक गाना डांसर मधुमती पर फिल्माया गया था इन गानो को फिल्म इंडस्ट्रीज ने बिना उनको श्रेय दिए चुरा लिया जबकि सब जानते थे की अपने मंच से गुलाब बाई ने ये गाने कई बारे गाये है बहुत से लोगो ने गुलाब बाई को अपने इन गानो के फिल्मो में बिना पूछे इस्तेमाल करने पर अदालत जाने की सलाह भी दी और वहीदा रेहमान ,सुनील दत्त, साहिर लुधिनावानी, शैलेंद्र सहित सम्बन्घित लोगो पर मुकद्दमा दायर करने तक के लिए कह दिया लेकिन गुलाब बाई ने अपने गाने चुराने के लिए सभी को माफ कर दिया और कहा.......'' चलो किसी न किसी बहाने मेरे गाने उस मुकाम तक पहुंचे जहाँ मैं खुद नहीं पहुँच सकी'' ये शब्द उनका दर्द बताने के लिए काफी थे
हालाँकि भारत सरकार ने उन्हें 1990 में ''पद्मश्री'' के नागरिक पुरस्कार से सम्मानित किया था छह साल बाद 1996 में 70 साल की उम्र में उनकी मृत्यु हुई आज नौटंकी कला भारत में अपनी अंतिम साँसे गिन रही है जिसे कभी गुलाब बाई ने जीवंत कला से परवान चढ़ाया था कई रिकॉर्ड कंपनियों ने गुलाब बाई के नौटकी गानो को रिकॉर्ड भी किया लेकिन अफ़सोस फिल्मो में इनके इस्तेमाल किये गानो का श्रेय उन्हें कभी नहीं मिला....
पवन मेहरा
(सुहानी यादे बीते सुनहरे दौर की )
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