Saturday, December 16, 2017

मल्हार (1951) .....गायक मुकेश द्वारा बनाई फिल्म जो मधुर संगीत के बाद भी असफल रही ....

"मल्हार " (1951)
कुछ फिल्मे ऐसी होती है जिनके संगीत को सुनकर आप को लगता है की संगीत उम्दा और कर्णप्रिय है तो ये फिल्म अपने समय में तो जरूर सफल रही होगी लेकिन ऐसी कई फिल्मे उदारहण है जिनका संगीत तो सफल हुआ पर वो सफल संगीत फिल्म को सफलता दिलवाने में कामयाब हो सका "मल्हार " के साथ भी यही हुआ जिसका संगीत तो हिट हुआ पर फिल्म नहीं चली  1951 को प्रदर्शित "मल्हार " एक संगीतमय सामाजिक प्रेमकथा है ये फिल्म अपने शानदार गीतों के लिए आज भी याद की जाती है गायक मुकेश मल्हार के निर्माता थे मुकेश ने मल्हार (1951) और अनुराग (1956 ) फिल्मे बनाई थी और इन फिल्मो के वो निर्माता थे

डायरेक्टर 'तारा हरीश 'ने डार्लिंग फिल्म्स के बैनर के लिए इस फिल्म को निर्देशित किया था मल्हार के निर्देशक तारा हरीश इससे पहले से ‘हम तुम और वो, ‘औरत’, ‘बहन’ और ‘एक ही रास्ता’ के अलावा ‘संस्कार’, ‘जेलयात्रा’, ‘नई रोशनी’ और ‘शरबती आंखें’ जैसी कई फ़िल्मों में अभिनय में हाथ आज़मा चुके थे उन्होंने अपने पिता के गुजरने के बाद संघर्ष करती शम्मी को इस फिल्म की नायिका चुना, शम्मी जी का असली नाम "नरगिस रबाड़ी" है अब उस ज़माने में नरगिस एक बहुत बड़ी अभिनेत्री थी इसलिए फिल्मो में नरगिस नाम रखने का तो सवाल ही नहीं उठता था पहचान का संकट खड़ा हो सकता था निर्देशक तारा हरीश ने उन्हें "शम्मी " नाम दिया जो फ़िल्म ‘मल्हार’ में उनके चरित्र का नाम भी था लेकिन मल्हार शम्मी जी की कोई पहली फिल्म नहीं थी इसे पहले वो अभिनेता और निर्देशक शेख मुख़्तार की फिल्म 'उस्ताद पेड्रो '(1951) कर चुकी थी जो मल्हार से कुछ समय पहले ही रिलीज़ हुई थी जिसका निर्देशन तारा हरीश ने ही किया था लेकिन यह फिल्म सफल नहीं हुई लेकिन इस का लाभ उन्हें जरूर मिला उनकी मेहनत देख कर तारा हरीश ने उन्हें अपनी फिल्म मल्हार की नयिका बना दिया ...मल्हार में उनके नायक थे ....अर्जुन बक्शी ..... फिल्म के अन्य कलाकार थे मोती सागर ( वर्तमान गयिका प्रीति सागर के पिता ) सोनाली देवी ,सुनालीनी देवी ,एस.के प्रेम ,संकट प्रसाद और शिवराज,कन्हैया लाल ,मास्टर रूप ,और शिवराज ,कन्हैया लाल ने एक अच्छी चरित्र भूमिका मल्हार में निभाई है फिल्म के न चलने के बावजूद भी सिर्फ संगीतकार रोशन ही आगे जा कर कामयाब हुए लेकिन फिल्म के नायक अर्जुन बक्शी का फ़िल्मी सफर छोटा ही रहा अर्जुन बक्शी ने फिल्म 'डाकू की लड़की (1954) ' में गीता बाली के साथ भी काम किया था बाद में उनकी बेटी ज्योति बक्शी को देवानंद के भाई विजय आनंद ने फिल्म बुलेट (1976 ) में लॉन्च किया था
शम्मी और अर्जुन बक्शी फिल्म 'मल्हार ' के एक दृश्य में

फिल्म की शुरुआत लता जी द्वारा गाये राग मल्हार पर आधारित गाने ' गरजत बरसत आयो ' के साथ होती है गाँव में 'बड़ी हवेली' पर डाकू धावा बोल देते है और युवा रतन के पिता चौधरी मारे जाते है उनका दोस्त ठाकुर रतन की परवरिश का जिम्मा लेता है ठाकुर का असली बेटा आनंद ( मोती सागर ) शहर में पढ़ने जाता है और गलत सोहबत में बिगड़ जाता है समय बीतने के साथ ही ठाकुर की बेटी रेशमी ( शम्मी ) और रतन (अर्जुन बक्शी ) आपस में प्रेम करने लगते है. शहर से लौटने के बाद आनंद रेशमी की शादी अपने दोस्त बिहारी ( एस.के प्रेम ) से पैसो के लालच में तय कर देता है और रतन को घर छोडने को कह देता है ,रतन रेशमी के भले के लिए अपना प्यार कुर्बान कर देता है रेशमी की शादी बिहारी से हो जाती है रेशमी बिहारी के बच्चे की मां भी बन जाती है और रतन को भूल कर बिहारी को अपना पति मान लेती है एक नाटकीय घटनाक्रम में जंगल में रतन रेशमी की जान बचाता है तो बिहारी उसे अपने यहाँ माली की नौकरी पर रख लेता है लेकिन रेशमी का भाई आनंद बिहारी से और पैसो की मांग करता है और बिहारी को रतन और रेशमी के प्रेम के बारे में देता है ससुराल में रेशमी पर जुल्म होने लगते है और उसे तपेदिक हो जाती है इधर ठाकुर का बेटा आनंद अपना सब कुछ ,बड़ी हवेली जुए में हार देता है लेकिन रतन अपने विश्वास पात्र नौकर ( शिवराज ) के द्वारा हवेली में गड़े खज़ाने को बेच कर बड़ी हवेली को नीलाम होने से बचा लेता है ,आनंद रतन के इस एहसान को अपनी बेइज़्ज़ती मानता है और रतन के खून का प्यासा हो जाता है ,आनंद से रतन को बचाने में रेशमी के हाथों अपने भाई आनंद का खून हो जाता है और अंत में रेशमी भी मौत को गले लगा लेती है ...... रतन फिर अकेला रह जाता है,  फिल्म का अंत दुखद है....
 
मल्हार के एक दृश्य में शम्मी
"बड़े अरमानो से रखा है सनम प्यार की दुनिया में ये पहला कदम " गाने के लिए ही इस फिल्म को आज भी याद किया जाता है मुकेश और लता की आवाज़ ने इस गाने को अमर बना डाला नवोदित इन्दीवर और कैफ इफरानी के लिखे अन्य गीत 'दिल तुझे दिया था रखने को, होता रहा अगर यूँही अंजाम वफ़ा का ,कोई तो सुने मेरे गम का फसाना, तारे टूटे देखे ; एक बार अगर तू कह दे 'कहाँ हो तुम जरा आवाज़ दो 'मोहब्बत की किस्मत बनाने से पहले ' भी अच्छे थे

इस फिल्म से जुड़े सारे कलाकार और टीम युवा और अनुभवहीन थी शायद फिल्म के असफल होने का कारण भी यही था लेकिन सिर्फ संगीतकार रोशन कामयाब रहे ये फिल्म संगीतकार रोशन की शुरुआती फिल्मों में एक है जब वो संघर्ष कर रहे थे मल्हार का संगीत जबरदस्त हिट रहा लेकिन दुर्भाग्यवश फिल्म असफल रही इस फिल्म का मशहूर गाना "बड़े अरमानो से रखा है सनम प्यार की दुनिया में ये पहला कदम " इतना मीठा है की आज भी सुनने वालो की आँखों में चमक ला देता है इस गाने में इतना दम तो है की आप इसे गुनगुनाने पर मजबूर हो ही जायेगे शायद इसलिए इस गाने को कई बार रिमिक्स भी किया गया है भले ही आज की पीढ़ी ने ये फिल्म मल्हार " न देखी हो और शायद वो' शम्मी आंटी ' को भी न जानते हो लेकिन इस सुरीले गाने की वजह से प्यार की दुनिया में पहला कदम रखने वाली युवा पीढ़ी मल्हार " को हमेशा याद करेगी

                                                                       

1 comment:

  1. Aapka lekh padhkar dil khush ho ja ta hai🌹❤️🙏

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