Friday, February 16, 2018

जब दिल्ली के मशहूर रीगल सिनेमा में किसी ने पृथ्वीराज कपूर को "आवारा का बाप " कह दिया

पृथ्वी राज कपूर
मेरी कोशिश रहती है बीती हुई यादों के सहारे फ़िल्मी दुनिया के सितारों के महान व्यक्तित्व को तलाशना जिसे हमने साक्षात तो नहीं देखा लेकिन कई फ़िल्मी कहानियों मे वो आज भी जिंदा है 1947 में जब पृथ्वी राज कपूर का ‘पृथ्वी थियेटर ग्रुप’ अपने पारंपरिक और नये प्रयोगों से सारे देश में वाह वाही बटोर रहा था उसी वक्त उनके बेटे राज कपूर के मन में ना जाने क्या कुछ पक रहा था राजकपूर लेखक ख्वाजा अहमद अब्बास की प्रसिद्ध टीम का हिस्सा रहे है ख्वाजा अहमद अब्बास मूल रूप से आवारा मेहबूब खान से निर्देशित करवाना चाहते थे लेकिन दोनों की कास्टिंग पर सहमति नहीं बन पाई मेहबूब खान अशोक कुमार को न्यायाधीश और दिलीप कुमार को बेटे की भूमिका देना चाहते थे इस बात पर अब्बास ने मेहबूब स्टूडियो से अपनी स्क्रिप्ट वापस ले ली और राज कपूर ने आवारा निर्देशित करने का फैसला किया जितना प्यार राज कपूर के पिता पृथ्वीराज कपूर पृथ्वी थियेटर से करते थे कुछ वैसा ही लगाव राज कपूर को आर.के स्टूडियो से था इसलिये तो स्टूडियो का काम अभी पूरा भी नहीं हुआ था कि राज कपुर ने अपनी फिल्म आवारा का मशहूर ड्रीम सीक्वेंस आर.के स्टूडियो में फिल्मा डाला गीत "घर अया मेरा पारदेसी" के दृश्य को भारतीय सिनेमा का पहला सपना अनुक्रम (ड्रीम सीक्वेंस ) माना जाता है, जिसमें छोटे-छोटे बादलों के समुद्र के साथ मुख्य चरित्र के दिमाग के संघर्ष को दिखाया गया था इसके बाद हमारी फ़िल्मी में ड्रीम सीक्वेंस फिल्माए जाने लगे 

 पृथ्वी राज कपूर और राजकपूर अपनी फिल्म 'आवारा ' की सफलता का जश्न मनाते हुए

14 दिसंबर 1951 को आवारा भारत में रिलीज़ हुई राज कपूर को ना केवल हिंदुस्तान में बल्कि सारी दुनिया में लोग जानने लगे ,खासतौर से सोवियत रुस में तो उनकी दीवानगी लोगों के सिर चढ़कर बोलने लगी आवारा को केवल भारत में ही नहीं बल्कि पश्चिम एशिया में भी एक बहुत बड़ी सफलता मिली आवारा उन गिनी-चुनी फिल्मों मे से एक थी जिसे पहली बार रुस के सिनेमाघरों मे भारत के प्रधानमंत्री श्री जवाहरलाल नेहरु की यात्रा के दौरान दिखाया गया था आवारा रूस की अघोषित राष्ट्रीय फ़िल्म बन चुकी थी आर.के बैनर की असली पहचान बनी आवारा की रिलीज़ के बाद राज कपूर की  गिनती जहां देश के एक लीडिंग एक्टर और निर्देशक के तौर पर होने लगी फिल्म अवारा में उस ज़माने में राजकपूर ने नरगिस को स्विम सूट पहनाई थी पूरी फिल्म कि बजट 1.2 करोड़ थी लेकिन एक गाने पर उन्होंने 18 लाख खर्च कर दिये पैसे कम पड़ने पर नरगिस ने अपने गहने तक बेच दिए पृथ्वीराज कपूर ने फिल्म आवारा में जज रघुनाथ का सशक्त रोल अदा किया था
 रीगल सिनेमा -कनाट प्लेस ,नई  दिल्ली
ये विलक्षण संजोग था की उस समय भारत के कई सिनेमा घरो में राजकपूर के पिता पृथ्वी राज कपूर की 1950 में रिलीज़ व्ही शांता राम की "दहेज़ " और आवारा साथ साथ चल रही थी पृथ्वी राज कपूर के लिए ये बड़े गर्व की बात थी की दर्शक बाप और बेटा दोनों की फिल्मो को पसंद कर रहे थे पृथ्वी राज कपूर उस समय राज्यसभा के सम्मानित सांसद थे और संसद का शीतकालीन सत्र दिल्ली में चल रहा था दिल्ली के कनॉट प्लेस में रीगल ऐसा सिनेमा हॉल था जो युवाओं और बुज़ुर्गों सभी को आकर्षित करता था रीगल सिनेमा की शुरुआत साल 1932 में दिल्ली के कनॉट प्लेस में हुई थी रीगल लगभग उतना ही पुराना है जितना भारतीय सिनेमा का इतिहास साल 1931 में पहली आवाज वाली फिल्म 'आलम आरा' रिलीज हुई थी और 1932 में रीगल का जन्म हुआ था 1932 में बना रीगल राजधानी का पहला प्राइम सिंगल स्क्रीन थिएटर था रीगल की स्थापना रियल स्टेट टाइकून सर सोभा सिंह ने की थी इसे ब्रिटीश आर्किटेक्ट वॉल्टर स्कायस जार्ज ने बनाया था हालांकि ये मुख्य रूप से स्टेज परफॉर्मेंसेज के लिए बनाया गया था,लेकिन बाद में इसने कई कॉन्सर्ट्स, नाटकों और बैले परफॉर्मेंसेज की भी मेजबानी की यहां फिल्म का प्रसारण कई साल बाद शुरू हुआ 1950 से 70 के दशक तक रीगल में छह महीने तक एक ही फिल्म चला करती थी बहुत हुआ तो साल भर में रीगल पर सिर्फ तीन बार मूवी बदलती थी ये वो दौर था जब पुलिस को भीड़ पर काबू पाने के लिए नियुक्त किया जाता था

कनॉट प्लेस को उसकी शुरुआती पहचान भी रीगल से ही मिली लगभग 1960 तक कनॉट प्लेस जाने के लिए आपको तांगे वाले को देना होता था 25 पैसा और पता बताना होता था रीगल का ......इस हेरिटेज सिनेमा घर को दिल्ली के दिल कनॉट प्लेस का Iconic Landmark भी कहा जाता था 86 साल पुराना रीगल सिनेमा कई किस्सों और कई यादों का गवाह रहा है पृथ्वी राज कपूर के कुछ दोस्तों ने उनके साथ इसी रीगल में फिल्म आवारा देखने की देखने की ख्वाईश ज़ाहिर की फिल्म देखने का प्लान बन गया उस समय सांसद रहे पृथ्वीराज कपूर फ़िल्म आवारा देखने के लिए संसद भवन से सीधे रीगल सिनेमा जा पहुंचे सिनेमा के सामने युवाओ की गज़ब की भीड़ थी और शो के टिकटों के लिए मारामारी चल रही थी पृथ्वी राज कपूर ने किसी तरह रीगल सिनेमा के मैनेजर को संदेशा भिजवाया और मैनेजर आ भी गया टिकटों का इंतज़ाम कर मैनेजर भीड़ से बचाता हुआ उन्हें अंदर ले जाने की कोशिश कर रहा था सफ़ेद कुर्ता पाजामा पहने जब पृथ्वीराज कपूर सिनेमाघर में घुस रहे थे तो दर्शको ने उन्हें पहचान किया अचानक उनको सुनाई पड़ा कि दर्शकों में से एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति को कह रहा था,...... "देखिए, ये है आवारा के बाप."....... ये सुनना था कि पृथ्वी राज कपूर ठिठक गए वो पीछे मुड़े और ऐसा कहने वाले पर चिल्ला पड़े "मैं राज कपूर का बाप हूँ , किसी आवारा का नहीं समझे " मैनेजर ने हालात देख इशारे से उस दर्शक को कर चुप रहने के लिए कहा क्योंकि वो जानते थे की इससे पहले पृथ्वीराज कपूर बॉम्बे में बिलकुल इसी बात के लिए एक व्यक्ति को चांटा तक जड़ चुके थे मैनेजर ने किसी तरह उन्हें भीड़ से निकाल कर सीट तक पुहुँचाया फिल्म के शुरू होने तक उनका चेहरा तमतमाया रहा लेकिन बाद में वो सामान्य हो गए अब जिस के बेटे की फिल्मे देश से बाहर भी धूम मचा रही हो वो अपने आप को किसी "आवारा का बाप "कहलाना क्यों पसंद करेगा ? पृथ्वीराज कपूर जैसा महान कलाकार तो कतई नहीं पृथ्वीराज कपूर द्वारा निर्देशित व अभिनीत तीन नाटकों दीवार, पठान, गद्दार का मंचन यहीं हुआ था नाटकों के मंचन के बाद पाकिस्तान से आए शरणार्थियों के लिए पृथ्वीराज कपूर ने झोली फैलाकर चंदा भी मांगा था एक किस्सा तो ये भी बताया जाता है की है कि एक रोज़ रोज शशि कपूर यहां फिल्म देखने आए थे और सीट न मिलने पर उन्होंने बिना पब्लिक की जानकारी के पीछे खड़े रहकर फिल्म पूरी देखी थीं
 
रीगल सिनेमा का भीतरी दृश्य
दिल्ली के रीगल सिनेमा के शानदार इतिहास से कई घटनाएं और नामी हस्तियों के नाम जुड़े हैं कभी देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू, पहले राष्ट्रपति डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद, स्वतंत्र भारत के पहले गवर्नर जनरल लॉर्ड माउंटबेटन और भारत की पहली महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी भी इस सिनेमाघर में आए थे अभिनेताओं से लेकर नेताओं तक रीगल हर किसी की पहली पसंद था राजकपूर को रीगल से विशेष लगाव था उनकी हर फिल्म का प्रीमियर यही होता था और वो फिल्म के पहले शो में मौजूद रह कर हवन करवाते थे राजकपूर और नरगिस ने रीगल के फैमली बॉक्स में बैठ कर कई फिल्में देखी हैं 1978 में राजकपूर की नई फिल्म 'सत्यम् शिवम् सुंदरम्' बेहद चर्चा में थी ये एक ऐसी फिल्म थी जिसने कई सुर्खियां बटौरी 1978 के लिहाज से ये काफी बोल्ड फिल्म थी कई डिस्ट्रीब्यूटर्स और सिनेमाघरों ने इस फिल्म को लेने तक से इंकार कर दिया था. लेकिन रीगल सिनेमा, उन सिनेमाघरों में से एक था जिसने बिना झिझक इस फिल्म को चलाया राजकपूर के बाद उनके बेटे ऋषि कपूर की पहली फिल्म बॉबी का प्रीमियर भी इसी सिनेमा हाल में हुआ तब टिकट में इनाम के तौर पर मोटरसाइकिल रखी गई थी 1973 में 'बॉबी' फ़िल्म के लिए रीगल के सामने इतने लोग जमा थे कि आप यकीन ही नहीं कर सकते भीड़ में ऐसी अफ़वाह फैली थी कि डिंपल असल में राज कपूर की बेटी हैं जिन्हें बॉम्बे के एक अमीर परिवार ने गोद लिया है कॉलेज की महिलाओं ने इस तरह की टिप्पणियों का विरोध किया और वहां मौजूद लड़कों से कहा कि वो हद में रहें या अपने घर जाएं और उन्हें शांति से फ़िल्म देखने दें इस घटना का बड़ा असर देखने को मिला और इस तरह की अफ़वाह फिर नहीं सुनाई दी
रीगल सिनेमा के आखरी शो की टिकट

ये दुःखद है की दिल्ली का रीगल सिनेमा हाल 86 सालो के बाद ऐसे कई किस्से अपने अंदर समेटे हमेशा के लिए बंद हो गया 30 मार्च 2017 को 6:15 पर राज कपूर की 'मेरा नाम जोकर' (1970) और रात 10 बजे 'संगम' (1964) फ़िल्मों की स्क्रीनिंग के साथ रीगल सिनेमा के शानदार सफ़र का अब अंत हो चुका है अपने आखरी दौर में भी रीगल ने अपने लास्ट शो में राज कपूर को श्रधांजलि देते हुए सिर्फ उनकी फिल्मे ही दिखाई शायद इतिहास बनने से पहले रीगल पूरी शिद्दत से अपने इतिहास को जीना चाहता था राजकपूर के संवाद जब फिर से हाल में गूंजें होंगे तो तो हर दरो-दीवार, खिड़कियां, दरवाजे, सीढ़ियां, कुर्सियां जैसे चौंक कर जाग उठी होगी जैसे कि उनकी आखिरी इच्छा किसी ने सुन ली हो शोमैन राजकपूर की फिल्में मेरा नाम जोकर और संगम के शो के साथ इस सिंगल स्क्रीन सिनेमा हाल का पर्दा हमेशा के लिए गिर गया


मेरा ये लेख भी रीगल सिनेमा को आखरी श्रद्धांजलि है 'रीगल ' यानी शाही अपने नाम के जैसे इस सिनेमा हॉल का इतिहास भी किसी राजे-रजवाड़े से कम नहीं है आज की मल्टीप्लेक्स और स्मार्टफोन,इंटरनेट से लैस यंग जेनरेशन को शायद रीगल के बंद होने से ज्यादा फर्क न पड़े क्योंकि आजकल की पीढ़ी को अपने सुनहरे अतीत से कोई वास्ता नहीं लेकिन हर उस बीते सुनहरे दौर में मेरे जैसे फिल्म प्रेमी के लिए फिल्म देखने का मतलब ही रीगल की सैर होता था पहले पहले यहां टिकट की जगह लोगों के हाथों में स्टांप लगाया जाता था गर्मियों में यहां सिर्फ पंखा भर चलाने से हॉल ठंडा रहता है आज के भीषण बाजारवाद और सरकारी टैक्स की मार के चलते रीगल का बन्द होना लाजिमी था और उसकी यादों से जुड़ी कहानी पर दिल्ली वासी होने के कारण मेरा जज्बाती होना भी क्योंकि इस रीगल सिनेमा के साथ राजकपूर के आलावा न जाने हमारे जैसे कितने लोगो की सुनहरी यादे जुडी होगी चाहे कभी दोस्तों की खिलखिलाहटों और पॉपकार्न के बीच पहली फिल्म देखने की खुशी हो या किसी अपने से पहली मुलाकात ऐसे अनगिनित यादो के साथ ये किसी अपने से बिछड़ जाने सा अनुभव है रीगल सिनेमा और अन्य सिंगल स्क्रीन सिनेमा हॉल दिल्ली समेत पूरे भारत में तेज़ी से बंद हो रहे है इसका प्रमुख कारण गृह कर,मनोरंजन कर,और बिजली पानी की दरों में 100 % तक वृद्धि है राज्य की सरकारों को सिंगल स्क्रीन सिनेमा हॉल को बचाने के लिए विशेष पैकेज जारी करना चहिये क्योंकि ये एक धरोहर बचाने जैसा ही है सिंगल स्क्रीन सिनेमा हॉल पर लगाए गए टैक्स  किसी भी मल्टीप्लेक्स की तुलना में वाजिब नहीं है फिल्म को एक साथ सैकड़ो लोगो के साथ देखने का मजा सिंगल स्क्रीन सिनेमा हॉल में ही आता है इनको बचाने की मुहीम शुरू होनी चहिये
 
अपने आखरी दौर में भी रीगल ने अपने लास्ट शो में राज कपूर को श्रधांजलि दी

3 comments:

  1. MAINE BHI REGAL ME KAI FILMS DEKHI HAI, REGAL KE PAAS HI RIVOLI BHI HUA KARTA THA. LEKIN REGAL ME HIGH CLASS GENTRY FILM DEKHNE AATI THEE. KEWAL FANS SE HI CINEMA HALL ITNE CHILLED HO JAYA KARTA THA, EK BAAR JAB REGAL ME NIGHT SHOW ME FILM DEKHNE GAYA TO BINA AC KE ITNA SAKUN MILA KI MUJHE NEEND AA GAI, FILM KHATAM HO GAI AUR JAB GATE KEEPAR NE AAKAR JAGAYA TO PATA CHALA. YEH SABSE BADI VIDMBNA HAI KI SARKAR SINGLE SCREENS PAR KOI DHYAN NAHI DE RAHI. BADE PARDE PAR FILM DEKHNE KA MAJAA MULTIPLEX ME NAHI AATA. REASONABLE RATES, FOOD ITEMS BHI SASTE AUR PARKING BHI REASONABLE. ABHI BHI SARKAR NAHI JAAGI TO PAWAN JI AANE WALE TIME ME AAPKO SUHANI YAADE BEETE DINO KI ME SINGLE SCREENS KE BAARE ME BATANA PADEGA, AUR AANEWALI GENERATION KO SURPRISE HOGA KI KYA ITNE BAXDE CINEMA HAAL HUA KARTE HAI KYA

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    1. आप सही कह रहे है साहेब रीगल पर पहले अंतराष्ट्रीय फिल्म फेस्टिवल भी आयोजित होते थे जहाँ दुनिया भर के फिल्म प्रेमी फरवरी में जमा होते थे और उम्दा फिल्मो का लुत्फ़ उठाते थे मैंने भी कई अंतराष्ट्रीय फिल्मे रीगल पर देखी है आज के मल्टीफ्लेक्स सिनेमा घरो में छोटे से परदे पाए फिल्म देखना मानो किसी बड़े टीवी पर फिल्म देखने के बराबर है बीच के किसी होटल की तरह खाने की थाली आ जाती है जो बहुत महँगी होती है सिंगल स्क्रीन के बड़े परदे पर एक साथ सेकड़ो लोगो के साथ फिल्म देखने का मजा ही कुछ और होता था आजकल तो फिल्म देखने का मजा ही नहीं आता है मैंने दिल्ली के शीला सिनेमा के बंद होने पर भी एक लेख लिखा था जो प्रकाशित भी हुआ था
      https://hindi.news18.com/news/entertainment/bollywood/after-regal-single-screen-theatre-shiela-also-shuts-down-980920.html

      इन सिंगल स्क्रीन सिनेमाघरो को इतिहास बनने से बचाने के लिए एक मुहीम शुरू होने चाहिए

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  2. शानदार सिनेमा घर है एक फ़िल्म मैंने भी देखी है

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