ये बात 1943 के आसपास की है सदाबहार देव आनंद अपने भाई चेतन आनंद
के कहने पर सेना की सर्विस छोड़कर उदय शंकर की ड्रामा प्रोडक्शन कंपनी से
जुड़े थे देव साहेब इस ड्रामा कंपनी में लाइट असिस्टेंट का काम करते थे इधर एक कन्नड़ भाषी कोरियोग्राफर 'वसन्त कुमार शिवशंकर पादुकोणे 'बतौर
कोरियोग्राफर अपने करियर की शुरूआत करने जा रहा था जो आगे चलकर 'गुरुदत्त" के
नाम से मशहूर हुआ बहुत ही कम लोग जानते है की एक धोबी की दुकान से
कमीज की अदला बदली को लेकर इन दोनों महान कलाकारों की दोस्ती हुयी थी दरअसल दोनों के कपड़े एक ही धोबी के यहाँ धुला करते थे एक बार धोबी
ने ग़लती से गुरु दत्त की कमीज़ देव आनंद के यहाँ और देव आनंद की कमीज़
गुरु दत्त के यहाँ पहुंचा दी मज़े की बात ये कि दोनों ने वो कमीज़ पहन भी
ली .....आगे जो हुआ वो दिलचस्प है....
गुरुदत्त की देव आनंद से पहली मुलाकात पुणे के प्रभात स्टूडियो में हुई थी
गुरुदत्त को प्रभात फिल्म
कम्पनी ने बतौर कोरियोग्राफर काम पर रखा गया था उदय शंकर की ड्रामा
प्रोडक्शन कंपनी से छुट्टी मिलने के बाद देव साहेब अक्सर काम की तलाश में
प्रभात स्टूडियो के चक्कर लगाते रहते थे प्रभात स्टूडियो में ही
गुरुदत्त भी बतौर असिस्टेंट कोरियोग्राफर अभिनेताओं को डांस सिखाने आते थे
....... किस्सा कुछ यूँ हुआ की एक दिन जब देव आनंद स्टूडियो में घुस रहे
थे तो गुरु दत्त ने उनका हाथ मिलाकर स्वागत किया और अपना परिचय देते हुए
कहा कि, "मैं निर्देशक बेडेकर का असिस्टेंट हूँ" बाते करते करते अचानक
उनकी नज़र देव आनंद की कमीज़ पर गई कमीज़ उन्हें कुछ पहचानी हुई सी लगी और
उन्होंने छूटते ही पूछा, "ये कमीज़ आपने कहाँ से ख़रीदी ?" देव आनंद
थोड़ा सकपकाए फिर संभलते हुए कहा ..."ये कमीज़ मेरे धोबी ने मुझे किसी की सालगिरह पर
पहनने के लिए दी है तभी देव साहेब की नजर गुरुदत्त साहेब की शर्ट पर
गई अब उन्हें लगा की ये तो उनकी शर्ट है उन्होंने गुरुदत्त साहेब से
पूछा की ...." जनाब कमीज़ आप की भी शानदार है आप भी बताएं कि आपने कमीज़
कहाँ से ख़रीदी ?" गुरु दत्त ने शरारती अंदाज़ में जवाब दिया कि...." ये कमीज़ मैंने कहीं
से चुराई है " दोनों ने ज़ोर का ठहाका लगाया,जब दोनों ने अपनी
अपनी कमीज़ की असलियत बयां की तो काफी देर तक हँसते रहे एक दूसरे से गले
मिले और हमेशा के लिए एक दूसरे के दोस्त हो गए ये दोस्ती गुरुदत्त की मौत तक बनी रही
देवानंद और गुरुदत्त |
उस वक्त गुरुदत्त
फिल्म 'हम एक हैं ' (1946) के लिये नृत्य निर्देशन का काम देख रहे थे गुरुदत्त की
सिफारिश पर ही पी.एल संतोषी जी ने देवानंद को स्क्रीन टेस्ट के लिए बुलाया
स्क्रीन टेस्ट में पास होने के बाद उन्हें पी.एल संतोषी की फिल्म ' हम एक है ' मिली हालाँकि देवसाहब की पहली फिल्म 'हम एक है 'असफल रही लेकिन बालो के पफ बनाये मतवाली चाल वाले देवानंद ने दर्शको के दिल में अपनी जगह बना ली गुरुदत्त और देवसाहब दोनों ने साथ मिलकर पूना शहर की ख़ाक छानी और और फ़िल्मी दुनिया में जगह बनाने के लिए संघर्ष किया एक दिन
अपने बियर के गिलास लड़ाते हुए गुरु दत्त ने देवानंद से एक वादा किया......... "देव अगर कभी मैं
निर्देशक बनता हूँ तो तुम मेरे पहले हीरो होगे " देव ने भी उतनी ही गहनता से जवाब दिया..... "और अगर मुझे कोई फ़िल्म प्रोड्यूस
करने को मिलती है तुम मेरे पहले निर्देशक होगे " ....आगे चल कर 1949 में जब
चेतन आनंद और देवानंद ने मिलकर अपनी नवकेतन फिल्म्स कंपनी बनाई तो देव
आनंद को अपना वादा याद रहा जब नवकेतन फ़िल्म्स ने 'बाज़ी' (1951) बनाने
का फ़ैसला किया तो निर्देशन की ज़िम्मेदारी उन्होंने गुरुदत्त को
दी और गुरुदत्त ने भी देव आनंन्द को गुरुदत्त फिल्म्स की 'सी.आई.डी
(1956 )' में बतौर हीरो लेकर अपना वादा पूरा किया जिसे राजखोसला ने निर्देशित किया था ...दोनों की फिल्मे सफल रही और दोनों ने अपनी दोस्ती
और वायदा निभाया दोनों जब भी मिलते तो इस कमीज़ वाले किस्से और उस धोबी को जरूर याद
करते जिनकी वजह से वो दोस्त बने और उनकी दोस्ती इस मुकाम तक पहुंची .......आजकल इस तरह के दोस्त और दोस्ती का
अभाव है अब तो दुनिया में रिश्ते सिर्फ मतलब और जरुरत तक ही सिमित रह गए
ऐसे में गुरुदत्त देवानंद जैसी दोस्ती की मिसाल फ़िल्मी दुनिया में मिलना अब असंभव है
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