नाटे कद ,हाथ कमर पर रख धूर्त आँखों से मुहावरों में बात करने वाले पुरानी हिन्दी फ़िल्मों के प्रसिद्ध खलनायक और चरित्र अभिनेता कन्हैया लाल से भला कौन अपरिचित होगा उनका पूरा नाम 'पं.कन्हैयालाल चतुर्वेदी ' था वो जब भी परदे पर आते कुछ ऐसा रंग जम जाता है कि धुले नही धुलता। .....चरित्र-नायक और खलनायक तो बहुत हुए है और आगे भी होंगे पर कन्हैयालाल में जो अदाएं है वे भुलाये नहीं भूलती। तीन दशक से अधिक समय उन्होंने कंजूस सेठ, कठोर साहूकार, बदमाश मुनीम, लालची बनिया, चालाक नौकर, बेईमान पोस्टमेन, झूठे गवाह, गांव में फूट की आग लगाने वाले विभीषण की और न जाने कितनी भूमिकाएं की वो जब परदे पर आते तो दर्शक समझ जाते है कि आगे कुछ बुरा होने वाला है ......वाराणसी में 1910 में पैदा हुए कन्हैया लाल ने पढाई-लिखाई ज्यादा नही की थी,लेकिन किरदारों को ऐसे निभाते थे मानो जिन्दगी का सारा फलसफा क्षण भर में ही व्यक्त कर जाते हो..... कन्हैयालाल के पिता पंडित भैरो दत्त चौबे वाराणसी में 'सनातन धर्म नाटक समाज' कंपनी के मालिक थे। और नाटक मंचित करते थे जिन्हें बनारस के लोग 'चौबेजी 'के नाम से जानते थे लेकिन कन्हैयालाल की रूचि नाटकों में अभिनय करने में नहीं थी बल्कि उनका झुकाव लेखन कार्य करने में ज्यादा था उन्होंने 16 वर्ष की उम्र में ही लेखन शुरू कर दिया था 'भारतेंदु युग ' के नाटकों उनकी भरपूर रूचि थी पिता जी की मृत्य के बाद 'सनातन धर्म नाटक समाज' कंपनी चलाने का भार उनके और भाई संकटा प्रसाद पर आ गया ये वो दौर था जब भारत में फिल्मो का युग शुरू हो चुका था और लोगो की रूचि नाटक ,नौटंकी में कम हो गई थी लिहाजा इस का असर उनकी नाटक कंपनी पर भी पड़ना स्भाविक था उन्होंने मंदे में चल रही अपने पिता की की विरासत 'सनातन धर्म नाटक समाज' कंपनी को चलाने की भरपूर कोशिश की लेकिन मजबूरन लगातार हो रहे घाटे के कारण उन्हें अपनी नाटक कंपनी बंद करनी पड़ी तो उन्होंने बॉम्बे जाकर फिल्मे बनाने का फैसला किया। उनके बड़े भाई संकटा प्रसाद चतुर्वेदी पहले से ही मूक फिल्मों में एक अभिनेता के रूप में स्थापित थे उन्होंने कई फिल्मो में काम किया था संकटा प्रसाद चतुर्वेदी को आपने फिल्म फिल्म पृथ्वी वल्लभ (1943 ) वीर अभिमन्यु (1931),वतन (1938) डाकू की लड़की (1954) में अवशय देखा होगा लेकिन कन्हैयालाल बॉम्बे आकर भी अभिनय की बजाय फिल्मों में लिखना और निर्देशन करना चाहते थे।
फिल्म- भूख (1947 ) में अभिनेता शेख मुख्तार और हुस्ना के साथ कन्हैयालाल |
आखिर एक दिन इसी चाहत में वे संवाद लेखन का काम मांगने पर मशहूर 'सागर फिल्म कम्पनी ' के मालिक 'चमन लाल देसाई ' के पास जा पहुंचे ,चमन लाल ने उन्हें ऊपर से नीचे तक देखने के बाद सोचा ये यह नवांगतुक लेखक प्रतिभा संपन्न लगता है है सो इसे छोड़ना नहीं चाहिए उन्होंने कहा कि ....''हमारे यहाँ 35 रु. महीने की एक एक्स्ट्रा कलाकार की जगह खाली है कर सकोगे तो बोलो ?'' कन्हैयालाल के अंदर के लेखक ने उनसे मन ही मन कहा – '' कर ले कन्हैया कभी तो चमन सेठ जी को अपनी प्रतिभा दिखाने का मौक़ा मिल ही जाएगा '' और वो इस तरह याकूब ,बिब्बो ,पाण्डे अभिनीत फिल्म ‘ सागर का शेर ‘ (1937) में भाले वाले अंगरक्षक बन गए इस फिल्म में उनके भाई संकटा प्रसाद का भी रोल था कुछ समय बाद उन्हें 'साधना' (1939) में सह निर्देशन और संवाद लेखन का अवसर मिला साथ में उन्होंने इसी फिल्म में एक बूढ़े काका की भी भूमिका की इससे उन्हें इतनी ख्याति मिली कि वे एक अच्छे अभिनेता माने जाने लगे फिल्म 'साधना' के लिए संवाद और गीत लेखक के रूप में काम करते करते अचानक उन्हें ये रोल मिला । हुआ यूँ था की असल में, जब वह संवाद में पढ़ रहे थे तो उनकी संवाद अदायगी देख सागर के मालिक श्री चिमनलाल देसाई ने उन्हें 'साधना' में भूमिका निभाने की पेशकश कर दी जिसे उन्होंने इस डर से स्वीकार कर लिया की कही उन्हें नौकरी से हाथ न धोना पड़े 'साधना ' फिल्म एक बड़ी हिट थी और इंपीरियल सिनेमा (बम्बई ) में उसने रजत जयंती मनाई एक संवाद लेखक की हैसियत से फिल्मों में पैर जमाने का मूड बनाने वाले कन्हैयालाल आखिर एक अभिनेता बन गए .....आगे भी उन्होंने फिल्मों में अपनी किस्मत आजमाने की की कोशिश जारी रखी उन्होंने उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद अभिनीत फिल्म 'मिल मजदूर' (1934) ,'ग्रामोफ़ोन सिंगर' (1938 ) जैसी फिल्मो में छोटे-छोटे रोल भी किये ,उन्हें 1939 में सागर मूवीटोन की फिल्म 'एक ही रास्ता ' में 'बांके' का रोल मिला और उनकी गाड़ी चल निकली .........महबूब खान द्वारा निर्देशित इस फिल्म में अरुण कुमार आहूजा ,शेख मुख्यतार और हरीश के बीच 'बांके' अपनी जगह बनाने में सफल रहा...... फिल्म तो नहीं चली पर महबूब को कन्हैयालाल भा गए उसके बाद "मेहबूब की फिल्म 'सिस्टर '(1941) में उन्होंने मोती नामक एक जेब कतरे की भूमिका अदा की थी
महबूब खान की फिल्म औरत (1940 ) में कन्हैयालाल |
महबूब खान की फिल्म मदर इंडिया (1956) में कन्हैयालाल |
महबूब खान की फिल्म औरत (1940 ) |
सन 1940 में महबूब खान ने अपनी बहुचर्चित फिल्म 'औरत' में कन्हैयालाल को चतुर साहूकार की भूमिका दी उनका सुखी लाला का किरदार फिल्म 'औरत' के साथ ही हिट हो गया 'औरत' की कामयाबी के बाद भी महबूब खा उस फिल्म से संतुष्ट नही थे उन्हें लगता था कि वो जो कहना चाहते थे वह 'औरत' में कह नही पाए है लिहाजा सत्रह साल बाद उन्होंने उसी कथानक पर “मदर इंडिया” (1956 ) फिल्म बनाई जिसमे एक बार फिर कन्हैयालाल ने चतुर साहूकार का किरदार निभाया था जिसका नाम था सुखी लाला | ....“मदर इंडिया” में महबूब ने “औरत” के सारे कलाकार बदल दिए लेकिन साहूकार के किरदार के लिए कन्हैयालाल को बदल पाना महबूब के लिए नुमकिन नही हो सका ......अपने एक साक्षात्कार में महबूब खान के ये शब्द थे ....... "मदर इंडिया'' की सारी कास्टिंग को अंतिम रूप देने में मुझे अडचन आयी लेकिन लाला की भूमिका में मै कन्हैयालाल के अलावा किसी ओर के बारे में सोच भी नही पाया“मैंने कन्हैयालाल से जब यह कहा कि आप लाला की भूमिका फिर से करने वाले है तो उनकी आँखों में चमक आ गयी '' .... बात सच भी थी कि गौरतलब है कि “मदर इंडिया” फिल्म में जिसकी सबसे ज्यादा चर्चा होती है वह है नरगिस और महबूब खान लेकिन कन्हैयालाल के बिना क्या यह सम्भव था ? इस फिल्म के दृश्य की शूटिंग के दौरान घर का बनाया सेट कन्हैयालाल पर गिर पड़ा ,कन्हैयाल को चोट लगी। लेकिन उन्होंने महबूब खान से तुरंत डॉक्टर को फोन करने की बजाय पहले शेष शॉट खत्म करने के लिए कहा। जब वह सीन शूट हो गया और वो सेट से बाहर आये डॉक्टर उनका इंतजार कर रहा था अपने काम के प्रति ये उनका समर्पण था अभिनेता सुनील दत्त ने अपने एक साक्षात्कार में कहा था ....'' मै तो मदर इंडिया के सेट पर अक्सर कैमरे के पीछे खड़े होकर उनकी परफॉरमेंस को देखता था | कभी ऐसा नही लगता कि वो अभिनय कर रहे है | इतने विन्रम और सादगी पसंद इंसान थे कि उन्हें इस बात का जरा भी अहसास नही था कि वे कैमरे के सामने क्या चमत्कार कर जाते है ''
उनके फिल्मो में चरित्र रोल करने को लेकर एक किस्सा है एक बार किसी फिल्म में अभिनेता मोतीलाल के पिता का रोल करने वाले कलाकार शूटिंग में नहीं पहुंचे तो डायरेक्टर ने उन्हें मोतीलाल के बूढ़े बाप का रोल करने को कहा जबकि वो यंग थे ,इस फिल्म में उन्होंने मोती लाल के बाप का रोल ऐसा निभाया की वो फिर फिल्मो में बूढ़े होते गए पर उनके रोल अब ज्यादा लम्बे लिखे जाने लगे ..... “मदर इंडिया” के बाद भी तमाम ऐसी फिल्मे है जिनमे कन्हैयालाल के अभिनय का जादू देखने को मिला है गंगा जमना, उपकार , दुश्मन , अपना देश , गोपी , धरती कहे पुकार और हम पांच आदि ....“गंगा जमना” में साथ काम कर चुके ट्रेजेडी किंग कहे जाने वाले दिलीप कुमार ने उनके बारे में कहा था कि ......''मै उनकी प्रस्तुति से बहुत घबराता था | संवाद अदायगी के दौरान वे जिस तरह से सामने वाले कलाकार को रिएक्शन देते थे उसका सामना करना बहुत मुश्किल होता था'' राजेश खन्ना ने जब “दुश्मन” में उनके साथ काम किया तो उन्हें भी कहना पड़ा ....“वो तो बहुत नेचुरल एक्टिंग करते थे” “दुश्मन” में उनका एक संवाद काफी लोकप्रिय हुआ “ कर भला तो हो भला ” मनोज कुमार की चर्चित फिल्म ‘उपकार’ में उन्होंने टिपिकल साहूकार की जो भूमिका की उसकी सभी क्षेत्रों में प्रशंसा हुई और कुछ समीक्षकों ने तो यहां तक लिखा कि वह करैक्टर उस फिल्म की जान है और कन्हैयालाल ने उस रोल को इस तरह साकार किया कि गांव का सही चित्र हमारी आंखो के सामने उभर आता है। कन्हैयालाल है जो अपने डायलॉग के साथ कुछ ऐसा तकियाकलाम निकाल लेते है जिसकी वजह से वह रोल कई दिनों तक याद रहता है। कभी कभी वे एक्टिंग करते हुए इस तरह मुहावरेदार डायलॉग बोल लेते है कि वे तीर की तरह असर करते है। गंगा जमुना में “ राम बचाये कल्लू को ,अंधा करदे लल्लू को ” यह डायलॉग उन्होंने इस तरह बोला कि उसके बाद कई दिनों तक कन्हैयालाल कहीं भी दिखायी पड़ते, परदे पर या परदे के बाहर तो दर्शक उस डायलॉग को बोलकर ही उनका अभिनंदन करते। कन्हैयालाल ‘ताकिया कलाम’ और मुहावरेदार डायलॉग के उस्ताद थे
फिल्मो में सक्रिय होने के बाद भी रंगमंच से उनका प्रेम नहीं छूटा अगर उन दिनों फ़िल्में इतनी लोकप्रिय न होतीं तो शायद कन्हैयालाल एक मंझे रंगमंच अभिनेता या नाटककार होते.70 के दशक में उन्होंने ‘ पंद्रह अगस्त के बाद ‘ नाम का नाटक लिखा जो बुरी तरह असफल हो गया और उन्हें बहुत घाटा भी दे गया दरअसल उस समय देश में आपातकाल था और ये नाटक मौजूदा राजनितिक पर व्यंग था और इस तरह के नाटकों पर सरकार की पैनी नजर रहती थी बंबई सी.आई.डी पुलिस की स्पेशल ब्रांच ने बिना किसी सहानुभूति से इस नाटक को बुरी तरह सेंसर किया और इतनी ज्यादा काट पीट कर दी की नाटक की मूल आत्मा ही मर गई जिस से वो बेहद निराश हुए बॉलीवुड में भूमिकाओं की एक शताब्दी पूरी करने के बाद हथकड़ी (1982) उनकी अंतिम फिल्म साबित हुई 4 अगस्त 1982 को 72 वर्ष की आयु में उनका देहांत दिल्ली में हुआ इस प्रतिष्ठित कलाकार का पार्थिव शरीर भी उनके घर बॉम्बे भी नहीं लाया जा सका......... कन्हैयालाल द्वारा हिंदी फिल्मो में निभाए गए अमर किरदार लाल हवेली का चाचा ,जीत का ठाकुर कल्याण सिंह (1944 ) मदर इंडिया (1956 ) का सुखी लाला, घराना (1960 ) का एडवोकेट श्याम लाल गुप्ता , गंगा जमुना (1961 ) का कालू , गृहस्थी (1963 ) का स्टेशन मास्टर , दादी मां (1966 ) का तोता राम , उपकार (1966 ) का लाला धनी राम ,अपना देश का सेवा राम और दुशमन का दुर्गा प्रसाद (1971 ) हम पांच (1980 ) का शकुनि मामा को कोई भी सिनेमा प्रेमी भला भूल सकता है ?
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