मोहम्मद रफ़ी लता जी के साथ |
लता मंगेशकर ने रफी साहब को याद करते हुए एक इंटरव्यू में कहा था- " सरल मन के इंसान रफी साहब बहुत सुरीले थे। ये मेरी खुशकिस्मती है कि मैंने उनके साथ सबसे ज्यादा गाने गाए। गाना कैसा भी हो वो ऐसे गा लेते थे कि गाना ना समझने वाले भी वाह-वाह कर उठते थे। ''
लेकिन क्या आप जानते है की एक समय ऐसा भी आया था की दोनों कलाकार एक दूसरे से बेहद नाराज़ भी हो गए थे ......60 के दशक में लता मंगेशकर जी अपनी फिल्मों में गाना गाने के लिए रॉयल्टी लेना शुरू कर चुकी थी लेकिन उन्हें लगता कि सभी गायकों को रॉयल्टी मिले तो अच्छा होगा लता जी ,मुकेश जी ने और तलत महमूद ने एसोसिएशन बनाई और रिकॉर्डिंग कंपनी एचएमवी और फिल्म प्रोड्यूसर्स से मांग की , गायकों को गानों के लिए रॉयल्टी मिलनी चाहिए लेकिन लताजी की मांग पर कोई सुनवाई नहीं हुई तो सबने मिल कर एचएमवी के लिए रिकॉर्ड करना ही बंद कर दिया......तब कुछ निर्माताओं और रिकॉर्डिंग कंपनी ने मोहम्मद रफ़ी को समझाया कि ये गायक क्यों झगड़े पर उतारू हैं गाने के लिए जब पैसा मिलता है तो रॉयल्टी क्यों मांगी जा रही है ? .अब रफी भैया बड़े भोले थे.... उन्होंने कहा, " मुझे रॉयल्टी नहीं चाहिए ." उनके इस कदम से सभी गायकों की मुहिम को धक्का पहुंचा क्योंकि रफ़ी साहेब तो सब गायको के सिरमौर थे अगर वो पीछे हटते तो बाकि गायको की इस मुहिम का कोई औचित्य ही नहीं रह जाता , उन्हे कोई गंभीरता से भी नहीं लेता मुकेश जी ने लता मंगेशकर,जी से कहा, ..." लता दीदी रफ़ी साहब को बुलाकर आज ही सारा मामला सुलझा लिया जाए."... सबने रफी जी से मुलाक़ात की सबने रफ़ी साहब को समझाया तो वो गुस्से में आ गए और मुकेश की तरफ देखकर बोले, " मुझे क्या समझा रहे हो ये जो महारानी बैठी है इसी से बात करो." तो लता जी ने भी गुस्से में कह दिया, "आपने मुझे सही समझा. मैं महारानी ही हूं." रफ़ी साहब ने लता जी से कहा ...''मैं तुम्हारे साथ गाने ही नहीं गाऊंगा '' लता जी ने भी पलट कर कह दिया,....''आप ये तक़लीफ मत करिए मैं ही नहीं गाऊंगी आपके साथ.'' ......अब मामला संगीन हो गया ........लता जी कई संगीतकारों को फोन करके कह दिया कि मैं आइंदा रफ़ी साहब के साथ गाने नहीं गाऊंगी इस तरह से लता जी और रफ़ी साहिब का तीन साढ़े तीन साल तक झगड़ा चला और पूरी फिल्म इंडस्ट्री परेशान हो गई बाद में नौशाद और दलीप कुमार जी की पहल पर ये शीत युद्ध समाप्त हुआ था और दोनों ने साथ फिर से गाना शुरू किया
लेकिन क्या आप जानते है की एक समय ऐसा भी आया था की दोनों कलाकार एक दूसरे से बेहद नाराज़ भी हो गए थे ......60 के दशक में लता मंगेशकर जी अपनी फिल्मों में गाना गाने के लिए रॉयल्टी लेना शुरू कर चुकी थी लेकिन उन्हें लगता कि सभी गायकों को रॉयल्टी मिले तो अच्छा होगा लता जी ,मुकेश जी ने और तलत महमूद ने एसोसिएशन बनाई और रिकॉर्डिंग कंपनी एचएमवी और फिल्म प्रोड्यूसर्स से मांग की , गायकों को गानों के लिए रॉयल्टी मिलनी चाहिए लेकिन लताजी की मांग पर कोई सुनवाई नहीं हुई तो सबने मिल कर एचएमवी के लिए रिकॉर्ड करना ही बंद कर दिया......तब कुछ निर्माताओं और रिकॉर्डिंग कंपनी ने मोहम्मद रफ़ी को समझाया कि ये गायक क्यों झगड़े पर उतारू हैं गाने के लिए जब पैसा मिलता है तो रॉयल्टी क्यों मांगी जा रही है ? .अब रफी भैया बड़े भोले थे.... उन्होंने कहा, " मुझे रॉयल्टी नहीं चाहिए ." उनके इस कदम से सभी गायकों की मुहिम को धक्का पहुंचा क्योंकि रफ़ी साहेब तो सब गायको के सिरमौर थे अगर वो पीछे हटते तो बाकि गायको की इस मुहिम का कोई औचित्य ही नहीं रह जाता , उन्हे कोई गंभीरता से भी नहीं लेता मुकेश जी ने लता मंगेशकर,जी से कहा, ..." लता दीदी रफ़ी साहब को बुलाकर आज ही सारा मामला सुलझा लिया जाए."... सबने रफी जी से मुलाक़ात की सबने रफ़ी साहब को समझाया तो वो गुस्से में आ गए और मुकेश की तरफ देखकर बोले, " मुझे क्या समझा रहे हो ये जो महारानी बैठी है इसी से बात करो." तो लता जी ने भी गुस्से में कह दिया, "आपने मुझे सही समझा. मैं महारानी ही हूं." रफ़ी साहब ने लता जी से कहा ...''मैं तुम्हारे साथ गाने ही नहीं गाऊंगा '' लता जी ने भी पलट कर कह दिया,....''आप ये तक़लीफ मत करिए मैं ही नहीं गाऊंगी आपके साथ.'' ......अब मामला संगीन हो गया ........लता जी कई संगीतकारों को फोन करके कह दिया कि मैं आइंदा रफ़ी साहब के साथ गाने नहीं गाऊंगी इस तरह से लता जी और रफ़ी साहिब का तीन साढ़े तीन साल तक झगड़ा चला और पूरी फिल्म इंडस्ट्री परेशान हो गई बाद में नौशाद और दलीप कुमार जी की पहल पर ये शीत युद्ध समाप्त हुआ था और दोनों ने साथ फिर से गाना शुरू किया
मोहम्मद रफ़ी , लता जी मुकेश के साथ |
सुलह हो जाने के बाद भी 1963 में आई व्ही शांता राम की 'सेहरा' फिल्म के एक गाने " सजना तुम तो प्यार हो " के दौरान दोनों महान कलाकारों में बीच फिर तल्खी देखने को मिली .....हुआ यूँ की गाने की रिहर्सल करने के बाद जब इस गाने की रिकार्डिंग हो रही थी तो एक जगह रफ़ी साहेब ने अचानक अपना सुर बदल लिया जबकि रिहर्सल में वो सुर नहीं था लता जी की माजरा समझ गई उन्होंने ने भी रफ़ी साहेब के उस सुर का जवाब अपना सुर बदल कर और आवाज़ को ऊँचा कर के दिया जो की रिहर्सल में नहीं था रफ़ी और लता जी का बदला रूप देखकर सेहरा के संगीतकार रामलाल भी अचंभित रह गए लता जी का बदला सुर सुनकर रफ़ी साहेब भी मुस्कुराये बिना नहीं रह सके.... इस प्रकार लता जी ने रफ़ी साहेब के नहले पर दहला मार दिया .....बावजूद इसके ये गाना हिट हुआ अगर आप ये गाना सुनेगे तो दोनों का बदला सुर बदला सुर महसूस करेगे जो की रिहर्सल में था ही नहीं
बहुत कम लोग ये जानते है की रफ़ी साहेब ने एक महान गायक को फ़िल्मी दुनिया छोड़कर जाने से रोका भी था ऐसा हुआ था की इन गायक महोदय की प्रतिभा देख कर उन्हें 'बड़े गुलाम अली साहेब ' ने उर्दू में एक खत लिखा की आप बहुत अच्छा गाते है आप की आवाज़ सबसे जुदा है आप फिल्मो में अपना समय ख़राब मत करो और कलकत्ता चले जाओ और वहां जा कर शास्त्रीय संगीत की तालीम मुक्कमल करो यहाँ बॉम्बे में फिल्मो में कुछ नहीं रखा अब उस गायक को उर्दू नहीं आती थी वो खत लेकर रफ़ी साहेब के पास पढ़वाने पुहंच गए रफ़ी साहेब के खत पढ़ कर उन्हें सुनाया और मायूस हो गए क्योकि रफ़ी साहेब जांनते थे की बड़े गुलाम अली साहेब फिल्मो में गाना पसंद नहीं करते थे और फ़िल्मी गायको के खिलाफ थे बावजूद इसके रफ़ी साहेब ने उस गायक को बॉम्बे छोड़ने से मना किया और फिल्मो में गाने के लिए मनाया ,रफ़ी साहेब के कहने पर उस गायक ने बम्बई नहीं छोड़ने का निर्णय कर किया , उस गायक ने भी रफ़ी साहेब का सम्मान करते हुए फिल्मो में गाना जारी रखा और आगे चल कर गायकी में एक ऊँचा मुकाम हासिल किया अगर उस दिन रफ़ी साहेब उस गायक को बॉम्बे छोड़ने से नहीं रोकते तो हिंदी सिनेमा को शायद ये महान गायक नहीं मिलता.... वो गायक थे ...जी हाँ ....मन्ना डे ....... जब तक मन्ना डे जीवित रहे उन्होंने इस बात के लिए रफ़ी साहेब का हमेशा आभार माना की वो आज जो भी है रफ़ी साहेब की ही बदौलत है
रफ़ी साहब अपनी आवाज़ में हीरो की अदा को उतार लेते थे लेकिन सत्तर के दशक के की शुरुआत में उनका व्यस्तता की वज़ह से फ़िल्में देखना कम हो गया था और इसलिए नए अभिनेताओं को नहीं पहचानते थे ऐसा ही एक क़िस्सा हैं, एक बार रफ़ी साहिब एयरपोर्ट पर इंतज़ार कर रहे थे तभी सामने से एक ख़ूबसूरत युवक को आते देख, रफ़ी ने कहा,..... '' वाह क्या पर्सनेल्टी है इसे तो फिल्मो में हीरो होना चाहिए." दरअसल वे जिस युवक की बात कर थे उस युवक का नाम था 'नवीन निश्चल.'....तो उनके सचिव ने उन्हें बताया कि साहब ये हीरो ही हैं, जिनके लिए आप गाना भी गा चुके हैं........रफ़ी साहेब नवीन निश्चल के लिए ' फिल्म 'सावन भादो (1970 )' में दो गानो के लिए प्ले बैक कर चुके थे जो नवीन निश्चल की डेब्यू फिल्म थी उन्होंने पहचान न पाने के लिए नवीन निश्छल को 'सॉरी 'भी कहा जबकि उस समय नवीन निश्छल एक नवोदित अभिनेता था फिर भी रफ़ी साहेब का उनसे माफ़ी मांगना रफ़ी साहेब के बड़प्पन को दर्शाता है .........रफ़ी बुलंद आवाज़ के मालिक थे,लेकिन बहुत आहिस्ता बोला करते थे.उनकी जैसी शख्सियत अब मिलना मुश्किल है रफ़ी के जाने के बाद भी कई लोगों का घर आज उनके नाम और उनकी आवाज़ की नकल से ही चलता है वो अपने संगीतकार से यह कभी नहीं पूछते थे कि इस गाने के लिए उन्हें कितने पैसे मिलेंगे? रफ़ी साहेब के सीने में एक बच्चे का दिल धड़कता था ,जो किसी के भी गम में ग़मजीदा और पराई ख़ुशी में भी झूम उठते थे रफ़ी साहेब एक बेहतरीन गायक तो थे इसमें किसी कोई शक नहीं लेकिन वो एक बेहद नरमदिल ,सवेंदनशील ,और भावुक इंसान भी थे जिसका फायदा कभी कभी दूसरे चालाक लोग भी उठा लेते हे और उन्हें इसका नुक्सान भी झेलना पड़ता था बावजूद इसके वो कभी भी अपना धीरज नहीं खोते थे ....कुछ ऐसे थे अपने 'रफ़ी साब '.......
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रफ़ी साहब अपनी आवाज़ में हीरो की अदा को उतार लेते थे लेकिन सत्तर के दशक के की शुरुआत में उनका व्यस्तता की वज़ह से फ़िल्में देखना कम हो गया था और इसलिए नए अभिनेताओं को नहीं पहचानते थे ऐसा ही एक क़िस्सा हैं, एक बार रफ़ी साहिब एयरपोर्ट पर इंतज़ार कर रहे थे तभी सामने से एक ख़ूबसूरत युवक को आते देख, रफ़ी ने कहा,..... '' वाह क्या पर्सनेल्टी है इसे तो फिल्मो में हीरो होना चाहिए." दरअसल वे जिस युवक की बात कर थे उस युवक का नाम था 'नवीन निश्चल.'....तो उनके सचिव ने उन्हें बताया कि साहब ये हीरो ही हैं, जिनके लिए आप गाना भी गा चुके हैं........रफ़ी साहेब नवीन निश्चल के लिए ' फिल्म 'सावन भादो (1970 )' में दो गानो के लिए प्ले बैक कर चुके थे जो नवीन निश्चल की डेब्यू फिल्म थी उन्होंने पहचान न पाने के लिए नवीन निश्छल को 'सॉरी 'भी कहा जबकि उस समय नवीन निश्छल एक नवोदित अभिनेता था फिर भी रफ़ी साहेब का उनसे माफ़ी मांगना रफ़ी साहेब के बड़प्पन को दर्शाता है .........रफ़ी बुलंद आवाज़ के मालिक थे,लेकिन बहुत आहिस्ता बोला करते थे.उनकी जैसी शख्सियत अब मिलना मुश्किल है रफ़ी के जाने के बाद भी कई लोगों का घर आज उनके नाम और उनकी आवाज़ की नकल से ही चलता है वो अपने संगीतकार से यह कभी नहीं पूछते थे कि इस गाने के लिए उन्हें कितने पैसे मिलेंगे? रफ़ी साहेब के सीने में एक बच्चे का दिल धड़कता था ,जो किसी के भी गम में ग़मजीदा और पराई ख़ुशी में भी झूम उठते थे रफ़ी साहेब एक बेहतरीन गायक तो थे इसमें किसी कोई शक नहीं लेकिन वो एक बेहद नरमदिल ,सवेंदनशील ,और भावुक इंसान भी थे जिसका फायदा कभी कभी दूसरे चालाक लोग भी उठा लेते हे और उन्हें इसका नुक्सान भी झेलना पड़ता था बावजूद इसके वो कभी भी अपना धीरज नहीं खोते थे ....कुछ ऐसे थे अपने 'रफ़ी साब '.......
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मन्ना डे रफ़ी साहेब के साथ |
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