अभिनेत्री गीता बाली की गिनती हिंदी फिल्मो की सबसे खूबसूरत अभिनेत्रियों से की जाती है उनका जन्म 1930 में एक पंजाबी सिख परिवार में सरगोधा (अब पाकिस्तान ) में हुआ था गीता बाली का वास्तविक नाम 'हरकीर्तन कौर' है उन्होंने हिंदी फ़िल्मी में बतौर बाल कलाकार अपने कॅरियर की शुरुआत की और शिखर पर जा पहुंची..... बावरे नैन ,(1950 ) , दुलारी (1949 ), अलबेला (1951), आनन्दमठ (1952 ), बाज (1953 ) वचन (1955 ) गीता बाली की प्रमुख फिल्मे है ......गीता बाली ने पृथ्वीराज कपूर ,राजकपूर , देवानंद ,गुरुदत्त ,राजेंदर कुमार जैसे शिखर के नायको के साथ काम किया है ....शम्मी कपूर से उनके प्यार की शुरुआत फिल्म 'रंगीन रातें' (1956 ) से हुई आउटडोर शूटिंग पर रानीखेत गयी "रंगीन रातें" की टीम और निर्देशक केदार शर्मा की तीखी नजरों के बीच शुरू हुआ मुलाकातों का सिलसिला टीम की वापसी तक पूरा परवान चढ़ चुका था उस वक्त गीता की दरियादिली, बड़ी-बड़ी आँखें और मोहक मुस्कान में खुद को भुला बैठेअभिनेता शम्मी कपूर कहते थे '' .......उन्होंने गीता बाली से खूबसूरत किसी और महिला को नहीं देखा था वो मेरे से सीनियर थी जब में सेट पर जाता तो शूटिंग भूल कर बस उन्हें ही एकटक देखता रहता था '' 23 अगस्त 1955 को अभिनेता शम्मी कपूर ने फिल्म 'कॉफी हाउस' (1957 ) बनने के दौरान बड़े नाटकीय ढंग से गीता बाली से शादी कर ली ,ये प्रेम विवाह था जिसमे कॉमेडियन जॉनी वॉकर ने एक बड़ी निर्णायक भूमिका अदा की थी इसके बाद शम्मी की किस्मत बदली और 1957 में आई फिल्म 'तुमसा नहीं देखा' काफी हिट रही शादी के बाद गीता ने न केवल शम्मी की अल्हड़पन पर लगाम कसी बल्कि उनके करियर की बागडोर भी अपने हाथों में ले ली ,गीता बाली के साथ ने न केवल शम्मी को अनुशासित किया बल्कि उनमे एक जिम्मेदारी भी पैदा की जिसकी वजह से वो अपने करियर को लेकर काफी गंभीर हो गए। और बॉलीवुड पर छा गए ........लेकिन दुर्भाग्य से शादी के 10 साल बाद गीता बाली की असमय मृत्यु हो गई। और इस खूबसूरत प्रेम कथा का दर्दनाक अंत हो गया .......लेकिन आज हम गीता बाली की ऐसी फिल्म की बात कर रहे है जो उनकी असमय मौत के वक्त बन रही और अधूरी रह गई और साथ ही गीता बाली का अपनी मातृभाषा पंजाबी में फिल्म करने का सपना भी अधूरा रह गया ...
उपन्यास 'एक चादर मैली सी ' के किरदार राणो के गेटअप में गीता बाली |
राजिंदर सिंह बेदी ने अपने उपन्यास' एक चादर मैली सी, लिखते हुए इसे एक फिल्म में रूप में बनाने का फैसला कर लिया था चूंकि कहानी पंजाब में आधारित थी, इसलिए वह इसे पंजाबी में बनाना चाहते थे। मुख्य पात्र ' राणो 'की केंद्रीय भूमिका के लिए, उनके जेहन में सिर्फ एक ही नाम था और वह थी गीता बाली जो सिख होने के कारण पंजाबी भाषा में पारंगत थी उन्होंने गीता बाली से संपर्क किया वह राजी हो गई मातृत्व सुःख के बाद यह उनके लिए रुपहले परदे पर एक आदर्श वापसी थी। राजिंदर सिंह बेदी के मशहूर उपन्यास 'इक चादर मैली सी पर' आधारित एक पंजाबी फिल्म 'राणो ' में उन्हें लीड रोल मिला जिसमे अभिनेता धर्मेंदर उनके देवर की भूमिका निभा रहे थे राजिंदर सिंह बेदी की श्रेष्ट कृति 'इक चादर मैली सी 'की कहानी पंजाब की सामाजिक कुरीति पर आधारित थी जिसे पंजाबी में 'चादर पाना 'कहते है... कहानी में बड़े भाई की मौत के बाद छोटे भाई को विधवा भाभी से शादी करने का दबाव बनाया जाता है जबकि वो किसी और लड़की से प्यार करता है पंजाबी सिख परिवार से होने के कारण गीता बाली की दिली इच्छा थी की वो इस पंजाबी फिल्म में काम करे उनकी ये इच्छा पूरी हुई गीताबाली फिल्म की सह-निर्माता भी थीं। फिल्म की कहानी से प्रभावित होकर उन्होंने फिल्म में पैसा लगाया था
'राणो' को पंजाबी और हिंदी दोनों भाषाओं में रिलीज करने का फैसला भी किया गया तब एक नवागंतुक अभिनेता राजेश खन्ना को नायक की भूमिका में लेने पर विचार कर रहे थे, हालाँकि लेकिन राजेश खन्ना भी पंजाबी परिवार से आते थे लेकिन का पंजाबी भाषा बोलने का उनका पुट खालिस नहीं था आखिरकार,धर्मेंद्र को उनकी मातृभाषा पंजाबी होने के फिल्म ' राणो में रोल मिल गया उन्हें गीता बाली के देवर मंगल की भूमिका निभानी थी। मीना राय को धर्मेंद्र के साथ मुख्य भूमिका में साइन किया गया। जो बाद में 70 के दशक के पंजाबी सिनेमा का प्रमुख चेहरा बनी पंजाबी फिल्म 'राणो 'की शूटिंग पंजाब में शुरू हुई ....कुछ रीले फिल्माई भी गई पत्र पत्रिकाओं में तस्वीरें भी छपी ...गीता बाली भी खुश थी ......लेकिन ईश्वर को शायद ये मंजूर न था .....होनी कुछ और ही खेल खेलना चाहती थी.... पंजाबी फिल्म' राणो कभी नहीं बन पाई
'राणो की शूटिंग के दौरान ही गीता बाली को चेचक ( चिकन पॉक्स ) हो गया और वो गंभीर रूप से बीमार हो गई ....शूटिंग रुक गई.... राजिंदर सिंह बेदी गीता बाली को लाचार और बेबस देखकर बड़े दुखी थे गीता बाली का शरीर बुखार से तप रहा था ,शरीर पर उभर आये दानो के कारण शरीर में सूजन थी और वो आँखे भी नहीं खोल पर रही थी उन्हें पंजाब से बम्बई वापिस लाया गया शम्मी कपूर विदेश में थे शम्मी फिल्म "तीसरी मंजिल" की आउटडोर शूटिंग पर थे वो भी बम्बई आ गए गीता की बीमारी की खबर सुनकर बदहवासी में अस्पताल पहुंचे शम्मी जब गीता के सामने पहुंचे तो 107 डिग्री फॉरेनहाईट बुखार में तपती गीता उन्हें पहचानने में भी असमर्थ थी। हर बेहतर उपचार कोई काम नहीं कर रहा था ,बड़े बड़े डॉक्टरों ने हर संभव प्रयास किये ,बिमारी मामूली थी लेकिन लाख कोशिशों के बावजूद उन्हें नहीं बचाया जा सका। ..... 21 जनवरी 1965 उनकी मृत्यु हो गई
'राणो की शूटिंग के दौरान ही गीता बाली को चेचक ( चिकन पॉक्स ) हो गया और वो गंभीर रूप से बीमार हो गई ....शूटिंग रुक गई.... राजिंदर सिंह बेदी गीता बाली को लाचार और बेबस देखकर बड़े दुखी थे गीता बाली का शरीर बुखार से तप रहा था ,शरीर पर उभर आये दानो के कारण शरीर में सूजन थी और वो आँखे भी नहीं खोल पर रही थी उन्हें पंजाब से बम्बई वापिस लाया गया शम्मी कपूर विदेश में थे शम्मी फिल्म "तीसरी मंजिल" की आउटडोर शूटिंग पर थे वो भी बम्बई आ गए गीता की बीमारी की खबर सुनकर बदहवासी में अस्पताल पहुंचे शम्मी जब गीता के सामने पहुंचे तो 107 डिग्री फॉरेनहाईट बुखार में तपती गीता उन्हें पहचानने में भी असमर्थ थी। हर बेहतर उपचार कोई काम नहीं कर रहा था ,बड़े बड़े डॉक्टरों ने हर संभव प्रयास किये ,बिमारी मामूली थी लेकिन लाख कोशिशों के बावजूद उन्हें नहीं बचाया जा सका। ..... 21 जनवरी 1965 उनकी मृत्यु हो गई
पंजाबी फिल्म राणो ' का एक दृश्य - मीना रॉय ,और धर्मेंदर |
राजिंदर सिंह बेदी |
राजिंदर सिंह बेदी जिनके उपन्यास पर फिल्म बन रही थी वह फिल्म ' राणो का निर्देशन भी कर रहे थे और निर्माता भी थे खुद गीता बाली का पैसा भी फिल्म में लगा था ,गीता बाली की असामयिक मौत से आहत बेदी ने इस परियोजना को हमेशा के लिए छोड़ दिया..... कई लोगो ने उन्हें कहा की ...''वो किसी अन्य हीरोइन को लेकर फिल्म कम्पीट कर ले ऐसा कर वो आर्थिक नुकसान से भी बच जायेगे '' लेकिन राजिंदर सिंह बेदी ने भी पंजाबी फिल्म 'राणो को गीता बाली के बिना बनाने से मना कर उन्होंने उन्होंने अपने उपन्यास, 'इक चादर मैली सी ' को गीता बाली के अंतिम संस्कार के वक्त चिता पर रख कर सबकी ये बता भी दिया की गीता बाली के चले जाने के बाद अब उनकी फिल्म ' राणो कभी नहीं बनेगी और ऐसा हुआ भी .......मुंबई के जिस बाण गंगा शमशान घाट पर गीता बाली की चिता जल रही थी ये ठीक उस मंदिर की सामने ही था जहाँ 10 वर्ष पहले 23 अगस्त 1955 को शम्मी कपूर ने सुबह के साढ़े चार बजे पंडित और कुछ मित्रो की मौजूदगी में लिपस्टिक से गीता बाली की मांग भरी थी आज यहाँ जो चिताये एक साथ जल रही एक गीता बाली की और एक राजेंदर सिंह बेदी की 'रानो' की ....पंजाबी फिल्म 'राणो ' के बंद होने के साथ साथ गीता और शम्मी की प्रेम कहानी का अंत उसी मंदिर के पास हुआ जहाँ सात फेरे लेकर दोनों ने साथ जीने-मरने की कसम खायी थी।
गीता बाली ,मीना रॉय ,और धर्मेंदर फिल्म 'राणो ' के सेट पर |
अब इसे संजोग ही कहा जायेगा की राजिंदर सिंह बेदी अपने जिस उपन्यास पर गीता बाली के साथ फिल्म 'राणो 'नहीं बना पाए उसी उपन्यास 'इक चादर मैली सी पर' को उसी वर्ष ही साहित्य अकादमी अवार्ड (1965 ) से नवाज़ा गया लेकिन कहते है कहानियाँ कभी नहीं मरती .....गीता बाली की मौत के बाद बाद उसी परियोजना को 70 के दशक के अंत में किरण ठक्कर सिंह (आज जिन्हे हम किरण खेर के नाम से जानते हैं ) के साथ शुरू किया गया था लेकिन यह घोषणा के चरण से आगे नहीं बढ़ सकी। राजेंदर सिंह बेदी की कहानी 'एक चादर मैली सी 'भी अपना भाग्य लेकर कागज़ पर पैदा हुई और सिनेमा के सुनहरे परदे पर पहुंच ही गई 'इक चादर मैली सी ' 1978 में ' मुट्ठी भर चावल ' के नाम से पाकिस्तान में बनी .......और इस पंजाबी '' राणो के बंद होने के ठीक 21 वर्ष बाद निर्माता सुखवंत डांढ़ा की फिल्म 'इक चादर मैली सी (1986 ) में परदे पर आई जिसमे गीता बाली के ही भतीजे ऋषि कपूर और पूनम ढिल्लो मुख्य भूमिका में थे और गीता बाली की ' राणो वाली भूमिका हेमा मालिनी को मिली ये फिल्म सफल रही लेकिन अब राजिंदर सिंह बेदी इस दुनिया में नहीं थे 11 नवम्बर 1984 को उनका भी देहांत हो चुका था
राजिंदर सिंह बेदी ने अपने करियर की शुरुआत एक लघु कथाकार के रूप में की थी और बाद में वे लाहौर की एक फिल्म कंपनी से जुड़ गए। उन्होंने ऑल इंडिया रेडियो के लिए भी काम किया। 1947 के बाद, वह बॉम्बे चले गए बाद में हिन्दी फ़िल्म निर्देशक, पटकथा लेखक, संवाद लेखक बन गए। उन्होंने उस समय कई अन्य प्रमुख पटकथा लेखकों की तरह उर्दू में अपनी पटकथाएँ लिखीं राजेंदर सिंह गर्म कोट (1955) ,दाग (1952) ,देवदास, (1955), मुसाफिर (1957),अनुराधा, (1960) ,सत्यकाम( 1969 ),अभिमान (1973) आदि फिल्मों में पटकथा और संवाद लिखने के कारण जाने जाते है उन्होंने दस्तक (1970) ,फागुन (1973) ,नवाब साहिब और आँखिन देखी (1978) फिल्मो का निर्देशन भी किया उनके बेटे नरेंदर बेदी भी मशहूर फिल्म निर्माता और निर्देशक रहे है राजिंदर सिंह बेदी ने जवानी-दीवानी (1972 ), बेनाम (1974 ) और अदालत (1977) जैसी हिट फिल्मो का निर्देशन किया है महानायक अमिताभ बच्चन ने भी उनके निर्देशन में काम किया है
वो कहते है ना की इस दुनिया में किसी को भी मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता शायद गीता बाली ,राजेंदर सिंह बेदी , शम्मी कपूर के साथ - साथ फिल्म 'राणो ' के साथ भी यही हुआ अगर फिल्म ' राणो ' बन जाती तो यह पंजाबी सिनेमा के लिए एक मील का पत्थर साबित होती
राजिंदर सिंह बेदी ने अपने करियर की शुरुआत एक लघु कथाकार के रूप में की थी और बाद में वे लाहौर की एक फिल्म कंपनी से जुड़ गए। उन्होंने ऑल इंडिया रेडियो के लिए भी काम किया। 1947 के बाद, वह बॉम्बे चले गए बाद में हिन्दी फ़िल्म निर्देशक, पटकथा लेखक, संवाद लेखक बन गए। उन्होंने उस समय कई अन्य प्रमुख पटकथा लेखकों की तरह उर्दू में अपनी पटकथाएँ लिखीं राजेंदर सिंह गर्म कोट (1955) ,दाग (1952) ,देवदास, (1955), मुसाफिर (1957),अनुराधा, (1960) ,सत्यकाम( 1969 ),अभिमान (1973) आदि फिल्मों में पटकथा और संवाद लिखने के कारण जाने जाते है उन्होंने दस्तक (1970) ,फागुन (1973) ,नवाब साहिब और आँखिन देखी (1978) फिल्मो का निर्देशन भी किया उनके बेटे नरेंदर बेदी भी मशहूर फिल्म निर्माता और निर्देशक रहे है राजिंदर सिंह बेदी ने जवानी-दीवानी (1972 ), बेनाम (1974 ) और अदालत (1977) जैसी हिट फिल्मो का निर्देशन किया है महानायक अमिताभ बच्चन ने भी उनके निर्देशन में काम किया है
अधूरी फिल्म फिल्म' राणो 'के अधूरे पोस्टर में अभिनेता धर्मेंदर |
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