Saturday, December 30, 2017

जनम जनम के फेरे (1957 ) ..........एक असफल फिल्म के सफल गीत बनने की कहानी जिसमे संगीतकार 'भरत व्यास ' का दर्द छिपा है

जनम जनम के फेरे (1957 )
मुझे कभी किसी ने कहा था की हिंदी सिनेमा की धार्मिक और पौराणिक फिल्मे भी स्टंट और फैंटसी फिल्मो की तरह ही सी ग्रेड फिल्मो की श्रेणी में आती है बात भी सही रही है क्योंकि हमारे देश के नामचीन और बड़े फिल्म निर्माताओं ने कभी भी धार्मिक और इतिहासिक बनाने का रिस्क नहीं लिया लेकिन निर्माता विजय भट्ट का नाम इस का अपवाद है उन्होंने जहा गूँज उठी शेहनाई (1959) हरियाली और रास्ता बनफूल (1962 ) बैजूबावरा (1952 ) जैसी प्रेम कहानियो पर फिल्म बनाई वही भरत मिलाप (1942 ) रामायण (1954 ) रामराज्य (1943 ) विक्रमादित्य  ,नरसी भगत (1940 ) जैसी धार्मिक और ऐतिहासिक फिल्मो का निर्माण भी किया उनका ये प्रयास काबिले तारीफ है .......ठीक उसी प्रकार मनमोहन देसाई ने भी जनम जनम के फेरे (1957 ) जैसी एक फिल्म निर्देशित की और उसी मनमोहन देसाई ने आगे जा कर अमिताभ बच्चन को लेकर तमाम मार धाड़ वाली फिल्मे भी बनाई कई बार ऐसा होता है की फिल्म भले ही बॉक्स ऑफिस पर न चले पर उसके गीत गहरी छाप छोड़ जाते है जनम जनम के फेरे निर्माता सुभाष देसाई की एक म्यूज़िकल हिट धार्मिक फ़िल्म थी लेकिन व्यवासिक सफलता इसे नहीं मिल पाई सुभाष देसाई मशहूर फिल्म निर्माता मनमोहन देसाई के बड़े भाई थे 



जनम जनम के फेरे’ फ़िल्म में निरूपाराय, मनहर देसाई, महिपाल के साथ बी एम व्यास ने अभिनय किया था फ़िल्म का पूरा नाम ‘जनम जनम के फेरे सती अन्नपूर्णा‘ था इस फिल्म के संगीतकार एस.एन त्रिपाठी ( श्रीनाथ त्रिपाठी ) थे अब इसे भाग्य की विडंबना कहिये की इस बेहतरीन संगीतकार के हिस्से में अधिकांशत: धार्मिक, पौराणिक और ऐतिहासिक फ़िल्में ही आई उसमे से भी कई फिल्मे B या C ग्रेड की थी लेकिन यहाँ दाद देनी पड़ेगी एस.एन त्रिपाठी साहेब की उन्होंने कभी भी संगीत की गुणवत्ता से समझौता नहीं किया फिल्म भले ही सी ग्रेड की हो पर उसका संगीत हमेशा A ग्रेड का ही होता था अब धार्मिक फ़िल्मों में हमेशा से शुद्ध हिन्दी के गीतों की माँग रही है ऐसे गीतों को लिखने के लिए धर्म के ज्ञान के साथ साथ भाषा का भी अच्छा ज्ञान होना अनिवार्य है अत: एस एन त्रिपाठी के साथ अधिकांश फ़िल्मों में गीतकार भरत व्यास रहा करते थे, जो हिन्दी में अत्यन्त सुन्दर गीतों की रचना करने में माहिर थे

 महापात्रा ( एस. एन त्रिपाठी  ) और उनकी पत्नी एक छोटे से गांव में प्रभु भजन करते हुए अपना जीवन यापन कर रहे उनके पास किसी भी भौतिक वस्तु की कमी नहीं लेकिन वो संतान सुख से वंचित है भगवान की कृपा से   उन्हें संतान सुख भी प्राप्त होता है उनके यहाँ एक पुत्र रघु (मनहर देसाई ) का जन्म होता है लेकिन ज्योतिषीय गणना के अनुसार ज्योतिष उन्हें कहते है वो बड़ा होकर एक बहुत बड़ा नास्तिक बनेगा लेकिन महापात्रा ये निश्चय करते है की वो अपने बेटे को धार्मिक बना कर रहेगा लेकिन होता वही है जो नियति लिखती है रघु बड़ा हो कर एक नास्तिक बनता है उसे भगवान या उसकी बनाई किसी चीज़ में विश्वास नहीं है महापात्रा अपने बेटे को सुधारता हुआ इस दुनिया से चला जाता है लेकिन रघु नास्तिक ही रहता है रघु की आस्तिक पत्नी अन्नपूर्णा ( निरुपा राय ) भी भरसक प्रयास करती है की वो भगवान में विश्वास करे ..........अनेक चमत्कारिक घटनाओं के साथ फिल्म के कहानी आगे बढ़ती है लेकिन रघु,और अन्नपूर्णा की शादी होने से खिन्न कृष्ण (बी.एम् व्यास )  उनकी राह में कदम कदम पर रोड़े अटकता है क्योंकि कृष्ण भी अन्नपूर्णा से शादी करना चाहता था एक समय ऐसा आता है रघु को विश्वास हो जाता है की भगवान का आस्तित्व है फिल्म के अंत में भगवान विष्णु (महिपाल ) प्रकट हो कर अन्नपूर्णा और रघु को दर्शन देते है और कहते है ये संसार मैंने बनाया है जो मुझे उन्हें काम ,क्रोध ,मोह माया  के बंधन में बंध कर ढूंढता है उसे मैं जन्म जन्म के फेरे में डाल देता हूँ और जो इस सांसारिक बंधनो का त्याग कर मेरी भक्ति करता है उसे मैं स्वंय दर्शन देकर इस जन्म जनम के फेरो से मुक्त कर देता हूँ


जनम जनम के फेरे’ के गीतों ने लोकप्रियता की नई ऊँचाइयों को छुआ और हिट हुए ‘जनम जनम के फेरे, इनसे ना कोई बचे रे’, ‘तू है या नहीं भगवान’, ‘तन के तम्बूरे में दो साँसों के तार बोले’, ‘रंगबिरंगे फूलों की झूमे रे डालियाँ’ आदि फ़िल्म के सर्वाधिक हिट गीत था इन सुन्दर गानों को लता मंगेशकर ,रफ़ी साहेब ,गीता दत्त ,मन्ना डे ,शमशाद बेगम , ने अपनी आवाज़ देकर सुरीला बनाया है ‘ज़रा सामने तो आओ छलिये।’ इस गीत ने उसी साल ‘बिनाका गीतमाला’ के वार्षिक कार्यक्रम में प्रथम स्थान भी प्राप्त किया था शायद आपको पता न हो इस संगीतमय फिल्म 'जनम जनम के फेरे 'के गीतकार भरत व्यास के जीवन से एक दर्दनाक वाकया भी जुड़ा है जिसे उन्होंने अपने गीत में व्यक्त भी किया......

' हम तुम्हें चाहें तुम नहीं चाहो
ऐसा कभी ना हो सकता
पिता अपने बालक से बिछड़ के
सुख से कभी ना सो सकता 


हुआ कुछ यूँ था की भरत व्यास के एक पुत्र थे और वो उनसे बेहद स्नेह रखते थे लेकिन जताते नहीं थे इस का कारण शायद ये रहा होगा की अत्यधिक लाड प्यार से उनका पुत्र कही बिगड़ न जाये भरत व्यास साहब के पुत्र का हायर सेकंडरी का परीक्षा परिणाम संतोषजनक नहीं आया था और वो ये परीक्षा पास नहीं कर पाए इस कारण वे अपने पुत्र पर क्रोधित हो गए और उसे काफी डांटा फटकारा अब ये सब इन्होने अपने पुत्र के सुखद भविष्य के लिए किया था पर इसका उल्टा हो गया अपने पिता के क्रोध से बचने के लिये उनका पुत्र घर छोड़ कर भाग गया उन्होंने काफी तलाश की पर पुत्र का पता नहीं चला पुत्र वियोग में वे व्याकुल थे उन्हीं दिनों उन्हें इसी फिल्म का ‘ज़रा सामने तो आओ छलिये’ गीत लिख कर देना पड़ा अंत उनके हृदय की व्यथा छलक कर गीत में भी सामने आ गयी और उन्होंने इसे अपने गीत में जोड़ दिया अगर आप ये गाना सुनेगे तो उनका दर्द महसूस भी करेंगे मोहम्मद रफ़ी और लता जी की आवाज़ में ये गाना अमर हो गया भरत व्यास जी ने पीड़ा से भरे ये शब्द इस गाने में लिखे जिसे संगीतकार एस.एन त्रिपाठी ने गाने में शामिल करके उनके दर्द का भी सम्मान किया .....                                              
                                                       

भरत व्यास गीतकार होने के साथ साथ एक कुशल नाटककार और रंगमंच के मंझे हुए अभिनेता भी थे उनके भाई बी.एम व्यास एक जानेमाने अभिनेता थे जिन्हे आपने धार्मिक फिल्मो में देखा होगा भरत व्यास निर्माता, निर्देशक व्ही शांताराम के भी मनपसंद गीतकार थे उनकी अनेक फ़िल्मों के गीत भरत व्यास ने लिखे थे, जिसमे तूफ़ान और दिया,(1956) दो आँखें बारह हाथ,(1957) स्त्री, (1961) नवरंग,(1959) बूँद जो बन गयी मोती (1967) इत्यादि है व्ही शांता राम भी मानते है की उनकी फिल्मो की सफलता में संगीतकार रामलाल हीरा पन्ना और गीतकार भरत व्यास जी का बड़ा योगदान है  लेकिन जनम जनम के फेरे’के 'ज़रा सामने तो आओ छलिये 'ने उन्हें गीतकारो में अमर बनाया था

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