Tuesday, November 28, 2017

"अशोका दी ग्रेट " सोहराब मोदी का आखरी सपना जो पूरा न हो सका .....

 
सोहराब मोदी
अगर कभी ईमानदारी से भारतीय सिनेमा का इतिहास लिखा जायेगा तो उसमे एक पूरा अध्याय सोहराब मोदी जी का होगा अपनी बुलंद आवाज ही नहीं अपने बुलंद इरादो के लिए भी सोहराब मोदी जी जाने जाते है पारसी होने के बावजूद भी वो जिस अंदाज़ में हिंदी और उर्दू बोलते थे दर्शक हैरान रह जाते थे सोहराब मोदी जी का बचपन रामपुर में बीता,जहां उनके पिता नवाब के यहां अधीक्षक थे नवाब रामपुर का पुस्तकालय बहुत समृद्ध था रामपुर में ही सोहराब मोदी जी ने फर्राटेदार उर्दू सीखी वहीं उन्होंने संवाद को गंभीर और सधी आवाज में बोलने का लहज़ा भी सीखा जो बाद में उनकी विशेषता बन गयी नवाब साहेब का महल बहुत ही भव्य और आलीशान था इस महल की भव्यता को देख कर ही सोहराब मोदी जी को भव्य इतिहासिक फिल्मो को बनाने की प्रेरणा मिली मानो इस महल की स्मृतिया सोहराब मोदी को कटोच कटोच कर ये कहती हो की भारत की भव्यता और समृद्ध इतिहास को करोडो देशवासियों तक पहुंचने का जिम्मा अब तुम्हारा है

सोहराब मोदी जी ने सन 1935 में स्टेज फ़िल्म कंपनी की स्थापना की थी 1936 में स्टेज फ़िल्म कंपनी मिनर्वा मूवीटोन हो गयी और इसका प्रतीक चिह्न शेर हो गया प्राचीन रोम के ग्रंथो में कला और व्यवसाय की देवी को "मिनर्वा "के नाम से जाना जाता है जेलर (1938) डाइवोर्स (1938) पुकार (1939) भरोसा (1940) सिकंदर (1941) शीशमहल (1950) कुंदन (1955) राजहठ (1956) नौशेरवा-ए-आदिल (1957) जैसी फिल्मो का निर्माण उन्होंने मिनर्वा मूवीटोन के अंतर्गत किया  उर्दू और पारसी जुबान के ज्ञाता होने की वजह से मोदी का उच्चारण कमाल का था जो कुर्सी पर बैठे आखिरी दर्शक तक आसानी से पहुंच जाता था उस दौर का हर निर्देशक अभिनेता को मोदी की आवाज का हवाला दिया करता था, सोहराब मोदी को आगे की कई फिल्मों में किरदार भी इसी तरह के मिलते रहे, जहां उन्हें लाउड संवाद बोलने को कहा जाता था। 

एक साक्षात्कार में जब एक पत्रकार ने उनसे पूछा की आप अपने संवाद इतने लाउड क्यों बोलते है ? तो उन्होंने  मुस्कुराकर कहा  ....'' उस समय अभिनेता की इमेज से दर्शक सिनेमाघर में आता था अगर मैं धीमे बोलने लगता, तो शायद ही कोई सिनेमाघर में आता....''

ऐतिहासिक फ़िल्में बनाने में वे सबसे आगे थे लेकिन इस का उन्हें खामियाज़ा भी भुगतना पड़ा भारत की पहली टेकनीकलर फ़िल्म ‘झांसी की रानी’ (1953) उन्होंने बनायी थी इसके लिए वे हालीवुड से तकनीशियन और साज-सामान लाये थे इसमें 'झांसी की रानी' बनी थीं उनकी पत्नी ....'महताब '......सोहराब मोदी जी राजगुरु बने थे इस फ़िल्म को उन्होंने बड़ी लगन से बनाया था सोहराब मोदी जी ने अपनी सबसे महत्वकांक्षी फिल्म रानी लक्ष्मी बाई बनाने से पूर्व एक विशाल रिसर्च टीम बनाई जिसने सोहराब मोदी के निर्देश पर ग्वालियर चंदेरी ,मेरठ ,दिल्ली ,लखनऊ ,कोलकाता का दौरा किया और लगभग 70 इतिहासकारो से मिलकर 3500 पन्नो की रिपोर्ट सोहराब मोदी को सौंपी फिल्म के 32 मुख्य कलाकारों के लिए 1400 साक्षात्कार लिए गए रानी लक्ष्मी बाई फिल्म को भव्य बनाने के लिए 2100 पुरुष सैनिको ,4200 महिलाओं ,200 बच्चो, 5007 घोड़ो ,300 ऊँटो ,200 हाथियों, 50 बैलगाड़ियों, 3600 तलवारो , 600 बंदूकों, 1000 ढालो ,1100 भालो और लगभग 11500 किलो बारूद का इस्तेमाल किया लेकिन देश को आधी सदी तक परदे पर रोमांचित करने वाली आवाज़ सोहराब मोदी को असफलता का सामना करना पड़ा  'झांसी की रानी' फ्लॉप हो गई  64 साल पहले बनी इस फिल्म में लगभग 75 लाख रुपये खर्चा आया था
लेकिन वो मर्द ही क्या जो विफलता के आगे घुटने टेक दे सोहराम मोदी जी ने एक बार फिर हिम्मत दिखाई उन्होंने भारत के महानतम सम्राट अशोक से प्रभावित हो कर एक बार फिर भव्य स्तर पर फिल्म "अशोका दी ग्रेट "बनाने की ठान ली उन्होंने अपने भरोसे मंद ड्रिस्टीब्यूटरो को बुलावा भेजा ताकि हमेशा की तरह कहानी पर चर्चा की जाये और फिल्म बनाने की दिशा में आगे बढ़ा जाये लेकिन अफ़सोस सोहराब मोदी तो वही खड़े थे पर अब ज़माना आगे निकल गया था ........सोहराब मोदी के बुलावे पर उनके सारे पुराने वितरक उनके बम्बई में उनके घर पर इकठ्ठा हुए सोहराब मोदी जी ने उनको विस्तार से अशोका दी ग्रेट की कहानी समझाई और कहा की....." मैं अशोक महान पर ये फिल्म बनाना चाहता हूँ "...

उनमे से एक ड्रिस्टीब्यूटर अचानक बोल पड़ा ...."कहानी तो ठीक है मोदी साहेब... लेकिन इसमें अशोका के रोल के लिए आप किस अभिनेता को ले रहे है ? ...सोहराब मोदी भौचक्के रह गए क्योंकि उनसे उनके ड्रिस्टीब्यूटरो ने इससे पहले ऐसा कभी नहीं पूछा था उनकी फिल्मो से ड्रिस्टीब्यूटरो ने कभी भी नुकसान नहीं उठाया था और लाखो कमाए थे आज तक कभी भी ड्रिस्टीब्यूटरो ने उनसे ये नहीं पूछा था की फिल्म के अभिनेता और अभिनेत्री कौन है ? ड्रिस्टीब्यूटर सिर्फ सोहराब मोदी और मिनर्वा मूवीटोन ने नाम से पैसा लगा देते थे सोहराब मोदी साहेब ने सब ड्रिस्टीब्यूटरो को आने के लिए धन्यवाद कहा और साथ ही उनको कहाँ ........." मैं अब ये फिल्म कभी नहीं बनाऊगा क्योंकि आपने मेरे से ये सवाल किया है इस फिल्म में अशोका कौन होगा ? तो मुझे महसूस हो रहा है की आप सब का भरोसा अब मेरे ऊपर नहीं रहा अब आप का भरोसा अशोका का रोल करने वाले अभिनेता पर ज्यादा है ....ऐसा कह उन्होंने अशोका दी ग्रेट की स्क्रिप्ट अपनी दराज़ वापिस में रख दी

उनकी पत्नी मेहताब ने एक इंटरव्यू में बताया था, ...“उन्हें अशोक द ग्रेट फिल्म न बना पाने का हमेशा मलाल रहा सोहराब मोदी जी की ये ख्वाइश थी की कभी न कभी ये फिल्म बना कर मैं हिंदुस्तान की जनता को तोहफा दूंगा  " उन्होंने वितरकों के पीछे हटने के बाद भी फिल्म बनाने की पूरी योजना विस्तार से बना ली थी लेकिन उनके करीबियों ने उनकी पॉवर ऑफ एटॉर्नी का दुरुपयोग करके जो दुःख दिया वो उससे उबर नहीं सके और फिर कैंसर ने भी उनकी हिम्मत तोड़ दी वो अपना सपना पूरा कर सके ये फिल्म कभी भी नहीं बन पाई "अशोका दी ग्रेट " बनाने की ख्वाईश लिए सोहराब मोदी 28 जनवरी 1984 को इस दुनिया से रुखसत हो गए 

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