राजकपूर साहेब हमारे हिंदी सिनेमा के सबसे बड़े ' शोमेन ' कहलाते है जितने बड़े वो कलाकार थे उतना ही बड़ा उनका दिल भी था कई बार उन्होंने
अपने से छोटे और कमजोर दोस्तों की मदद की ..गीतकार शैलेन्द्र को
उन्होंने "तीसरी कसम "(1966) बनाने से मना किया था वो जानते थे की ये फिल्म
नहीं चलेगी इसके बावजूद उन्होंने ना केवल फिल्म में अभिनय किया
बल्कि शैलेन्द्र की आर्थिक मदद भी की .......आज जिस बात का जिक्र हो रहा है ये बात सन 1954 के दिनों की है जब राज कपूर जी फ़िल्म श्री 420 - (1955) के
एक गाने " मुड़-2 के ना देख " की शूटिंग कर रहे थे एक दिन सुबह
राजकपूर शूटिंग के लिए स्टूडियो पहुँचे और गाने की रिकार्डिंग करवा रहे थे
उन्होने देखा की सेट के बाहर एक अधेड़ उम्र का आदमी खड़ा है ओर बार बार
गार्ड से पूछ रहा है .....राजकपूर साहेब आ गए क्या ? ...मुझे उनसे मिलवा दो..... लेकिन गार्ड उन्हें अंदर घुसने नही दे रहे हैं ऐसा कई बार हुआ वो आदमी अंदर आने की मिन्नत कर रहा था लेकिन गेट पर खड़ा गार्ड उन्हें अंदर आने से रोक रहा था
राजकपूर साहेब
खिड़की से ये सारा नजारा देख रहे थे अधेड़ उम्र के उस आदमी को देख कर
वो तुरंत पहचान गए उन्होंने अपने सहायक प्रकाश अरोड़ा से गार्ड को सन्देशा भिजवाया
की उस आदमी को तुरंत इज़्ज़त के साथ मेरे पास ले कर आये उस अधेड़ उम्र
के आदमी को गार्ड अंदर ले आया और राजकपूर से मिलवा दिया राज कपूर
जी ने उस अधेड़ उम्र आदमी का बेहद गर्मजोशी से स्वागत किया और माफ़ी मंगाते
हुए पहले उन्हें बेहतरीन खाना खिलाया और उनके साथ मिल कर खाना खाया
भी.... खाना खाने के बाद राजकपूर में उस आदमी से पूछा कहिये
......."मैं आप की क्या मदद कर सकता हूँ ? " उस आदमी की आँखों में आंसू
आ गए और उसने झेंपते हुए कहा ....." मेरी आर्थिक स्थिति इस समय ठीक नही है अगर हो सके तो आप अपनी किसी फिल्म में मुझे जूनियर आर्टिस्ट का रोल दे
दे" ...... अब ये राजकपूर के लिये शोकिन्ग बात थी !
दलीप कुमार के साथ मास्टर निसार |
उन्होंने उस आदमी के कंधे पर हाथ रख कर कहा ....."आप जैसे स्टार लेजंड को
मैं एक्स्ट्रा के रूप मे काम नही दे सकता ये आप की तौहीन होगी पर वादा करता
हूँ की जल्दी ही आपको याद करूँगा" राज कपूर उस अधेड़ उम्र आदमी के
लिये चिंतित हो गये ओर घर जाकर सो नही पाये अगले दिन उन्होने अपने
मैनेजर को बुलाया ओर कहा ....."इस आदमी के घर ओर घर के आस पास के लोगों से
मिलो ओर पता करो की इन्होंने किसी से उन्होने उधार तो नही लिया है ?"... अगले दिन जब "मुड़-2के ना देख " गाने की शूटिंग होने वाली थी तो अचानक
राज ने गाने की शूटिंग को रोक कर अपनी फिल्म "बूट पोलिश" (1954) के गाने
की एक सिचुएशन क्रीएट की जबकि उनकी फिल्म 'बूट पोलिश' की ज्यादातर शूटिंग पूरी
हो चुकी थी ओर वायदे के मुताबिक राजकपूर ने उस अधेड़ उम्र को बुलाया ......अब आप को बता दे की वो आदमी ओर कोई नही बल्कि
साइलेंट फ़िल्मों के ग्रेट एक्टर ओर हिंदी सिनेमा के सिंगिंग स्टार ''
मास्टर निसार" थे उन्होंने मास्टर निसार से कहा ......"मेरी फिल्म
'बूट पोलिश ' में एक पूरा गाना आप पर ही पिक्चराइज़्ड़ होगा आप शूटिंग के लिए तैयार रहे "... और ऐसा हुआ भी गाने के बोल थे "तुम्हारे हैं तुम से दया माँगते हैं ". ...इस
गाने की शूटिंग ख़त्म हुई तो उसके बाद राजकपूर ने ग्रेट मास्टर निसार से
कहा...." मैं आपको इतना तो नही दे सकता जितना आप डिजर्व करते हैं मगर आप को
इस लिफाफे में जो मैं दे रहा हूँ उसे एक छोटा सा नज़राना समझ कर रख लीजिये " ओर मास्टर निसार के हाथ मे एक लिफाफा थमा दिया मास्टर
निसार ने बाद मे जब लिफाफा खोला तो उसमे 25000/- रुपये थे ये वो समय
था जब मोतीलाल जैसे लीड स्टार्स एक फ़िल्म करने का 50,000/- मिला करता था राजकपूर का ग्रेट मास्टर निसार को उस वक्त 25,000/-देना बिल्कुल
ऐसे था की जैसे आज आपको कोई 50 लाख रुपये दे दे ....निसार के लिए जो
राजकपूर ने जो किया वो राजकपूर का बड़प्पन था वो केवल पैसे नहीं थे अपने बीते हुए ज़माने के कलाकार सिंगिंग स्टार मास्टर निसार का खोया
सम्मान था
आज की पीढ़ी मास्टर निसार के नाम से भले अनजान हो लेकिन 30 के दशक में मास्टर निसार लोगों के पसंदीदा स्टार थे मास्टर निसार को 'टाकीज़ युग 'का पहला सुपर स्टार कहा जाता है लोग उनकी एक झलक पाने के लिए बेताब रहते थे। साल 1931 में रिलीज हुई हिंदी सिनेमा की बेहतरीन फिल्म ‘शीरीं फरहाद’ और ‘लैला मजनूं’ जैसी फिल्मों में मास्टर निसार की अहम भूमिका थी। कलकत्ता के मदन थिएटर से निकले मास्टर निसार उर्दू के अच्छे जानकार थे जिसकी वजह से फिल्मों में उनका दर्जा काफी ऊंचा माना जाता था। टॉकीज ऐरा में भी मास्टर निसार ने खूब नाम कमाया था मास्टर निसार 'इन्द्रसभा (1932 )' में हीरो थे इन्द्रसभा
में में 69 सांग्स थे और ये फिल्म इतिहास में दर्ज है भारत की पहली रंगीन फिल्म 'किसान कन्या (1937 )' में भी वो नायक थे लेकिन समय बड़ा बलवान है जो किसी को भी पलक झपकते अर्श से फर्श पर ले आता है मास्टर निसार के साथ भी यही हुआ इसके बाद उनका सितार गर्दिश में चला गया। धीरे-धीरे काम मिलना बंद हो गया। यहां तक कि रोजमर्रा के खर्चो के लिए पैसों की कमी आने लगी .....कहा जाता है की जब मास्टर निसार अपनी शूटिंग खत्म करके स्टूडियो से बाहर निकलते थे तो उनका इंतज़ार कर रहे उनके चाहने वाले उन पर रुपये पैसो की बरसात कर देते थे दिल्ली की रहने वाली कमसिन अभिनेत्री बिब्बो के साथ उनकी जोड़ी पसंद की गई इस जोड़ी ने सैर-ए-परिस्तान ,दर्द-ए-दिल ,मायाजाल ,दुख्तर-ए-हिन्द जैसी फिल्मो में धूम में मचा दी उन दिनों जिस मास्टर निसार के गाने गली गली में गाये जाते थे उस मास्टर निसार का आखरी वक्त बेहद बुरी हालत में गुज़रा भारत की पहली रंगीन फिल्म 'किसान कन्या '(1937) निसार के जीवन में अंधकार ले कर आई 'किसान कन्या 'के असफल होने के बाद वो गुमनामी के अँधेरे में खो गए आर्थिक परेशानियों के चलते उन्हें दलीप कुमार के साथ लीडर ,कोहिनूर आज़ाद जैसी फिल्मो में छोटे छोटे रोल कर गुज़ारा करना पड़ा अपनी आवाज के लिए मशहूर मास्टर निसार को बी.आर चोपड़ा की फिल्म 'साधना' में जब मोहम्मद रफ़ी की आवाज़ में एक कव्वाली गाने का मौका मिला तो उन्होंने इस कव्वाली 'आज क्यों हमसे पर्दा है 'में अपने जीवन का व्यंग और सारा दर्द उड़ेल कर रख दिया .......मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो मास्टर निसार को हाजी अली दरगाह पर भीख मांगते हुए भी देखा गया था....... बम्बई के रेड लाइट एरिया कमाठी पुरा की तंग गलियों के बदनाम मोहल्ले के एक गुमनाम सीलन भरे घर में बीमारी के चलते मास्टर निसार ने 13 जुलाई 1980 को चुपचाप खामोशी से दम तोड़ दिया इस प्रकार भारतीय सिनेमा के नींव का एक मजबूत पत्थर ढह गया कहा जाता है कि उनके देहांत पर कोई आंसू बहाने वाला तक नहीं था परन्तु सच्चे सिनेमा प्रेमी मोहम्मद निसार अली उर्फ़ मास्टर निसार को कभी भूलेंगे नहीं
जो हुआ वो बहुत बुरा हुआ, ऐसे अनगिनत सितारों के बारे में पढ़ा था जिनका अंत गरीबी में और दर्दनाक ढंग से हुआ।
ReplyDeleteबदलते वक्त नें वाकई पुराने कलाकारों को अर्श से फर्श पर ला दिया था । लेकिन पुराने कलाकार और उनकी कलाकारी लोगों के दिलों में अभी भी जिंदा है। मास्टर निसार जी जहां भी होने खुदा उनको बेहतरीन रखें ।
ReplyDeleteमास्टर निसार के पास 13 गाड़ियां थी जो मुंबई में वर्ष 1930 के दशक में एक रिकॉर्ड था। मैंने यें जानकारी फिल्मी दुनिया पर आलेख लिखने वाले महान लेखक राजकुमार केसवानी के आलेख में पढ़ा था।
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