रुस्तम-ए-हिन्द दारा सिंह |
दारा सिंह जी की लंबाई 6 फुट 2 इंच, 130 किलो वजन और
54 इंच छाती थी। अपनी इसी फिजिक के बूते उन्होंने पहलवानी करने की सोची
थी।दारा सिंह का एक
छोटा भाई सरदारा सिंह भी था जिसे लोग 'रंधावा' के नाम से ही जानते थे। दारा सिंह और रंधावा - दोनों ने मिलकर पहलवानी करनी शुरू कर दी और
धीरे-धीरे गाँव के दंगलों से लेकर शहरों तक में ताबड़तोड़ कुश्तियाँ जीतकर
अपने गाँव का नाम रोशन किया। 20 साल की उम्र में वे अपना गांव छोड़कर सिंगापुर चले गए
थे। यहां उन्होंने ड्रम बनाने वाली मिल में काम किया और रेसलर हरमान
सिंह से कुश्ती की ट्रेनिंग ली। दारा सिंह ने 1948-49 के आसपास
कुआलालंपुर में तरलोक सिंह को हराया था। इस जीत के साथ ही उन्हें चैम्पियन
ऑफ मलेशिया का खिताब दिया गया था। 1954 में वे इंडियन चैम्पियन बने। उन्होंने अपने पूरे जीवन में 500 से ज्यादा प्रोफेशनल रेसलर्स के
खिलाफ फाइट की थी और सभी फाइट वे जीते थे। उन्हें पहलवानी के लिए
'रुस्तम-ए-पंजाब' और 'रुस्तम-ए-हिंद' का खिताब दिया गया था। 1983 में
उन्होंने पहलवानी से रिटायरमेंट लिया था।1996 में उनका नाम रेसलिंग
ऑब्जर्वर न्यूजलेटर हॉल ऑफ फेम में शामिल किया गया।
पहलवानी के दौरान ही उन्होंने अपना एक्टिंग करियर 1952 में फिल्म 'संगदिल' से किया था। कुछ साल उन्होंने फिल्मों में छोटे-मोटे रोल किए। 1962 में बाबूभाई मिस्त्री की फिल्म 'किंग कॉन्ग' में उन्होंने बतौर लीड हीरो काम किया। उन्होंने 16 फिल्मों में एक्ट्रेस मुमताज के काम किया, जिसमें 10 फिल्में सुपरहिट रहीं। उस वक्त दारा सिंह को एक फिल्म के लिए 4 लाख रुपए मिलते थे। एक्टिंग के साथ-साथ उन्होंने 7 फिल्में भी लिखी थीं। 1978 में आई फिल्म 'भक्ति में शक्ति' का लेखन और निर्देशन उन्होंने ही किया था। 1980 के दौरान उन्होंने टीवी का रुख किया। उन्हें 'रामायण' सीरियल में निभाए हनुमान के रोल के लिए आज भी याद किया जाता है। हालांकि, इसके पहले भी उन्होंने कुछ फिल्मों में हनुमान का किरदार निभाया था। कम उम्र में ही दारा सिंह की शादी हो गई थी और वे एक बच्चे के पिता बन गए थे। पहलवानी में नाम कमाने के बाद उन्होंने अपनी पसंद से सुरजीत कौर से दूसरी शादी की थी। दारा सिंह के छह बच्चे हैं। तीन बेटे और तीन बेटियां। एक्टर विन्दू दारा सिंह इन्हीं के बेटे हैं।
दारा सिंह ने 16 फिल्मों में एक्ट्रेस मुमताज के काम किया |
1983 में उन्होंने अपने जीवन का अन्तिम मुकाबला जीता और भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह के हाथों अपराजेय पहलवान का खिताब अपने पास बरकरार रखते हुए कुश्ती से सम्मानपूर्वक सन्यास ले लिया। अपने नाम से किवंदती बन चुके दारा सिंह जीवन के अंतिम समय तक नहीं हारे और ना ही उन्होंने कहा की वो थक गए .... कुश्ती उनका पहला प्रेम थी .....आज भी हम किसी कसरती शरीर वाले आदमी को देखते ही कहते है की "भाई दारा सिंह आ गया " .....ऐसा सम्मान हर किसी को नहीं मिलता ये भी अचरज की बात है की इतनी महान शख्सियत पर किसी ने अभी तक कोई बायॉपिक नहीं बनाई दारा सिंह ने बिना किसी विवाद में पड़े शानदार जीवन जिया और अपना और देश का नाम रोशन किया उनकी मृत्यु 12 जुलाई 2012 को मुंबई में हुई अाज भी दारा सिंह जी भारत रत्न के असली हकदार है... और दारा सिंह जी को ये सम्मान मिलना चाहिए
दारा सिंह- ( 1928 -- 2012 ) |
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