Thursday, January 3, 2019

फिल्म जय संतोषी माँ - (1975) के निर्माण से जुड़े कलाकारों और लोगो के अभिशप्त होने की शापित कहानी ....अफसाना या हकीकत ...?

अभिनत्री अनीता गुहा ने फिल्म में 'संतोषी माता ' का अमर किरदार निभाया था 
धार्मिक फिल्म 'जय संतोषी माँ ' एक बहुत बड़ी सफल फिल्म थी लेकिन एक आश्चर्य करने वाली जानकारी ये है की इस फिल्म के हिट होने के बाद भी इस से जुड़े ज्यादातर लोग फिर कभी पनप नहीं पाए कुछ इसे संतोषी माता का अभिशाप मानते है कई तरह की बाते कही जा रही है ये जानकारी मेरे लिए भी नई थी मैंने अपने फ़िल्मी मित्रो से इस बारे में चर्चा की मुझे इस बारे में जो जानकारी मालूम हुई है आप सब के लिए यहाँ लिख रह हूँ अब इसमें कितनी सच्चाई है मैं नहीं जानता इसका निर्णय आप खुद करे और अगर कोई अन्य जानकारी है तो मुझे भी बताये ...........तो आईये अब जानते है इस फिल्म के बारे मे की कैसे माँ संतोषी का वरदान एक अभिशाप मे बदल गया और फिल्म 'जय संतोषी माँ ' निर्माण से जुड़े ज्यादातर लोग इससे बुरी तरह प्रभावित हुए फिर उन्हें कभी सफलता नहीं मिल पाई 

फिल्म 'जय संतोषी माँ ' के निर्माता सतराम रोहड़ा थे 1973 में उन्होंने 'रॉकी मेरा नाम ' की एक फिल्म बनाई थी जिसमे राजन हक्सर ,मुमताज़ बेगम ,बेला बोस ,राम मोहन अदि ने काम किया था और इसमें एक भूमिका में संजीव कुमार भी थे उनकी फिल्म 'रॉकी मेरा नाम' बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप हो गई अपनी पहली ही फ़िल्म ’रॉकी मेरा नाम’ के बुरी तरह असफल हो जाने से निर्माता सतराम रोहड़ा आर्थिक रूप से टूट चुके थे। तभी उन्हें एक दिन अचानक एक महिला मिली जिन्होंने उन्हें 25,000 रुपये देने की बात इस शर्त पर कहीं कि वो 'संतोषी माँ 'पर एक फ़िल्म बनाएँगे। अब आर्थिक संकट में फँसे सतराम ने बिना कोई सवाल किए उस महिला का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। और फिल्म बनाने के लिए उन्होंने कम बजट के कलाकारों को इकट्ठा कर कास्टिंग शुरु कर दी लेखक के रूप में 'पंडित प्रियदर्शी 'को लिया गया जो तीन दशक पूर्व हरिद्वार से बम्बई एक फ़िल्म लेखक बनने आए थे पर क़िस्मत ने उनका साथ नहीं दिया। और वो संघर्ष कर रहे थे उनकी लिखी पौराणिक श्रेणी की फिल्मे सती सुलोचना (1969) , देव कन्या (1963) ,नाग मेरे साथी (1973) आदि भी कोई खास कमाल नहीं दिखा सकी फ़िल्म के लिए निर्देशक चुना गया 'विजय शर्मा' को जो पिछले उन्नीस वर्षों से प्रियदर्शी के मित्र थे विजय शर्मा की भी पहली फ़िल्म ’महापावन तीर्थ यात्रा’(1975) पिट चुकी थी और एक सफल फ़िल्म की तलाश में थे अब अभिनेता आशीष कुमार, कानन कौशल, अनीता गुहा, संगीतकार सी. अर्जुन , गीतकार कवि प्रदीप और गायकों उषा मंगेशकर, महेन्द्र कपूर, मन्ना डे को भी बिलकुल कम बजट पर लिया गया। अपनी नाकाम फिल्म 'रॉकी मेरा नाम' में अभिनय कर चुके राजन हक्सर ,जॉनी व्हिस्की ,बेला बोस ,लीला मिश्रा जैसे सितारों को भी उन्होंने इस फिल्म में रिपीट किया और भारत भूषण ,महिपाल ,मनहर देसाई जैसे सितारे भी 'जय संतोषी माँ 'फिल्म का हिस्सा बने धार्मिक फिल्मो के लिए प्रसिद्ध अभिनेता महिपाल इसमें 'महर्षि नारद' बने थे .....फिल्म बनी और बनने के बाद के अब फिल्म को रिलीज़ करने के लिए वितरकों की तलाश शुरू हुई क्योंकि उन दिनों बॉक्स ऑफिस पर अमिताभ बच्चन काबिज़ थे, राजेश खन्ना का रोमांटिक युग ढलान पर था और ज्यादातर एक्शन फिल्मे ही सफल हो रही थी ऐसे में एक धार्मिक फिल्म के लिए वितरक मिलना मुश्किल काम था ज्यादातर फिल्म वितरक को जय संतोषी मां को रिलीज़ करना एक घाटे का सौदा लग रहा था और वो अपने हाथ पीछे खींच लेते एक समय तो हताश निर्माता सतराम रोहड़ा को लगा की वो शायद इस फिल्म को कभी रिलीज़ नहीं करवा पायेगे 

फिर एक चमत्कार हुआ हुआ यूं कि एक दिन फ़िल्म वितरक संदीप सेठी और उनके पार्टनर केदारनाथ अग्रवाल एक होटल में बैठे थे वहां उनकी मुलाकात अंदाजन सतराम रोहड़ा से हो गई सतराम रोहड़ा ने उन्हें अपनी फिल्म के बारे में बताया फिल्म के बारे में जानने के बाद केदारनाथ अग्रवाल ने जो कहा उससे सतराम रोहड़ा फिर निराश हो गए  अग्रवाल ने कहा '' इस फ़िल्म में हर वह बात है  जिसकी वजह से वितरक इससे दूर भाग रहे है ...मसलन न कोई एक्शन ,न रोमांच ,न रोमांस...... सतराम अब धार्मिक फिल्मो के दिन नहीं रहे और उनकी फिल्म' जय संतोषी मां' भी नहीं चलेगी '' लेकिन वहाँ पास ही बैठीं वितरक अग्रवाल जी की पत्नी फिल्म की कहानी को बड़े गौर से सुन रही थी को उनको कहानी बहुत अच्छी लगी और मिसेज़ अग्रवाल ने अपने पति को इस फिल्म को ख़रीदने का सुझाव दिया। इसके पीछे भी एक कारण था। बीस वर्ष के वैवाहिक जीवन के बावजूद अग्रवाल दम्पति जब निस्संतान थे। तब मिसेस अग्रवाल ने संतोषी माता का व्रत रखा था। और उसके बाद उन्हें एक कन्या संतान की प्राप्ति हुई। इस बात की तरफ़ जब उन्होंने अपने पति का ध्यान आकर्षित किया, तब जाकर अग्रवाल साहब ( भाग्य लक्ष्मी चित्र मंदिर ) ने इस फ़िल्म के वितरण की हर बड़ी टेरिटरी ख़रीद ली। फ़िल्म जय संतोषी माँ अब रिलीज़ के लिए तैयार थी वितरकों ने सोलह-शुक्रवार का व्रत रखते हुए सत्रहवें शुक्रवार को फ़िल्म रिलीज़ करने का निर्णय लिया। 30 मई 1975 को फ़िल्म रिलीज़ हुई ’जय संतोषी माँ’। ’दीवार’, ’प्रतिज्ञा’, ’संयासी’, ’जुली’, ’आंधी’, ’चुपके चुपके’ और ’छोटी सी बात’ जैसी फ़िल्मों को पछाड़ते हुए 'शोले’ के बाद दूसरे नंबर पर रही। जिस फ़िल्म की तरफ़ किसी ने ध्यान नहीं दिया था वह फ़िल्म बहुत आगे निकल चुकी थी। गीतों के रेकॉर्ड ने भी कई रेकॉर्ड तोड़े। HMV को इस फ़िल्म के गीतों के रेकॉर्ड्स की इतनी फ़रमाइशें मिली कि ऐसा पहली बार हुआ कि किसी पौराणिक फ़िल्म के लिए उन्होंने कई बार LP रिकॉर्ड जारी किया जबकि उन दिनों मेग्नेटिक कैसेट प्लेयर चलन में आ चुके थी और ज्यादातर फिल्मो का संगीत कैसेट पर ही रिलीज़ होता था  दिल्ली-यूपी क्षेत्र में इस फ़िल्म के आय की तुलना ’मुग़ल-ए-आज़म’-(1960) से की गई। एक बहुत ही कम बजट की फ़िल्म के रूप में निर्मित यह फ़िल्म जब प्रदर्शित हुई, तब लगातार पाँच महीनों तक थिएटरों से उतर नहीं पायी और आशातीत व्यावसाय करते हुए इस छोटी सी सी-ग्रेड कलाकारों की फ़िल्म की इस कामयाबी की किसी ने सपने में भी कल्पना नहीं की थी इस फ़िल्म से जुड़े सभी लोग आर्थिक दृष्टि से बेहद लाभान्वित हुए। देखते ही देखते सतराम रोहड़ा और वितरक केदारनाथ अग्रवाल करोड़पति बन गए। फिल्म के प्रदर्शन से पहले तक तक बेहद कम चर्चित पौराणिक देवी संतोषी माता घर-घर में पूजी जाने लगी देश भर में लोगो ने संतोषी माता के व्रत रखने शुरू कर दिए और संतोषी मां के नए मंदिर भी बने कुछ लोगो ने अपनी मनोकामना पूर्ण होने दावे भी किये जब अभिनेत्री अनीता गृहा को फिल्म में 'संतोषी मां' का रोल करने का मौका मिला तो समय तक अनीता नहीं जानती थीं कि कोई 'संतोषी मां' नाम की देवी भी होती हैं। अनीता गृहा बंगाली होने की वजह से काली मां को पूजती थीं। अनीता ने फिल्म की शूटिंग मात्र 12 दिन में पूरी कर ली। फिल्म की शूटिंग के दौरान अनीता ने भी व्रत रखे थे फिल्म के साथ अनीता की पॉपुलैरिटी भी तेजी से बढ़ने लगी। अनीता ने एक इंटरव्यू में कहा था कि...." इस फिल्म के बाद लोग मेरे पास आकर कहते थे कि वो उनके सिर पर हाथ रख आशीर्वाद दें। " जो दर्शक इस फिल्म को देखने जाते थे तो वो थिएटर के बाहर चप्पल उतार कर अंदर जाते थे थिएटर में प्रसाद भी बंटता था। कम बजट फिल्म होते हुए भी ये हिंदी सिनेमा की एक ब्लॉकबस्टर फिल्म बन गई।'जय संतोषी माँ ' फिल्म की इंडियन बॉक्स ऑफिस कलेक्शन लगभग 5 करोड़ के आसपास रही जबकि वर्ल्डवाइड कलेक्शन दुगनी यानि लगभग 10 करोड़ रही 

अब रोहड़ा और अग्रवाल, दोनों ने इस फ़िल्म की अपार सफलता से प्रसन्न होकर संतोषी माता का एक भव्य मन्दिर बनाने की घोषणा कर दी लेकिन दिन गुजरते चले गए और ये सब भी अपने अपने कामों में व्यस्त होते गए मंदिर की याद किसी को भी नहीं रही संतोषी माता का मन्दिर कभी नहीं बन पाया। इसे भाग्य का खेल समझिए, या कोई अलौकिक घटना या फिर मन्दिर नहीं बनाने का अभिशाप, कि देखते ही देखते ’जय संतोषी माँ’ फ़िल्म से जुड़े कई लोग बरबाद होने शुरू हो गए निर्माता सतराम रोहड़ा ने ’जय संतोषी माँ’ की अपार सफलता से उत्साहित हो कर अपनी अगली चार फ़िल्मों की घोषणा कर दी पर एक भी फ़िल्म पूरी नहीं बन पाई। इस वजह से उन्हें भारी आर्थिक क्षति हुई और अपने क़र्ज़ और बकाया उधार चुकाने के लिए उन्हें अपनी पूरी सम्पत्ति तक बेचनी पड़ गई। इस प्रकार ’जय संतोषी माँ’ फ़िल्म से जो सम्पति और धन उन्होंने अर्जित किया था सब उनके हाथ से निकल गया। कई धार्मिक संस्थाओं ने सतराम रोहड़ा पर फिल्म में धार्मिक भावनाओं से खिलवाड़ और अन्धविश्वास फ़ैलाने के   मामले ( Civil Suit No. 2736 of 1975 in the City Civil Court, Ahmedabad on Sept. 10, 1975 ) कोर्ट में दर्ज़ करवा दिए  इन कोर्ट केस की वजह से उन्हें कई सालो तक बॉम्बे हाइकोर्ट और अन्य जगह के चक्कर लगाने पड़े ऐसा भी कहा जाता है की सतराम रोहड़ा को शादी-ब्याह के कार्यक्रमों में गाना गाकर गुज़ारा करना पड़ा ,उधर वितरक केदारनाथ अग्रवाल को भी अपने बिजनेस में भारी नुकसान उठाना पड़ा और अपने आलीशान बंगले को बेच कर एक तंग चाल में जाकर रहना पड़ रहा है। उनका भी सब कुछ ख़तम हो गया ,उनके दोस्त संदीप सेठी ( वो भी इस फ़िल्म के एक वितरक थे ) उनके साथ भी कुछ हद तक यही हुआ और वो मजबूरन अभिनेता विनोद खन्ना के सेक्रेटरी बन गए सिर्फ़ निर्माता-वितरक ही नहीं, इस अभिशाप से कई और लोग भी नहीं बच सके। निर्देशक विजय शर्मा को यह सफलता हज़म नहीं हुई और वो सफलता के नशे में डूब गए और उन्होंने सारा पैसा शराब और अय्याशी में गँवा दिया, एक दिन बम्बई की एक सड़क पर उनकी लावारिस लाश मिली किसी ने उन्हें पहचाना तक नहीं।

अभिनेत्री कानन कौशल 
किसी फिल्म की सफलता से सबसे ज्यादा फायदा फिल्म की स्टारकास्ट को होता है और उनको काम मिलता है लेकिन अभिनेता आशीष कुमार और अभिनेत्री कानन कौशल का कॅरियर भी वहीं ख़त्म हो गया। इस फिल्म के नायक आशीष कुमार ने बाद में 'सोलह शुक्रवार (1977 )', 'जय द्वारकाधीश (1977 )' ,'राजा हरिश्चंद्र' ,'हर हर गंगे (1979 )' ,और 'संत रविदास (1983)' जैसी कुछ अन्य धार्मिक फिल्मो में भी अभिनय किया ,नायिका कानन कौशल भी फिल्म परदेसी (1970 ) अभिनेता सुरजीत कुमार के साथ दिखी उन्होंने कुछ गुजराती मराठी और भोजपुरी फिल्मे भी ,फिल्म 'जय द्वारकाधीश' में तो उनके साथ आशीष कुमार भी थे पर दोनों ही कलाकार जय संतोषी माँ की सफलता को फिर दोहरा नहीं पाए ,गीतकार कवि प्रदीप को भी शेष आयु में आर्थिक कष्ट उठाने पड़े , संगीतकार सी.अर्जुन इस फ़िल्म की सफलता के बावजूद आगे कुछ ख़ास कर नहीं सके, उन्हें फिल्मे के संगीत के हिट होने का भी कोई फायदा नहीं मिला,उषा मंगेशकर को भी गिने चुने कुछ गीतों के अतिरिक्त कुछ बड़ा काम नहीं मिला। जबकि वो इस फिल्म के गाने ''मैं तो आरती उतारूँ रे '' के लिए उन्हें बेस्ट फीमेल सिंगर के फिल्मफेयर अवार्ड के लिए नॉमिनेट भी किया गया था कुछ लोग ये भी कहते है निर्माता सतराम रोहड़ा को फिल्म बनाने के लिए 25 हजार रुपये देने वाली उस महिला ने एक निश्चित रकम दान देने के लिए भी कहा था लेकिन सतराम रोहड़ा ने ऐसा नहीं किया इसलिए उन्हें बुरे दिन देखने पड़े ...अब समय का फेर कहे ,सफलता का नशा या कोई अभिशाप की ये सब घटित हुआ इसका फैसला आप सब करे ये आप सब के विवेक पर छोड़ता हूँ ऐसा में इसलिए कह रहा हूँ की गायक महिंदर कपूर और मन्ना डे भी इस फिल्म से जुड़े थे लेकिन उनके साथ ऐसी कोई घटना पेश नहीं आई .........फिल्म 'जय संतोषी माँ ' के निर्माण से जुड़े कलाकारों और व्यक्तियों के अभिशप्त होने की जानकारी मुझे आप लोगो से मिली थी इससे पहले ये सारी बाते मुझे मालूम नहीं थी कई लोगो से बात करने और जानकारी जुटाने के बाद कुछ अपवादों को छोड़कर आप सब की बात सही प्रतीत मालूम होती है आप सब की जिज्ञासा शांत करने के लिए के लिए इसे लिखना आवशयक भी था ये सारी जानकारियाँ एक पोस्ट के रूप में आप सबसे सांझी कर रहा हूँ अगर कोई और भी अन्य जानकारी इस फिल्म के बारे में आपको मालूम है तो मुझे अवशय बताये बरहाल यही कह सकते है की कुछ आश्चर्य में डाल देने वाली घटनाएँ ऐसी होती हैं जिन्हें समझाया नहीं जा सकता और ’जय संतोषी माँ’ फ़िल्म से जुड़ी यह घटनाएँ उन्हीं में से एक प्रतीत होती है।

अभिनेत्री बेला बोस 
मुझे बताते हुए बड़ी खुशी हो रही है की फ़िल्मी इतिहासकार ,समीक्षक ,लेखक ,ब्लॉगर श्री कृष्ण शिशिर शर्मा जी के सहयोग से फिल्म 'जय संतोषी माता ' के बारे में फैली भ्रांतियों और अफवाहों का जवाब मेरी पोस्ट पर हिंदी फिल्मो और अपने ज़माने की मशहूर अभिनेत्री और इसी फिल्म 'जय संतोषी माँ ' में अभिनय करने वाली अभिनेत्री बेला बोस जी (अब ,मैडम बेला सेन गुप्ता ) ने खुद दिया है उन्होंने बड़े विस्तार से बताया है की ये सब किसी चमत्कार या अभिशाप का परिणाम नहीं था ये सब महज इत्तफाक या सफलता को संभाल नहीं पाने का नतीजा मात्र था चूँकि बेला बोस जी खुद फिल्म 'जय संतोषी माँ' का एक हिस्सा रही है और इस फिल्म के निर्माता सतराम रोहड़ा को अपना भाई मानती थी और इसलिए उन्होंने जो जानकारी दी वो हमारे लिए विश्वसनीय है ,बेला बोस जी ने फिल्म 'जय संतोषी माँ' के निर्माता सतराम रोहड़ा ने के बारे में तो बाते बताई हैरान करती है उन्होंने बताया की कैसे उनके पति आशीष कुमार द्वारा फिल्म 'जय संतोषी माँ' के निर्माण के लिए सतराम को पैसे उधार दिए लेकिन  सतराम रोहड़ा ने फिल्म सम्बन्धी सारे अधिकार धोखे से अपने नाम करवा लिए इसलिए फिल्म 'जय संतोषी माँ' की अपार सफलता का लाभ उनके पति आशीष कुमार को नहीं मिला लेकिन बेईमानी का ये पैसा सतराम रोहड़ा को भी नहीं पचा जल्दी ही वो अर्श से फर्श पर आ गए उनकी कोई भी दूसरी फिल्म कभी परदे पर नहीं आ पाई जीवन के अंतिम दिनों में वो जीवन निर्वाह के लिए बम्बई के एक सिंधी गुरूद्वारे में भजन गाते थे और किसी को पहचान पाने में असमर्थ थे इतना सब कुछ होने के बाद ये बेला बोस जी का बड़प्पन है की वो उनसे मिलती रही

फिल्म जय संतोषी माँ -  (1975)
इसी तरह बेला बोस जी ने बताया की फिल्म के वितरक केदारनाथ अग्रवाल और उनके दोस्त संदीप सेठी भी कोई खास बड़े फिल्म वितरक नहीं थे उनके पास  फिल्म 'जय संतोषी माँ' के थोड़े से क्षेत्र के ही वितरक अधिकार थे लेकिन इस फिल्म से उन्हें भारी मुनाफा हुआ उसके बाद उनका सारा व्यापार चौपट हो गया और बाद में उनके दोस्त संदीप सेठी भी अभिनेता विनोद खन्ना के सचिव बन गए निर्देशक 'विजय शर्मा' भी सफलता के नशे में डूब गए और उन्होंने सारा पैसा शराब और अय्याशी में गँवा दिया,और अंत में उनकी भी मौत शराब के अत्यधिक सेवन से हुई इन सारी घटनाओं के पीछे के पीछे बेला बोस जी किसी चमत्कार या अभिशाप की बात कतई नहीं मानतीं उनका कहना है की ये सब नियति और कर्मो का फल था चूंकि उनके पति आशीष जी एक फिल्म निर्माता के रूप में अनुभवहीन थे और इसी बात का फायदा निर्माता सतराम रोहड़ा ने बखूभी उठाया और उन्हें धोखा दिया इसमें देवी प्रकोप या अभिशाप जैसी कोई बात नहीं थी चमत्कार की बात को वो सिरे से नकारती है

आशीष कुमार के साथ बेला बोस 
ये सारा विवाद तब शुरू हुआ था जब फिल्म 'जय संतोषी माँ' की सफलता को लेकर मैंने एक सामान्य सी पोस्ट लिखी थी लेकिन उस पोस्ट पर ऐसे कमैंट्स आने लगे की आपकी पोस्ट अधूरी है इस फिल्म 'जय संतोषी माँ' की सफलता के बाद क्या हुआ था ये आपने नहीं लिखा ? मेरे लिए भी ये जानकारी बिलकुल नई थी मैंने कभी भी इस तरह की कोई अशुभ बात फिल्म 'जय संतोषी माँ' के बारे में नहीं सुनी थी इसे लेकर मेरे मन में कई तरह के सवाल और शंकाये भी उमड़ने लगी फिर मैंने इस बात की खोज शुरू की इंटरनेट पर इस तरह के कई आधे अधूरे लिंक्स मिले जो मेरी पोस्ट पर कमैंट्स करने वाले दोस्तों की बात को सच भी साबित कर रहे थे ,कुछ सुनी सुनाई बाते भी थी जो इस रहस्य को और गहरा कर रही थी इसलिए मुझे जो जानकारी उचित लगी मैंने इसे पढ़ने वालो के साथ शेयर किया और सच झूठ का निर्णय भी उनपर ही छोड़ दिया मेरी ये पोस्ट जब फिल्म 'जय संतोषी माता ' का हिस्सा रही अभिनेत्री बेला बोस जी ने पढ़ी तो उन्होंने ये सारी जानकारी मुझसे शेयर की उन्होंने फिल्म में कानन कौशल की जेठानी का रोल किया था ........मैं उनका शुक्रगुज़ार हूँ की उन्होंने बड़ी सच्चाई और ईमानदारी ये सारी बाते मुझे बताई क्योंकि आमतौर पर कोई भी फिल्म इंडस्ट्रीज़ का हिस्सा होते हुए उसी फिल्म इंडस्ट्रीज़ के किसी बुरे आदमी की बुराई के बारे में कहने से बचता है

अब फिल्म 'जय संतोषी माता ' बारे में फैली अन्धविश्वास की कहनियो का समापन हो गया समझे.... किसी को इस बारे में कोई शंका या संदेह नहीं होना चाहिए इसके लिए में श्री कृष्ण शिशिर शर्मा जी और मैडम बेला सेन गुप्ता जी को एक बार फिर धन्यवाद देता हूँ

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