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प्रेम अदीब
( 10 अगस्त 1917--- 25 दिसम्बर 1959 ) |
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कृष्ण सुदामा - (1957 ) |
देश में आज़ादी से पूर्व मूक फिल्मो का दौर ख़त्म होने के बाद भी धार्मिक
फिल्मो का महत्त्व कम नहीं हुआ पौराणिक फिल्मे बनती थी और हिट भी हो रही
थी इन पौराणिक फिल्मो में निभाये गए पवित्र धार्मिक किरदारों को न
केवल लोग पसंद करते बल्कि उनकी पूजा भी करते थे एक ऐसे ही अभिनेता थे
...."प्रेम अदीब' .... जिनका नाम उस ज़माने के फ़िल्म प्रेमियों के ज़हन में
आज भी ज़िंदा है आप प्रेम अदीब की लोकप्रियता का अंदाज़ा इस बात से लगा सकते
है की फिल्मो से दूर दूर तक कोई वास्ता ना रखने वाले महात्मा गाँधी जी ने
अपने पूरे जीवन काल में सिर्फ एक ही फिल्म देखी थी और वो फिल्म ‘रामराज्य’
(1943 ) थी और सीता बनीं शोभना समर्थ के साथ परदे पर राम की भूमिका में
नज़र आने वाले अभिनेता यही "प्रेम अदीब' थे प्रेम अदीब 1940
के दशक में धार्मिक फ़िल्मों का एक चमकता सितारा थे.रामराज्य के बाद प्रेम
अदीब काफी लोकप्रिय हो गए और धार्मिक आस्था का चेहरा बन गए उस युग के
कैलेंडर में देवताओं जगह उनका चेहरा छपने लगा और लोग उनकी आरती उतारने लगे भरत मिलाप ,राम राज्य ,राम बाण जैसी धार्मिक फिल्मो में मर्यादा पुरुषोतम श्री राम का रोल करने की वजह से लोग उनमे भगवान राम की छवि देखने लगे
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स्टेशन मास्टर - (1942 )
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साधना - (1939 )
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एकादशी महिमा - (1952 ) |
कश्मीरी मूल के "प्रेम अदीब' के पूर्वज कश्मीर छोड़कर उस समय के
अवध के फ़ैज़ाबाद में आ बसे कहते है की उनके खानदान की लियाकत और अदब
देख कर ही नवाब वाजिद अली शाह ने उनके पूर्वजो को
"अदीब "की उपाधि दी थी
उर्दू भाषा में अदीब का मतलब अदब यानि 'तमीज़ ' होता है यही अदीब आगे जा कर
उनके नाम से भी जुड़ गया लेकिन प्रेम अदीब का वास्तविक नाम ये नहीं था
बचपन में उनका नाम '
शिव प्रसाद 'रखा गया था उनका झुकाव शुरू से ही नाटकों और
फिल्मो में रहा ....वो अंग्रेजी हकूमत का दौर था मूक फिल्मो के बाद अब
बोलती फिल्मो का जादू भारतीय दर्शको के सर चढ़ कर बोल रहा था विदेशो से आई
फिल्मो का जादू अब काम नहीं करता था कलकत्ता ,लाहौर हिंदी फिल्मो बनाने के
प्रमुख बिंदु बन कर उभर रहे थे और फिल्म उद्योग बम्बई में भी अपने पैर
ज़माने की कोशिश कर रहा था प्रेम अदीब ने भी फिल्मो में हाथ आज़माने
के लिए कलकत्ता ,लाहौर ,बम्बई की खाक छानी लेकिन सफलता मिली
राजपूताना फ़िल्म्स’की
‘रोमांटिक इंडिया’ से जिसके निर्माता मोहन सिन्हा थे
कहते है की उनको "प्रेम" नाम भी मोहन सिन्हा ने दिया था रोमांटिक इंडिया’
फिल्म नहीं चली हालांकि इस फिल्म में प्रेम अदीब हीरो नहीं थे
'घूंघटवाली' (1938), साधना' (1939), 'सौभाग्य'(1940) जैसी फ़िल्मों
के साथ प्रेम अदीब की गाड़ी चलने लगी उनको मशहूर बैनर मिनर्वा मूवीटोन
,हिंदुस्तान सिनेटोन’ प्रकाश पिक्चर्स जैसे दिग्गज़ टाकीज़ का साथ मिला जिनकी
कई अच्छी फिल्मो से उनको जबदस्त सफलता मिली प्रकाश पिक्चर्स’ के ही बैनर
तले बनी फ़िल्म
'रामराज्य' (1943 ) से वो हिंदी सिनेमा के इतिहास में
सुनहरे अक्षरो में दर्ज हो गए
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शहीदे आज़म
भगतसिंह- (1954) | | | | | |
आम्रपाली (1944) , एक्ट्रेस (1947), वीरांगना’ (1947) ,अनोखी अदा (1948), राम विवाह (1949 , शहीदे आज़म
भगतसिंह (1954) ,सम्राट पृथ्वीराज चौहान (1959), श्री गणेश विवाह’ (1955)
जैसी फिल्मे उनको मिलती चली गई इनमे से ज्यादातर फिल्मे धार्मिक थी कुछ
फिल्मो जैसे
'तलाक़', 'साधना', 'सौभाग्' ,'दर्शन', 'चूड़ियां', 'स्टेशन
मास्टर 'और 'पुलिस' जैसी फ़िल्मों में उन्होंने अभिनय के आलावा गाने भी
गाए अभिनेता प्रेम अदीब उस समय एक चर्चित क़ानूनी विवाद में भी फंसे
थे जब उम्र में छोटी एक नाबालिग अभिनेत्री को उन्होंने अपने पिता के
माध्यम से फिल्मो में काम करने के लिए अनुबंधित किया रम कानूनों
के उल्लंघन के लिए उन पर मामला दर्ज किया हालांकि प्रेम अदीब ये
मुकद्दमा जीत गए थे लेकिन आज भी
'' रानी vs प्रेम अदीब '' के इस मुकद्दमे को
कानूनी साहित्य में याद किया जाता है उन्होंने अपने नाम से ‘प्रेम
अदीब प्रोडक्शंस’ भी बनाया और इस बैनर में उन्होंने दो फ़िल्में ‘
देहाती’
(1947) और
‘रामविवाह’ (1949) भी बनाई थीं, लेकिन ‘देहाती’ में अभिनय
नहीं किया
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‘देहाती’ (1947) |
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‘रामविवाह’ (1949) |
एक कार दुर्घटना में उनके दोनों गुर्दे
बेकार हो गए थे 25 दिसम्बर 1959 को अपनी बड़ी बहन के घर पर पर उनका ब्लड प्रेशर
अचानक बढ़ गया दिमाग की नस फट गई नतीजा ब्रेन हेमरेज हुआ और उनकी मौत
हो गई अपने दोस्त अभिनेता चंद्रमोहन की तरह उनकी मौत
भी मात्र 43 वर्ष में हो गई कश्मीरी मूल के ही अभिनेता चन्द्रमोहन प्रेम
अदीब के बेहद करीब थे प्रेम अदीब को वो अपना छोटा भाई मानते थे हिंदी
फ़िल्मों में चन्द्रमोहन ने बहुत ऊंचा मुक़ाम हासिल किया था अब इसे संयोग
ही कहेगे की दोनों दिग्गज अभिनेताओं की मौत मात्र 43 वर्ष में ही हो गई
जबकि दोनों अपने कॅरियर के शीर्ष पर थे सिर्फ अंगुलीमाल (1960 )
प्रेम अदीब की आख़िरी फ़िल्म थी जो उनके निधन के बाद प्रदर्शित हुई थी
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रामबाण - (1942)
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आज की पीढ़ी भले ही प्रेम अदीब के नाम से अनजान हो लेकिन एक समय ऐसा
भी था लोग उनकी तस्वीरों की आरती उतारते थे और फिल्म स्टूडियो के बाहर
उनके पैर छूने की होड़ लगी रहती थी सोहराब मोदी और महबूब खान जैसे
फिल्म निर्माताओ ने उनको अपनी फिल्मो में लिया महबूब खान की
अनोखी अदा
(1948 ) में प्रेम अदीब के निभाये "लाट साहेब" के किरदार को कोई भी फिल्म
प्रेमी नहीं भूल सकत ......
प्रेम अदीब की रामराज्य पहली ऐसी हिंदी फिल्म
थी जिसका प्रीमियम अमेरिका में हुआ ....
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