Friday, September 22, 2023

फिल्म मधुमती के मशहूर गाने ''सुहाना सफर और ये मौसम हँसी '' के बनने की दिलचस्प कहानी और हफनमौला गायक अभिनेता किशोर कुमार का नजरिया

'मधुमती' के  गाने 'सुहाना सफर ' को गायक मुकेश ने गाया था जो फिल्म की सिग्नेचर ट्यून बन गया 

'मधुमती'-(1958) हिंदी सिनेमा की क्लासिक फिल्म है जिसका निर्देशन बिमल रॉय ने किया है इसमें दिलीप कुमार के साथ मुख्य भूमिका में वैजयंतीमाला हैं अन्य कलाकारों में प्राण,जयंत,तिवारी,तरुण बोस और जॉनी वॉकर शामिल थे पुनर्जन्म के सिलसिले को पूरी शिद्दत से दिखाने के के लिए दिलीप कुमार और वैजयंतीमाला के किरदार एक से अधिक बार रचे गए हैं 'मधुमती' में वैजयंतीमाला में तिहरी भूमिका निभाकर दर्शको को मंत्रमुग्ध कर दिया

'मधुमती' एक हॉरर लेकिन रोमांटिक संगीतमय फिल्म थी जो शुरुआत से ही दर्शकों को बांधे रखती है दिलीप कुमार और तरुण बोस एक तूफानी रात में खंडहरनुमा पुरानी हवेली में प्रवेश करते हैं उसके बाद का घटना क्रम तेज़ी से बदलता है ......कलाइमेक्स आपके रोंगटे खड़े कर देता है जहां 'मधुमती' का भूत ठाकुर उग्रनारायण से बदला लेने के लिए आता है यह हिंदी सिनेमा का एक मास्टरस्ट्रोक सीन है और फिल्म का मुख्य आकर्षण है ............एक्टर प्राण ने पहली बार इस फ़िल्म के ज़रिये बिमल रॉय के साथ काम किया था अभिनेता प्राण ने विशेष रूप से जालिम जमींदार उग्रनारायण के रूप में गहरी छाप छोड़ी है जंगल में उनके घोड़े की टॉप सुनकर इंसान तो क्या पक्षी भी भय से उड़ जाते है इस रोल के साथ उन्होंने स्क्रीन पर सबसे महान खलनायक के रूप में अपनी स्थिति को और मजबूत किया  इस रोल के साथ उन्होंने स्क्रीन पर सबसे महान खलनायक के रूप में अपनी स्थिति को और मजबूत किया

'मधुमती' के शानदार गीत फिल्म को आगे बढ़ाने में मदद करते हैं चाहे वह हॉन्टेड "आजा रे परदेशी", हो या लोकगीत  "बिछुआ" या "जुल्मी संग आंख लड़ी", "टूटे हुए ख्वाबों ने", "सुहाना सफर" या रोमांटिक "घड़ी घड़ी मेरा दिल धड़कने", 'दिल तड़प तड़प के' कह रहा है आ भी जा” यहां तक कि कॉमिक “जंगल में मोर नाच” को सलिल चौधरी द्वारा बड़ी मेहनत से बनाया गया है .......विशेषकर फिल्म का आदिवासी बैक ग्राउंड संगीत फिल्म की आत्मा है मधुमती को सर्वश्रेष्ठ फिल्म, सर्वश्रेष्ठ निर्देशक, सर्वश्रेष्ठ संगीत आदि सहित नौ फिल्मफेयर पुरस्कार मिले



'मधुमती' की इस सिग्नेचर ट्यून सुहाना सफर सुनहरी आवाज वाले मुकेश ने गाया था इस प्रतिष्ठित गीत के लिए मूल रूप से गायक तलत महमूद थे ऐसा कहा जाता है कि है कि मुकेश जी आर्थिक तंगी से गुजर रहे थे तो तलत महमूद संगीतकार सलिल चौधरी को यह सुझाव देने के लिए प्रेरित किया कि गाना मुकेश को दिया जाए ये घटना इस बात को प्रमाणित करती है की भारतीय फिल्म उद्योग में 1950 के दशक में साथी कलाकारों के बीच उदारता की समर्पण भावना कितनी प्रबल थी जबकि आज तो गलाकाट प्रतिस्पर्धा है

यह भी अफवाह थी कि 'मधुमती 'के नायक दिलीप कुमार संगीतकार के रूप में सलिल चौधरी के सख्त विरोधी थे क्योंकि फिल्म उद्योग की अनियमितताओं के कारण सलिल चौधरी को बॉम्बे के लोक लुभावन मानकों के अनुसार एक फ्लॉप संगीत निर्देशक घोषित किया जा चुका था बिमल रॉय ने बारी-बारी से दो संगीतकारों के साथ काम किया और वे दो संगीतकार थे सचिन देव बर्मन और सलिल चौधरी ...जब 'मधुमती' बनाई जा रही थी तो संगीत तैयार करने का काम सलिल चौधरी को सौंपा गया था उसके बाद एस.डी. बर्मन को उन्होंने 'सुजाता' (1959) के लिए चुना मधुमती के लिए संगीत रचना करने की बारी सलिल चौधरी की थी वह परियोजना के साथ निकटता से जुड़े हुए थे स्क्रिप्ट सत्रों में भाग ले रहे थे और शूटिंग वाले स्थानों पर जा रहे थे लेकिन प्रोजेक्ट के अंतिम चरण में पैसे फाइनेंस करने वाले फिल्म वितरकों ने सलिल चौधरी का जमकर विरोध किया इन वितरकों की कई फिल्मों में बड़ी हिस्सेदारी होती थी इसलिए उनका शब्द हमेशा एक कानून माना जाता था उन्होंने तर्क दिया कि बॉक्स ऑफिस की कमाई को ध्यान में रखकर डिज़ाइन किए गए प्रोजेक्ट में फ्लॉप संगीत निर्देशक के लिए कोई जगह नहीं है जबकि संगीतकार सलिल चौधरी अपनी प्रतिभा 'दो बीघा जमीन-(1953)' में दिखा चुके थे यहां यह बताना प्रासंगिक होगा कि उन्होंने 'दो बीघा जमीन' कहानी भी लिखी थी पहले कि मैं संगीत की राह पर आगे बढ़ूं मैं पाठकों को एक और दिलचस्प कहानी से रूबरू कराना चाहता हूं

फिल्म 'मधुमती' की शूटिंग के समय स्थानीय आदिवासी महिलाओं के साथ अभिनेता दलीप कुमार 

हरफनमौला अभिनेता गायक किशोर दा खुले तौर पर मुख्यधारा के बॉम्बे सिनेमा को हमेशा खारिज करते थे उन्होंने अपने शरारतपूर्ण अंदाज़ में इसे 'ओरिएंटल ओपेरा' करार दे रखा था वो कोई हिंदी फिल्म तभी देखते थे जब तक उसका संगीत उन्हें आकर्षित नहीं करता था 'देहरादून' में 'मधुमती' देखने के बाद किशोर दा इसके गानों के दीवाने हो गए लोकगीत रचना ''चढ़ गयो पापी बिछुआ '' ने उन्हें इतना प्रभावित किया कि उन्होंने फिल्म को दूसरी बार देखने का फैसला किया आमतौर पर वो किसी फिल्म को दूसरी बार कम ही देखते थे लेकिन उन्होंने ऐसा सम्मान केवल 'मधुमती' को दिया

https://suhaniyadain2020.blogspot.com/2017/11/1958_99.html

Wolfgang Amadeus Mozart 
पागलों की तरह, सिर्फ इस फिल्म के गानो के लिए उन्होंने उन्होंने मधुमती के लंबे समय तक चलने वाले विशेष रिकॉर्ड (एलपी) को खरीदने के लिए कोलकाता की संगीत दुकानों के कई चक्कर लगाए किशोर दा कहते हैं ..... 

'जब मैंने अपने दोस्तों से चर्चा कि 'चढ़ गयो पापी बिछुआ पूरी तरह से मोजार्टियन है तो उन्होंने मुझे नजरअंदाज कर दिया इसका कारण यह था की सलिल ने वास्तव में, चतुराई और रचनात्मक तरीके से,लोक धुनों को मोजार्टियन की सतत गति की भावना के साथ मिलाया जिसे एक दिव्य गति कहा जा सकता है इस गीत को लिखने से पहले सलिल ने मोजार्ट के संगीत रूपक का ध्यानपूर्वक अध्ययन किया होगा पापी बिछुआ में,मुझे एकल कलाकार और कोरस के बीच प्रतिस्पर्धा और बातचीत या संघर्ष दिखाई देता है जो मोजार्ट के संगीत कार्यक्रमो में ही दोहराया जाता है''

किशोर कुमार के मुताबिक सलिल चौधरी ने 'मधुमती' में मोजार्ट को रोमांटिक बना दिया आपको बता दे ऑस्ट्रेलिया में जन्मे जर्मन के निवासी संगीतकार वोल्फ़गांक आमडेयुस मोत्सार्ट एक प्रसिद्ध पाश्चात्य शास्त्रीय संगीतज्ञ थे उन्होने लगभग 600 संगीत रचनाएँ की थी और वो दुनिया के शास्त्रीय संगीतकारों मेंसर्वाधिक लोकप्रिय शास्त्रीय संगीतज्ञ हैं यहाँ किशोर दा उनकी ही बात कर रहे है

इसी फिल्म का एक गाना 'सुहाना सफर और ये मौसम हसीन 'फिल्म की जान है जिसे दलीप कुमार पर फिल्माया गया था इस गाने की शुरुआत पक्षियों की चहचहाट के साथ बेहद धीमे संगीत में होती है ' सुहाना सफर गीत 'कैसे बनाया गया था वो भी एक किस्सा है

एक दिन संगीतकार सलिल चौधरी और गीतकार शैलेन्द्र खंडाला घाट की ओर जा रहे थे यह हिल स्टेशन उन दिनों फिल्म उद्योग के लोगों के बीच एक लोकप्रिय जगह थी फिल्म 'मधुमती' का शुरुआती सीक्वेंस खंडाला घाट के इन्ही हेयरपिन शेप वाले मोड़ों में से एक पर फिल्माया गया था कहते है की अगर गौर से सुना जाये तो प्रकृति की हर रचना में संगीत बसा है वह दोनों जब वे खंडाला घाट की एक सड़क के किनारे पर खड़े थे तो उन्होंने एक चरवाहे को अपनी भेड बकरियों के झुंड के साथ के साथ देखा वह आदमी एक तेज़ आवाज़ से उन्हें नियंत्रिण करने की कोशिश कर रहा था जो “उर्रर्रर्रर्रर्रर्रर्रर्र” जैसी लग रही थी बस यही मौके पर, शैलेन्द्र ने चरवाहे की इस आवाज़ को अपने गाने 'सुहाना सफर और ये मौसम हसीन 'के प्रारंभिक स्वर-संकीर्तन में शामिल करने का निर्णय कर लिया और यह गाना 'मधुमती' की सिग्नेचर ट्यून बन गया गाने के आरम्भ में उस अनजान चरवाहे की “उर्रर्रर्रर्रर्रर्रर्रर्र” की यह ध्वनि इस गाने को एक नई दिशा प्रदान करती है हिंदी फिल्म संगीत में उसके बाद ऐसा प्रयोग आज की नई पीढ़ी के संगीतकार ए आर रहमान ने फिल्म दिल्ली-6-(2009) के गाने 'ससुराल गैंदा फूल' में किया था इसमें उन्होंने छत पर कबूतर उड़ाते अभिनेता ओमपुरी की 'हो हो है' की आवाज़ों को शानदार तरीके से मिक्स किया था 

फिल्म 'मधुमती' की शूटिंग के समय स्थानीय लोगो के साथ अभिनेता दलीप कुमार 

बिमल राय की ''मधुमती ''में अच्छे और बुरे का संघर्ष तो है ही लेकिन शहरी और आदिवासियों के बीच वर्चस्व की लड़ाई भी है ऋतविक घटक की लिखी कहानी दशको को बांधे रखती और अपनी पकड़ नहीं छोड़ती 'मधुमती' पुर्नजन्म की दिलचस्प कहानी पर आधारित थी ........'मधुमती' पुनर्जन्म को केंद्र में रखकर आगे बनने वाली कई फिल्मों के लिए पथ प्रदशक साबित हुई और थ्रिलर और सस्पेंस फिल्मों को हिंदी फिल्म जगत में एक नयी दिशा मिली


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